दिल से पूंछता हूँ
निरंतर,
दिल से पूंछता हूँ
कैसे दर्द उसका कम
करूँ
प्यास उसकी बुझाऊँ
शमा मोहब्बत की
फिर से जलाऊँ
अरमानों की किश्ती
किनारे लगाऊँ
थक गया
बेरहम दुनिया से
हंस कर
ज़ख्म खाते खाते
मलहम
कौन सा लगाऊँ
कहाँ से
कोई मेहरबाँ लाऊँ
जो खिजा को बहार में
बदल दे
तुझे सुकून दे दे
30-03-03
551—221-03-11
No comments:
Post a Comment