Thursday, February 17, 2011

दिल जलाओ मगर धुंआ ना उडाओ

265—02-11


दिल जलाओ
मगर धुंआ ना उडाओ
ज़माने को मत बताओ
हालात को और ना उलझाओ
नफरत को आम ना करो
ज़ुल्म कितने भी करो
इम्तहान निरंतर लो
तुम जो भी करो
बर्दाश्त मुझे
ज़माने को शामिल
मत करो
हर हरकत तुम्हारी
खुशी से सह लेंगे
कितना भी सताओ मुझे
मोहब्बत उसे समझेंगे
17-02-2011

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