Monday, February 14, 2011

दीवाना हूँ पर्वतों का,आकाश को छूती चोटियों का

250—02-11

दीवाना हूँ पर्वतों का
आकाश को
छूती चोटियों का
ऊंचा बढ़ने की प्रेरणा देती

परवाना हूँ फूलों का

खुल कर जीना सिखाते

महक से जहाँ
को महकाते
मतवाला हूँ
नदी का
निरंतर बहती रहती
हर रुकावट पार करती
रास्ता नया बनाती
आशिक हूँ हवाओं का

रवानी मौसम में लाती

झोंकों से दुनिया बहलाती

चाहता हूँ
हरयाली देखता रहूँ
झरनों की कल कल

पंछियों की चहचाहट
सुनता रहूँ
हवाओं को महसूस
करता रहूँ
उनके साथ बहता रहूँ

परमात्मा के 

करिश्मे का जी भर 
आनंद लेता रहूँ
जीवन
भर मुस्कराता
रहूँ

14-02-2011

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