Monday, February 28, 2011

उनकी फितरत को सलाम करता हूँ,जिन्होंने मंजिल तक पहुंचाया मुझे


330—02-11

देने वालों ने बहुत दिया मुझे
पत्थरों से बचना सिखाया मुझे
जुबान के तीरों पर
मुस्कराना सिखाया मुझे
हँसते हँसते जीना सिखाया मुझे
बेवफाई का बदला
वफ़ा से देना सिखाया मुझे
गिर कर,उठना सिखाया मुझे
निरंतर तूफानों से लड़ना
सिखाया मुझे
कामयाबी के मुकाम पर
पहुंचाया मुझे
उनकी फितरत को सलाम
करता हूँ
जिन्होंने मंजिल तक
पहुंचाया मुझे
28-02-2011
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर

बाद में याद आऊँ,ऐसा कुछ कर जाऊं



ज़िन्दगी के
आख़री मोड़ पर खडा हूँ
भारी भोज तले दबा हूँ
ज़माने के अहसानों से लदा हूँ
कैसे लौटाऊँ निरंतर
सोचता हूँ
क्यूं ना जवाब अपने
तरीके से दूं 
पत्थर का जवाब फूलों से दूं
नफरत का मोहब्बत से दूं
ज़ख्मों का सिला मलहम से दूं
जाते जाते मैं भी अहसान
ज़माने पर कर जाऊं 
बाद में याद आऊँ
ऐसा कुछ कर जाऊं

28-02-2011
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर

ज़मीं पर नहीं,ज़न्नत में बसते हैं,राज़ अब भी दिल पर करते हैं



328--02-11
कदम खुद-ब-खुद रुक जाते
उनकी गली से जब गुजरता
बीते लम्हे निरंतर लौटते
हवा में खुशबू उनकी आती
आवाज़ सुनायी देती
अहसास करीब होने का देती
उनके घर को जब देखता
अनजाने कदम उस तरफ बढाता
इंतज़ार दरवाज़ा खुलने का करता
दरवाज़ा खुलता
किसी और को खड़े देखता
ख्याल दम तोड़ते,याद मुझे दिलाते
ज़मीं पर नहीं,ज़न्नत में बसते हैं
राज़ अब भी दिल पर करते हैं
28-02-2011
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर

सांस के साथ ख्वाब भी रुक जाते, रजा ऊपर वाले की निभाते हैं



327—02-11

ज़िन्दगी में 
मुकाम बहुत आते
कभी खुशी,कभी गम लाते 
कुछ याद रहते,कुछ भूल जाते
कभी मुस्कराते,कभी रोते  
दस्तूर-ऐ-ज़िन्दगी निभाते
किसी तरह हालात से लड़ते
वक़्त अपना काटते
रोज़ खुदा को याद करते
निरंतर उम्मीद में जीते
उम्मीद में मर जाते
सांस के साथ
ख्वाब भी रुक जाते
रजा ऊपर वाले की
निभाते हैं
28-02-2011
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर


Sunday, February 27, 2011

उस की रहनुमाई में ज़िन्दगी गुजार दूं


Udaipur
326—02-11

काँटा
दिल में लिए घूम
रहा हूँ
निकालने वाले को
ढूंढ रहा हूँ
दर्द  निरंतर बढ़ता
जा रहा
सहना मुश्किल
हो रहा
किस से पता उसका
पूंछू
कोई सहारा दे तो
उस तक पहुँच जाऊं
दर्दों से अपने उभर जाऊं
उस की रहनुमाई में
ज़िन्दगी गुजार दूं
27-02-2011
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर

ये क्या कम था,तुमने मुझे पहचान लिया


Udaipur
326—02-11


मैं भीड़ में खडा
बिलकुल अकेला
खामोशी से तुम्हें देख रहा
पुराने वक़्त को याद कर रहा
निरंतर साथ बिताया हर लम्हा
जहन में आ रहा
हर तरफ जलवा तुम्हारा
चाहने वालों ने तुम्हें घेरा
तुमने सब को छोड़ा
मुस्करा कर हाल मेरा पूंछा
सब खोने के बाद भी
सब पास होने का अहसास दिया
दिल का गुबार ख़त्म हुआ
ये क्या कम था
तुमने मुझे पहचान
लिया
 27-02-2011
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर