Monday, February 14, 2011

निरंतर धूल मिटटी खाता हूँ,फिर भी खुश हूँ



किताब
का कवर (आवरण) हूँ
सस्ती या महंगी
रामायण हो या कुरान
कहानी या उपन्यास
इतहास या विज्ञान
दुर्भाव नहीं रखता हूँ
सब पर चढ़ाया जाता हूँ
किताब के मुखड़े को
साफ़ रखता हूँ
खुद गंदगी भोगता हूँ
कई हांथों में जाता हूँ
निरंतर धूल मिटटी
खाता हूँ
फिर भी खुश हूँ
ढकने के लिए बना हूँ
ढक कर रखता हूँ
ढकते ढकते फट
जाता हूँ
कर्तव्य अपना
निभाता हूँ
05-01-2011

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