Sunday, March 27, 2011

काश मैं भँवरा होता



काश 
मैं भँवरा होता

हर फूल  
नज़दीक से देखता
ख़ूबसूरती से  

सुकून दिल को देता
गुनगुनाहट से उन्हें 
लुभाता
उसकी खुशबू सूंघता
रंगों को
 ज़ज्ब खुद में करता
निरंतर मदमस्त रहता
ग़मों का नामोनिशाँ
ज़िन्दगी में ना होता
बहारों में घर मेरा होता
खिजा का
नाम ना जानता
27-03-03
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर
521—191-03-11

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