साहब का कुत्ता था ,
नाम उसका नौटी था
ठाठ से रहता था
साहब जैसे ही,
नाज़ नखरे में पलता था
हर महीने डाक्टर से
जांच करवाता
सुबह शाम
मास्टर पढ़ाने आता
शाम को घूमने जाता
शैम्पू से नहलाया जाता
घर में कहीं भी घूम सकता
साहब के बिस्तर बैठ
सकता
सकता
बच्चों की याद नहीं आये
नौटी के बगैर साहब का
मन ना लगता
कोई घर आये,
कीमत से लेकर
कीमत से लेकर
नौटी की खूबियों का
बखान किया जाता
नस्ल का ज्ञान
मिलने वालों में बांटा जाता
किसी को काट ले
आपको ध्यान रखना
चाहिए
चाहिए
कह कर पीछा छुडाया
जाता
जाता
दो नौकर उसे सम्हालते
खुद सूखी रोटी,दाल खाते
नौटी को शुद्ध दूध
विदेशी बिस्कुट
विदेशी बिस्कुट
और गोश्त खिलाते
उनसे नुकसान हो जाए
गालियों की बौछार सुनते
नौटी नुकसान कर दे
पीठ पर हाथ फिरा
पुचकारा जाता
पुचकारा जाता
हर बार माफ़ किया जाता
साहब का कुत्ता इंसानों से
ज्यादा होता
25-03-03
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर
502—172-03-11
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