Wednesday, September 11, 2013

"निरंतर" की कलम से.....: फूल खिला नहीं महकेगा कैसे

"निरंतर" की कलम से.....: फूल खिला नहीं महकेगा कैसे: फूल खिला नहीं महकेगा कैसे हसरतें परवान चढी नहीं सुकून मिलेगा कैसे मांझी के बिना किश्ती को साहिल मिलेगा कैसे मोहब्बत के ब...

"निरंतर" की कलम से.....: गले मिलो ना मिलो देख कर मुस्काराया तो करो

"निरंतर" की कलम से.....: गले मिलो ना मिलो देख कर मुस्काराया तो करो: गले मिलो ना मिलो देख कर  मुस्काराया तो करो हर छोटी बड़ी बात का फसाना मत बनाया करो नौक झोंक तो ज़िन्दगी में होती ही रहती है ...

"निरंतर" की कलम से.....: दुखों का घडा विचित्र बहुत है

"निरंतर" की कलम से.....: दुखों का घडा विचित्र बहुत है: दुखों का घडा विचित्र बहुत है  बड़ा इतना कभी भरता नहीं है जिद्दी इतना कभी गिरता नहीं है मज़बूत इतना कभी टूटता नहीं आशा को...

"निरंतर" की कलम से.....: विरह की उदासी

"निरंतर" की कलम से.....: विरह की उदासी: ये सीना अब झूमते ह्रदय का बसेरा नहीं  इच्छाओं की समाधी है जहां सपनों की  नदी  बहती थी  कभी वहां अब मरघट की शान्ति है इन...

"निरंतर" की कलम से.....: धूप बोली चांदनी से

"निरंतर" की कलम से.....: धूप बोली चांदनी से: धूप बोली चांदनी से सदियों पुराने रिवाज़ से अब मुक्त हो जाओ तुम समझाओ चाँद को मैं समझाऊंगी सूरज को कभी मैं रात को छाऊँ कभी तु...

"निरंतर" की कलम से.....: अहम् के उन्माद में

"निरंतर" की कलम से.....: अहम् के उन्माद में: देवताओं ने भी नहीं सोचा होगा अहम् के उन्माद में मनुष्य धरती पर तांडव मचाएगा प्रक्रति के हर रंग को बदरंग कर देगा इर्ष्या द्वेष में...

"निरंतर" की कलम से.....: म्रत्यु भय

"निरंतर" की कलम से.....: म्रत्यु भय: अंतिम  समय निकट था पलंग पर  लाचार   पड़ा था  इतना सह चुका था इतना थक चुका था ना भावनाएं मचल  रही थीं ना जीने की इच्छा  बची थी...

"निरंतर" की कलम से.....: दुखों को चौराहे पर मत टांगो

"निरंतर" की कलम से.....: दुखों को चौराहे पर मत टांगो: दुखों को चौराहे पर मत टांगो स्वयं को निर्बल मत दर्शाओ हर आता जाता व्यक्ति अपने सोच से गुण दोष निकालेगा कारण पूछेगा कोई सहानूभूत...

"निरंतर" की कलम से.....: समझना-समझाना

"निरंतर" की कलम से.....: समझना-समझाना: समझने समझाने पर चर्चा मैं गुरु शिष्य को समझाने लगे जो इशारों में नहीं समझे उसे कम से कम शब्दों में समझाना चाहिए जो इससे भी नहीं सम...

Saturday, September 7, 2013

"निरंतर" की कलम से.....: कथनी करनी में दिन रात का अंतर होता है

"निरंतर" की कलम से.....: कथनी करनी में दिन रात का अंतर होता है: सुन्दर सौम्य चेहरा बातें भी बहुत सुन्दर प्रेम व्यवहार संस्कारों की निश्छल मन सरल ह्रदय संबंधों को बनाये रखने की सहनशीलता धैर्य धीरज...

"निरंतर" की कलम से.....: सपनों को पकड़ने की चाह में

"निरंतर" की कलम से.....: सपनों को पकड़ने की चाह में: आकाश की हर दिशा में उड़ते हुए छितराए हुए सपनों को पकड़ने की चाह में निरंतर दिशा बदल बदल कर जीवन भर उछलता रहा कभी ऊँगलिया  सपनों...

"निरंतर" की कलम से.....: मेरी बात से चौंकना भी मत

"निरंतर" की कलम से.....: मेरी बात से चौंकना भी मत: मेरी बात से चौंकना भी मत मुझ पर अविश्वास भी मत करना मैं तुमसे प्रेम तो करता हूँ पर केवल तुमसे ही नहीं आधा तुम से आधा स्वयं से प्र...

"निरंतर" की कलम से.....: केवल आप कहने से कोई बड़ा नहीं हो जाता

"निरंतर" की कलम से.....: केवल आप कहने से कोई बड़ा नहीं हो जाता: उम्र में छोटे  एक मित्र को जब आप कह कर  संबोधित किया मित्र कहने लगा कृपया आप मुझे  आप कह कर संबोधित ना करें मैं आपसे उम्...

"निरंतर" की कलम से.....: शिक्षक दिवस पर कविता-केवल शिक्षक ही नहीं देता शिक्...

"निरंतर" की कलम से.....: शिक्षक दिवस पर कविता-केवल शिक्षक ही नहीं देता शिक्...: (शिक्षक दिवस पर कविता) केवल शिक्षक ही नहीं देता शिक्षा स्कूल कॉलेज की चारदीवारियों में ही नहीं मिलती शिक्षा केवल शिक्षक ही नही...

"निरंतर" की कलम से.....: प्रशंसा करनी है तो मेरे मुंह पर नहीं

"निरंतर" की कलम से.....: प्रशंसा करनी है तो मेरे मुंह पर नहीं: प्रशंसा करनी है तो मेरे मुंह पर नहीं पीठ पीछे करो जितना लायक  हूँ बस उतनी ही करो मुंह पर प्रशंसा से मुझे भ्रम रहता है प्रश...

"निरंतर" की कलम से.....: प्रशंसा करनी है तो मेरे मुंह पर नहीं

"निरंतर" की कलम से.....: प्रशंसा करनी है तो मेरे मुंह पर नहीं: प्रशंसा करनी है तो मेरे मुंह पर नहीं पीठ पीछे करो जितना लायक  हूँ बस उतनी ही करो मुंह पर प्रशंसा से मुझे भ्रम रहता है प्रश...

Wednesday, September 4, 2013

"निरंतर" की कलम से.....: हार जीत अंतिम पड़ाव नहीं जीवन का

"निरंतर" की कलम से.....: हार जीत अंतिम पड़ाव नहीं जीवन का: कोई जीत स्थायी नहीं होती कोई हार सदा हार नहीं रहती हार जीत अंतिम पड़ाव नहीं जीवन का जीवन कर्म प्रधान होता है विवेक पथ ...

"निरंतर" की कलम से.....: शब्द मात्र शब्द ही नहीं

"निरंतर" की कलम से.....: शब्द मात्र शब्द ही नहीं: शब्द मात्र शब्द ही नहीं लेखकीय मन का आइना होते हैं पढने मात्र से ही मन के भाव उजागर कर देते हैं पढने वाले के मन में अनुभ...

"निरंतर" की कलम से.....: कभी कभी मेरा चेतन मन भी अचेतन हो जाता है

"निरंतर" की कलम से.....: कभी कभी मेरा चेतन मन भी अचेतन हो जाता है: कभी कभी मेरा चेतन मन भी अचेतन हो जाता है व्यक्तित्व के विपरीत अनिच्छा से  इर्ष्या द्वेष काम क्रोध लालच के संसार में भ्रमण कराता ...

Tuesday, September 3, 2013

"निरंतर" की कलम से.....: मुझे कोई दुःख नहीं

"निरंतर" की कलम से.....: मुझे कोई दुःख नहीं:  कितना दुर्भाग्य है मुझे कोई दुःख नहीं दूसरों का दुःख समझने का अनुभव नहीं खुशी का महत्व जानने का कोई साधन नहीं किस बात...

"निरंतर" की कलम से.....: मुझे कोई दुःख नहीं

"निरंतर" की कलम से.....: मुझे कोई दुःख नहीं:  कितना दुर्भाग्य है मुझे कोई दुःख नहीं दूसरों का दुःख समझने का अनुभव नहीं खुशी का महत्व जानने का कोई साधन नहीं किस बात...

"निरंतर" की कलम से.....: वेदना का ना स्वर होता ना चेहरा

"निरंतर" की कलम से.....: वेदना का ना स्वर होता ना चेहरा: वेदना का ना स्वर होता ना चेहरा ना ही देह होती ह्रदय में तीव्र रक्त संचार व्याकुल मन  शुष्क कंठ आँखों में नमी विचार न...

"निरंतर" की कलम से.....: जीवन पश्चिम की ओर अग्रसर हो चला है

"निरंतर" की कलम से.....: जीवन पश्चिम की ओर अग्रसर हो चला है: बचपन की निश्चिंतता जवानी की उदिग्नता यादों को समर्पित कर जीवन पश्चिम की ओर अग्रसर हो चला दिन छोटा रात लम्बी होने लगी चेहरे ...

"निरंतर" की कलम से.....: निराला क्रीडांगन है मनुष्य का मन

"निरंतर" की कलम से.....: निराला क्रीडांगन है मनुष्य का मन: मन के  चंचल क्रीडांगन का  कोई क्रीडांगन सानी नहीं हर क्रीडांगन से  अधिक खेल होते यहाँ  इर्ष्या द्वेष के विध्वंशक  नज़ारे दिखते यहाँ ...

Sunday, September 1, 2013

"निरंतर" की कलम से.....: शब्दों का खेल

"निरंतर" की कलम से.....: शब्दों का खेल: ना कविता में दर्द होता है ना कोई गीत दुःख से भरा होता है ना प्यार मोहब्बत किसी ग़ज़ल में होता ना किसी नज़्म में जुदाई बेवफ...

"निरंतर" की कलम से.....: गंगा भी मचलती है

"निरंतर" की कलम से.....: गंगा भी मचलती है: गंगा भी मचलती है उपेक्षा से उफनती है  प्रदूषण से क्रोधित हो पूरे वेग से छलकती है गाँव शहर बस्ती  जल मग्न करती हैं संसार को द...

"निरंतर" की कलम से.....: हरा हो कर पीला हो जाना जीवन की नियति है

"निरंतर" की कलम से.....: हरा हो कर पीला हो जाना जीवन की नियति है: वृक्ष पर लगे पीले पत्ते से एक बूढ़े ने पूछ लिया बरसों हरा रहने के बाद वृक्ष पर झूमने के बाद पीलापन कैसा लगता है वृक्ष से टूट...

"निरंतर" की कलम से.....: ना पंडित ना पादरी हूँ

"निरंतर" की कलम से.....: ना पंडित ना पादरी हूँ: ना पंडित ना पादरी हूँ ना मुल्ला ना ग्रंथि हूँ मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे चर्च में माथा टेकता हूँ प्रेम का अमृत चखता हूँ सब की इज्ज़...

"निरंतर" की कलम से.....: छोटा सा कटाक्ष

"निरंतर" की कलम से.....: छोटा सा कटाक्ष: जुबान का फिसलना क़यामत ढाह गया छोटा सा कटाक्ष ह्रदय में शूल बन कर चुभ गया संवाद के अभाव में ज़ख्म बन गया मन पर अहम् का भ...

"निरंतर" की कलम से.....: करना भी होता है

"निरंतर" की कलम से.....: करना भी होता है: रात भर सोचता रहा अनभूतियों से भरी यादगार रचना लिखूं पाठकों के मन को झंझोड़ कर रख दूं सोचने पर मजबूर कर दूं रात गुजर गयी कलम हाथ म...

"निरंतर" की कलम से.....: गंगा भी मचलती है

"निरंतर" की कलम से.....: गंगा भी मचलती है: गंगा भी मचलती है उपेक्षा से उफनती है  प्रदूषण से क्रोधित हो पूरे वेग से छलकती है गाँव शहर बस्ती  जल मग्न करती हैं संसार को द...

Friday, August 30, 2013

"निरंतर" की कलम से.....: कितना कुछ कह जाते हैं पत्ते

"निरंतर" की कलम से.....: कितना कुछ कह जाते हैं पत्ते: कोंपल से पत्ता बनने तक पत्ता बनने से झड़ने तक मूक रहते हैं सहते हैं, आंधी तूफ़ान गर्मी सर्दी से लड़ते हैं बसंत में झूम...

"निरंतर" की कलम से.....: अब तक तो

"निरंतर" की कलम से.....: अब तक तो: अब तक तो इर्ष्या द्वेष के गाँव में जात पांत के कसबे धर्म के नगर में मन के राक्षसी राष्ट्र में जी लिए अब मन की खिड़की ह्रदय...

"निरंतर" की कलम से.....: बहुत अच्छा लगता है दूसरों की बात करना

"निरंतर" की कलम से.....: बहुत अच्छा लगता है दूसरों की बात करना: बहुत अच्छा लगता है   दूसरों की बात करना लोगों का मज़ाक उड़ाना   उन पर ऊंगली उठाना   लोगों की जुबां से खुद   ज़ख्म खाओगे जिस दिन   ...

"निरंतर" की कलम से.....: देश के लोगों ने तुम्हें बापू कहा

"निरंतर" की कलम से.....: देश के लोगों ने तुम्हें बापू कहा: बहुतों ने चाहा तुम्हारे जैसे बन जाएँ ज़माने को  मुट्ठी में कर लें पर ना ही उनमें वो कुव्वत थी ना ही वो ज़ज्बा था जिसके दम पर तुम...

"निरंतर" की कलम से.....: जब अपना ही बन कर नहीं रह सका

"निरंतर" की कलम से.....: जब अपना ही बन कर नहीं रह सका: जब अपना ही बन कर नहीं रह सका किसी और का बन कर कैसे रहूँ पथ से भटक गया हूँ भ्रम जाल में फंस चुका हूँ मरीचिका के पीछे दौड़ रहा हूँ...

"निरंतर" की कलम से.....: क्यों पूछते हो हमसे हाल हमारा

"निरंतर" की कलम से.....: क्यों पूछते हो हमसे हाल हमारा: क्यों पूछते हो हमसे हाल हमारा ना बदले हालात कभी ना कभी बदलेंगे जिंदगी का सफ़र तो ऐसा ही रहा है ऐसा ही रहेगा ज़िंदा हूँ जब ...

"निरंतर" की कलम से.....: तरक्की की दीमक

"निरंतर" की कलम से.....: तरक्की की दीमक: ना वो मचलती गली ना मोहब्बत से लबरेज़ वो घर वहां पर ना खेलते कूदते बच्चों का नज़ारा दिखता वहां पर ना वो नीम का पेड़ बैठते थ...

"निरंतर" की कलम से.....: बुद्धि के विकास ने

"निरंतर" की कलम से.....: बुद्धि के विकास ने: गेंदे का फूल गुलाब के फूल से इर्ष्या नहीं करता कोयल की कूंक से गोरिय्या द्वेष नहीं रखती कुए का पानी तालाब के पानी में मिला...

"निरंतर" की कलम से.....: बरसों की प्रतीक्षा पूरी हो गयी

"निरंतर" की कलम से.....: बरसों की प्रतीक्षा पूरी हो गयी: बरसों की प्रतीक्षा पूरी हो गयी आज वकील की चिट्ठी आ गयी न्याय की  आस पूरी हो गयी  मुक़दमे में जीत हो गयी करोड़ों की जायदाद ...

"निरंतर" की कलम से.....: भ्रम जाल में फंसा दानव बन रहा इंसान

"निरंतर" की कलम से.....: भ्रम जाल में फंसा दानव बन रहा इंसान: रोता है मन तड़पता है मन जब देखता है रोता हुआ बचपन घबराई हुई जवानी सहमा हुआ बुढापा दरकती निष्ठाएं खोखले रिश्ते स्वार्थ का व...

"निरंतर" की कलम से.....: हार कर भी जीतना चाहता हूँ

"निरंतर" की कलम से.....: हार कर भी जीतना चाहता हूँ: येन केन प्रकारेण जीतना नहीं चाहता हूँ होड़ के चक्रव्यूह में फंसना नहीं चाहता हूँ कर्म पथ पर नदी सा अविरल  बहना चाहता हूँ स...

"निरंतर" की कलम से.....: कलम हाथ में लेते ही

"निरंतर" की कलम से.....: कलम हाथ में लेते ही: कलम हाथ में लेते ही मेरा चंचल मन ना जाने कहाँ से आश्वासन पाता है शरीर की सारी थकान मिट जाती है, ऊंगलियों में ऊर्जा का संचा...

"निरंतर" की कलम से.....: वो आँगन

"निरंतर" की कलम से.....: वो आँगन: पुराने घर के आँगन में पहुँचते ही यादों के समुद्र में गोते लगाने लगता हूँ वो आँगन , साधारण आँगन नहीं मेरे बचपन का संसार था कई परिवारों का म...

"निरंतर" की कलम से.....: वो आँगन

"निरंतर" की कलम से.....: वो आँगन: पुराने घर के आँगन में पहुँचते ही यादों के समुद्र में गोते लगाने लगता हूँ वो आँगन , साधारण आँगन नहीं मेरे बचपन का संसार था कई परिवारों का म...

"निरंतर" की कलम से.....: तटस्थ

"निरंतर" की कलम से.....: तटस्थ: बड़ी आसानी से तुमने कह दिया तुम किसी के झगडे में नहीं पड़ते हो सदा तटस्थ रहते हो हर झगडे में एक सही दूसरा गलत होता है जानते हुए ...

"निरंतर" की कलम से.....: वो प्रियतमा के ख़त का ज़माना

"निरंतर" की कलम से.....: वो प्रियतमा के ख़त का ज़माना: नम कर देता हैं  आँखें भुलाए नहीं भूलता वो प्रियतमा के  ख़त का  ज़माना याद आता है ख़त को बार बार पढ़ना सीने से लगाना आँखें बं...

"निरंतर" की कलम से.....: वो प्रियतमा के ख़त का ज़माना

"निरंतर" की कलम से.....: वो प्रियतमा के ख़त का ज़माना: नम कर देता हैं  आँखें भुलाए नहीं भूलता वो प्रियतमा के  ख़त का  ज़माना याद आता है ख़त को बार बार पढ़ना सीने से लगाना आँखें बं...

Sunday, August 25, 2013

"निरंतर" की कलम से.....: अगर सोच सार्थक हो

"निरंतर" की कलम से.....: अगर सोच सार्थक हो: बचपन से सुनता रहा हूँ अब भी निरंतर सुनता हूँ आगे भी सुनता रहूँगा जीवन रोने के लिए नहीं हँसने के लिए होता है बात असत्य नहीं है पर य...

"निरंतर" की कलम से.....: आईने भी कितने जीवट वाले होते हैं

"निरंतर" की कलम से.....: आईने भी कितने जीवट वाले होते हैं: आईने भी कितने जीवट वाले होते हैं दूसरों को खुश रखने के लिए कितना कुछ भुगतते हैं झूठ कहने का पाप अपने सर लेते हैं फिर भी उफ...

"निरंतर" की कलम से.....: तुम उदास भी होती हो तो

"निरंतर" की कलम से.....: तुम उदास भी होती हो तो: तुम उदास भी होती हो तो उतनी ही सुन्दर लगती हो तुम्हारी आँखों की चमक तो कम हो जाती है पर उनके नीलेपन में उनकी गहराइयों में कम...

"निरंतर" की कलम से.....: चांदनी चाहती तो बहुत है

"निरंतर" की कलम से.....: चांदनी चाहती तो बहुत है: चांदनी चाहती तो बहुत है चाँद को छोड़ संसार में बस जाए हर रात आकाश से उतरना ना पड़े वृक्षों,नदियों,पहाड़ों , सागर,धरती धोरो...

"निरंतर" की कलम से.....: मेरा उससे ताल्लुक था,अब भी है मगर नहीं भी

"निरंतर" की कलम से.....: मेरा उससे ताल्लुक था,अब भी है मगर नहीं भी: मेरा उससे ताल्लुक था अब भी है मगर नहीं भी कभी मिला तो नहीं मगर उसे देखा कई बार जब भी करीब से देखने की ख्वाहिश करता मिलने की ...

"निरंतर" की कलम से.....: मन मेरा बावरा बार बार मचल जाए

"निरंतर" की कलम से.....: मन मेरा बावरा बार बार मचल जाए: मन मेरा बावरा बड़ा ही आवारा बार बार मचल जाए कितना भी काबू करूँ काबू में ना आए मान मनुहार करूँ बार बार समझाऊँ ठेल ठेल पटरी ...

"निरंतर" की कलम से.....: तनहा भी खुश रहता

"निरंतर" की कलम से.....: तनहा भी खुश रहता: ये भीड़ नहीं होती तो तनहा भी खुश रहता ना कोई सवाल पूछता ना किसी को जवाब देना पड़ता ना गम की बातें होती ना कोई ज़ख्म कुरेदता ...

"निरंतर" की कलम से.....: वही सूरज वही धूप वही उजाला

"निरंतर" की कलम से.....: वही सूरज वही धूप वही उजाला: वही सूरज वही धूप वही उजाला दिन तो सब के एक जैसे ही होते हैं कुछ दिन भर मुस्काराते रहते हैं शाम को हँसते हैं जश्न मनाते हैं...

"निरंतर" की कलम से.....: कभी लहकता था

"निरंतर" की कलम से.....: कभी लहकता था: कभी लहकता था फलता था फूलता था हवाओं में झूमता था राहगीरों को छाया पक्षियों का बसेरा था उम्र के अंतिम दौर में   ना चेहरे पर हँसी थी...

"निरंतर" की कलम से.....: इस गुस्ताख नज़र का क्या कीजे

"निरंतर" की कलम से.....: इस गुस्ताख नज़र का क्या कीजे: इस गुस्ताख नज़र का क्या कीजे हर हसीं सूरत पर अटक जाती है ख्वाहिशें अंगडाई लेने लगती हैं दिल की धडकनें बढ़ने लगती हैं बामुश्किल म...

"निरंतर" की कलम से.....: लोग हद पार करने की बात तो करते हैं

"निरंतर" की कलम से.....: लोग हद पार करने की बात तो करते हैं: लोग हद पार करने की बात तो करते हैं मगर हद तो जब पार होती है जब खुद के स्वार्थ के लिए लोग  हद पार करते हैं पर जब बात दूसरों की...

"निरंतर" की कलम से.....: मैंने सोचा था बड़े घर की लड़की है

"निरंतर" की कलम से.....: मैंने सोचा था बड़े घर की लड़की है: मैंने सोचा था बड़े घर की लड़की है हथेलियों में पली है गाडी में चली है सुरक्षा की चारदीवारियों में बड़ी हुई है इसने क्या सहा हो...

"निरंतर" की कलम से.....: हर ओर मेला ही मेला

"निरंतर" की कलम से.....: हर ओर मेला ही मेला: हर ओर मेला ही मेला ह्रदय में,मन में, मस्तिष्क में रंग बिरंगा मदमाता लुभाता मेला इच्छाओं के नित नए सपने दिखाता मेला सागर ...

"निरंतर" की कलम से.....: केवल समय को पता है

"निरंतर" की कलम से.....: केवल समय को पता है: केवल  समय को पता है कब तक ? सम्बन्ध निभेगा कब अविश्वास की बलि चढ़ेगा कब समापन होगा ? कौन पहल करेगा ? किसका  सब्र ख़त्म...

Tuesday, August 20, 2013

"निरंतर" की कलम से.....: शब्द भी वही वाक्य भी वही

"निरंतर" की कलम से.....: शब्द भी वही वाक्य भी वही: तुमने कहा गुलाब के  फूल ने  मुझे  लुभाया मैंने भी यही कहा गुलाब के  फूल ने  मुझे  लुभाया तुम्हें उसकी सुन्दरता ने  मुझे सुगं...

"निरंतर" की कलम से.....: महकते फूल

"निरंतर" की कलम से.....: महकते फूल: चांदी सा चमकते चमेली के फूल को देखा काँटों की बीच सुर्ख लाल गुलाब को झांकते देखा हर सिंगार के नन्हे फूल को सुगंध फैलाते देखा...

"निरंतर" की कलम से.....: मिलन की ललक

"निरंतर" की कलम से.....: मिलन की ललक: सूरज की लालिमा ने सुबह की मुनादी कर दी रात भर से क़ैद मन में असीम प्रेम लिए  धरती से मिलन को आतुर नयी नवेली दुल्हन का श्रंगार कर स...

"निरंतर" की कलम से.....: आशाएं कहने लगी एक दिन मुझसे

"निरंतर" की कलम से.....: आशाएं कहने लगी एक दिन मुझसे: आशाएं कहने लगी  एक दिन मुझसे निरंतर बहुत थक गयी हैं हर दिन नयी आशाएं संजोते हो एक पूरी नहीं होती दूसरी मन में लाते हो कु...

"निरंतर" की कलम से.....: माँ आज मुझे अपने सीने से लगा लो

"निरंतर" की कलम से.....: माँ आज मुझे अपने सीने से लगा लो: माँ आज मुझे  अपने सीने से लगा  लो  मेरा बचपन मुझे वापस लौटा दो मैंने समझा था बहुत बड़ा हो गया हूँ पढ़ लिख कर बड़ा इंसान बन गया हू...

"निरंतर" की कलम से.....: आओ तुम्हारा जी बहलाऊँ

"निरंतर" की कलम से.....: आओ तुम्हारा जी बहलाऊँ: आओ तुम्हारा जी बहलाऊँ तुम्हें एक मधुर गीत सुनाऊँ मन की बगिया में फूल खिलाऊँ  दिल के आँगन को महकाऊँ तुम्हारे सुर से सुर मिलाऊँ तु...

"निरंतर" की कलम से.....: बने कई दोस्त जिंदगी के सफ़र में

"निरंतर" की कलम से.....: बने कई दोस्त जिंदगी के सफ़र में: बने कई  दोस्त जिंदगी के सफ़र में साथ चले कई दोस्त सफ़र में बिछड़ गए कुछ दोस्त सफ़र में साथ रह गए कुछ दोस्त सफ़र में वक़्त रुका ...

"निरंतर" की कलम से.....: उपलब्धि

"निरंतर" की कलम से.....: उपलब्धि: मित्र ने  रत्न जडित कीमती घड़ी  क्या खरीद ली सुबह से शाम तक घड़ी  का गुणगान उसकी  दिनचर्या  बन गयी जीवन की बड़ी उपलब्धि हो गयी ...

Friday, August 16, 2013

"निरंतर" की कलम से.....: आशा

"निरंतर" की कलम से.....: आशा: आधी रात का समय है सारा संसार सो रहा है जाग रहा है वो जो प्रेम में मग्न है चिंताओं से ग्रस्त है दर्द से पीड़ित है कर्म मे...

"निरंतर" की कलम से.....: ईमान का कटघरा

"निरंतर" की कलम से.....: ईमान का कटघरा: (जीवन दर्शन) ) पडोसी के घर पर लगे अमरुद के पेड़ से सड़क की ओर लटकते अमरुद को देखा तो मन लालच से भर गया स्वयं पर काबू ना रख पाया इ...

"निरंतर" की कलम से.....: स्थिति परिस्थिति कैसी भी हो

"निरंतर" की कलम से.....: स्थिति परिस्थिति कैसी भी हो: ( जीवन अमृत ) असफलताओं से घबराकर डरने लगा कर्म से जी चुराने लगा आत्मविश्वास खो बैठा अपने आप में सिमट कर रह गया न...

"निरंतर" की कलम से.....: समझदारी

"निरंतर" की कलम से.....: समझदारी: (जीवन अमृत) तुम्हारी बात समझ नहीं पाया तो कोई अपराध नहीं किया मेरी समझदारी पर प्रश्न मत खडा करो मेरी हँसी मत उडाओ अपने संकुचित सोच ...

Thursday, August 15, 2013

"निरंतर" की कलम से.....: सम्मान की दृष्टि

"निरंतर" की कलम से.....: सम्मान की दृष्टि: साधारण कुडता पयजामा पहन कर समारोह में चला गया देखते ही मित्र ने टोक दिया निरंतर कुछ तो अपनी प्रतिष्ठा का ख्याल करो इतनी साधारण व...

"निरंतर" की कलम से.....: आज का सत्य

"निरंतर" की कलम से.....: आज का सत्य: एक गरीब मजदूर को खिलखिलाकर हँसते देखा मस्ती में झूमते देखा तो आश्चर्य से मुंह खुला का खुला रह गया खुशी के तांडव का कारण पूछा...

Wednesday, August 14, 2013

"निरंतर" की कलम से.....: अब केवल चलती है जुबान

"निरंतर" की कलम से.....: अब केवल चलती है जुबान: (फौज और फौजियों की जांबाजी पर ) फडकती थी बाहें कभी चलती थी तलवार उगलती थी आग जान नहीं ले तब तक करती नहीं विश्राम राजा हो या प्रजा हो...

"निरंतर" की कलम से.....: क्या वही करता रहूँ?

"निरंतर" की कलम से.....: क्या वही करता रहूँ?: क्या वही करता रहूँ जो करता रहा हूँ क्या वैसे ही सोचता रहूँ जैसे सोचता रहा हूँ क्या वैसे ही जीता रहूँ जैसे जीता रहा हूँ प्रश्...

"निरंतर" की कलम से.....: मन मस्तिष्क में सामंजस्य नहीं हो तो

"निरंतर" की कलम से.....: मन मस्तिष्क में सामंजस्य नहीं हो तो: कल रात आँखें भारी होने लगी नींद बुलाने लगी बिस्तर पर लेट कर नींद की प्रतीक्षा करने लगा अचानक मन कहने लगा नींद बहुत सताती ह...

"निरंतर" की कलम से.....: क्या वही करता रहूँ?

"निरंतर" की कलम से.....: क्या वही करता रहूँ?: क्या वही करता रहूँ जो करता रहा हूँ क्या वैसे ही सोचता रहूँ जैसे सोचता रहा हूँ क्या वैसे ही जीता रहूँ जैसे जीता रहा हूँ प्रश्...

Tuesday, August 13, 2013

"निरंतर" की कलम से.....: मैं नहीं चाहता

"निरंतर" की कलम से.....: मैं नहीं चाहता: मैं नहीं चाहता  बिमारी में व्यथा में व्याकुलता में निराशा में कोई मेरा हाल पूछे मेरी परेशानियों का कारण पूछे मैं जानता ह...

"निरंतर" की कलम से.....: ज़िन्दगी अब तक तुम प्रश्न करती रही

"निरंतर" की कलम से.....: ज़िन्दगी अब तक तुम प्रश्न करती रही: ज़िन्दगी अब तक तुम प्रश्न करती रही मुझसे अब कुछ प्रश्न मैं भी कर लूं तुमसे जब जिंदगी भर चैन नहीं मिलता फिर चैन का भ्रम क्यों द...

"निरंतर" की कलम से.....: दुखी मन बोला सुखी मन से

"निरंतर" की कलम से.....: दुखी मन बोला सुखी मन से: दुखी मन बोला सुखी मन से जब तुम भी मन मैं भी मन फिर मैं दुखी तुम खुश कैसे सुखी मन से अधिक पाने की इच्छा में तुम होड़ में जीते ह...

"निरंतर" की कलम से.....: किस,किस को किस,किस बात का दोष दूं

"निरंतर" की कलम से.....: किस,किस को किस,किस बात का दोष दूं: किस,किस को किस,किस बात का दोष दूं सपने तो मैंने देखे थे अपेक्षाएं भी मैंने रखी थीं आशाएं भी मेरी थी इच्छाएं मैंने संजोई थी करने वा...

"निरंतर" की कलम से.....: क्या वही करता रहूँ?

"निरंतर" की कलम से.....: क्या वही करता रहूँ?: क्या वही करता रहूँ जो करता रहा हूँ क्या वैसे ही सोचता रहूँ जैसे सोचता रहा हूँ क्या वैसे ही जीता रहूँ जैसे जीता रहा हूँ प्रश्...

"निरंतर" की कलम से.....: मन कहाँ मानता है

"निरंतर" की कलम से.....: मन कहाँ मानता है: मन कहाँ मानता है कहना किसी का जो मेरी मानेगा कितना भी समझाओ समझता नहीं है लाख सर फुटव्वल करो मान मनुहार करो जिद पर अड़ जाए त...

"निरंतर" की कलम से.....: दूसरा श्रेष्ठ कैसे मुझसे

"निरंतर" की कलम से.....: दूसरा श्रेष्ठ कैसे मुझसे: दूसरा श्रेष्ठ कैसे मुझसे सोच सोच कर दुखी होता रहा कैसे श्रेष्ठता जताऊँ उससे उधेड़बुन में लगा रहा कर्म पथ से भटक  कर इर्ष्या के आँग...

Sunday, August 11, 2013

"निरंतर" की कलम से.....: कभी सोचा है ?

"निरंतर" की कलम से.....: कभी सोचा है ?: कभी सोचा है कैसे बचाती है जान नन्ही सी चिड़िया आंधी तूफ़ान से कभी ख्याल आया कहाँ सोता है गली का कुत्ता सर्दी की रात में ...

Saturday, August 10, 2013

"निरंतर" की कलम से.....: तमन्नाओं के बाज़ार में

"निरंतर" की कलम से.....: तमन्नाओं के बाज़ार में: तमन्नाओं के बाज़ार में दुकानें तो बहुत सजाई मैंने मगर  खरीददार नहीं  आया कोई  जो भी आया बेचैनी  बेच गया  बदले में सुकून ले गया...

"निरंतर" की कलम से.....: चाहो खुद को उत्तम मानो चाहो तो अति उत्तम मानो

"निरंतर" की कलम से.....: चाहो खुद को उत्तम मानो चाहो तो अति उत्तम मानो: चाहो खुद को  उत्तम मानो  चाहो तो  अति उत्तम मानो  कोई रोक नहीं है कोई टोक नहीं चाहो तो खुद को  सर्वोत्तम मानो अहम् से इतना...

"निरंतर" की कलम से.....: क्या खोया क्या पाया

"निरंतर" की कलम से.....: क्या खोया क्या पाया: क्या खोया क्या पाया जिंदगी में अब तो जान लो नहीं लगाया हो हिसाब तो अब लगा लो कितनो का दिल दुखाया कितनों को दुश्मन बनाया अब तो दिल...

"निरंतर" की कलम से.....: चाँद अब परेशान होने लगा है

"निरंतर" की कलम से.....: चाँद अब परेशान होने लगा है: कभी तीज कभी ईद कभी पूर्णिमा कभी करवा चौथ पर पूजे जाने से चाँद अब परेशान होने लगा है मैंने कारण पूछा तो मुंह बिचका कर कहन...

"निरंतर" की कलम से.....: निर्धन नारी का हर दिन इकसार होता है

"निरंतर" की कलम से.....: निर्धन नारी का हर दिन इकसार होता है: निर्धन नारी का हर दिन इकसार होता है सुबह चूल्हे से प्रारम्भ होती है दोपहर दो जून रोटी के लिए कड़ी मेहनत में गुजरती है रात को वैवाहि...

"निरंतर" की कलम से.....: उन पर कोई रोक नहीं

"निरंतर" की कलम से.....: उन पर कोई रोक नहीं: वो मुझे चाहे ना चाहे उन पर कोई रोक नहीं मैं उनको चाहता रहूँगा वो ह्रदय को काबू  में कर सकते हैं खुद की भावनाओं से खुद ही खेल...

"निरंतर" की कलम से.....: तेरी बेवफाई को भूल तो जाऊं

"निरंतर" की कलम से.....: तेरी बेवफाई को भूल तो जाऊं: तेरी बेवफाई को भूल तो जाऊं पर उन हसरतों का क्या करूँ जिन में आग लगाई तूने उन ज़ज्बातों का क्या करूँ जिनसे जी भर के खेला तूने उन लम्...

Thursday, August 8, 2013

"निरंतर" की कलम से.....: कौन कब किस बात से खफा हो जाए

"निरंतर" की कलम से.....: कौन कब किस बात से खफा हो जाए: कौन कब किस बात से खफा हो जाए कब किसी का सोच बदल जाए रिश्तों में दरार पड़ जाए पता कहाँ चलता है जो वर्षों साथ निभाए विपत्त...

"निरंतर" की कलम से.....: चाहे कलम बदल दूं

"निरंतर" की कलम से.....: चाहे कलम बदल दूं: चाहे कलम बदल दूं चाहे हर्फों में हेर फेर कर दूं सुबह लिखूं शाम लिखूं हर बार एक ही लफ्ज़ आ जाता  हैं कागज़ पर उसका नाम ही...

"निरंतर" की कलम से.....: किसका मन रखूँ

"निरंतर" की कलम से.....: किसका मन रखूँ: किसका मन रखूँ किसका ना रखूँ किसे  खुश करूँ किसे नाराज़ करूँ मन में दुविधा को जन्म  देता  प्रश्न निरंतर मुंह खोले सामने ख...

"निरंतर" की कलम से.....: अर्थ का अनर्थ

"निरंतर" की कलम से.....: अर्थ का अनर्थ: आज अर्थ का अनर्थ हो गया मित्र से वार्तालाप वाकयुद्ध में बदल गया असहनशीलता   ने जिव्ह्वा से नियंत्रण समाप्त कर दिया मुंह से...

"निरंतर" की कलम से.....: संसार एक रंगमंच

"निरंतर" की कलम से.....: संसार एक रंगमंच: संसार एक रंग मंच जीवन उस नाटक का नाम जिसका निर्देशक इश्वर अलग अलग पात्र निरंतर अभिनय करते कभी हँसते कभी गाते कभी इर्ष्या द्...

Wednesday, August 7, 2013

"निरंतर" की कलम से.....: सोच में एकरूपता चाहता

"निरंतर" की कलम से.....: सोच में एकरूपता चाहता: ना पर्वत श्रंखलाएं एक ऊंचाई की होती ना सारी नदियाँ एक गति से बहती ना पक्षी इकसार होते ना पेड़ पौधे एक आकार के होते फिर क्यों मनुष्...

"निरंतर" की कलम से.....: छुपाना नहीं गर नफरत पल रही दिल में

"निरंतर" की कलम से.....: छुपाना नहीं गर नफरत पल रही दिल में: छुपाना नहीं गर नफरत पल रही दिल में दबाना नहीं गर चिंगारियां सुलग रही मन में कह देना साफ़ साफ़ जो चल रहा दिल में कहीं ऐसा न हो ...

"निरंतर" की कलम से.....: ऐसा ज़हाँ मयस्सर हो

"निरंतर" की कलम से.....: ऐसा ज़हाँ मयस्सर हो: खुदा से दुआ हमारी ऐसा ज़हाँ मयस्सर हो जहां ना दर्द से कोई रोता हो ना किसी के रोने पर कोई हंसता हो ना कोई भूखा रहता हो ना क...

"निरंतर" की कलम से.....: शर्म बोली हया से

"निरंतर" की कलम से.....: शर्म बोली हया से: सिसकियाँ लेते हुए शर्म बोली हया से बहन समय ने कैसी पलटी खाई है हमारी कितनी दुर्गति हो रही है दिन पर दिन इज्ज़त धूल में मिल रही है...

"निरंतर" की कलम से.....: सोच में एकरूपता चाहता

"निरंतर" की कलम से.....: सोच में एकरूपता चाहता: ना पर्वत श्रंखलाएं एक ऊंचाई की होती ना सारी नदियाँ एक गति से बहती ना पक्षी इकसार होते ना पेड़ पौधे एक आकार के होते फिर क्यों मनुष्...

Monday, August 5, 2013

"निरंतर" की कलम से.....: अब कातिल ही मुंसिफ हो गया है

"निरंतर" की कलम से.....: अब कातिल ही मुंसिफ हो गया है: मुल्क का हाल इतना बेहाल हो गया है अब कातिल ही मुंसिफ हो गया है इन्साफ क्या ख़ाक मिलेगा हर लम्हा डर कर जीना पडेगा खून का...

"निरंतर" की कलम से.....: अगर छोटी छोटी बात में रूठना हो तो

"निरंतर" की कलम से.....: अगर छोटी छोटी बात में रूठना हो तो: अगर छोटी छोटी बात में रूठना हो तो मुझसे मित्रता मत करना एक क्षण के लिए भी दुःख का कारण मत बनना कहीं ऐसा ना हो मित्रता के नाम से ह...

"निरंतर" की कलम से.....: अब कातिल ही मुंसिफ हो गया है

"निरंतर" की कलम से.....: अब कातिल ही मुंसिफ हो गया है: मुल्क का हाल इतना बेहाल हो गया है अब कातिल ही मुंसिफ हो गया है इन्साफ क्या ख़ाक मिलेगा हर लम्हा डर कर जीना पडेगा खून का...

"निरंतर" की कलम से.....: कहने की ललक में

"निरंतर" की कलम से.....: कहने की ललक में: तुमने जिव्हा पर नियंत्रण खो दिया केवल कहने की ललक में किसी व्यक्ति विशेष पर स्थिति परिस्थिति पर बिना सोचे समझे कुछ कह दिया यह तुम...

Saturday, August 3, 2013

"निरंतर" की कलम से.....: सच कहने के फितरत ने बहुत जुल ढाए हम पर

"निरंतर" की कलम से.....: सच कहने के फितरत ने बहुत जुल ढाए हम पर: सच कहने के फितरत ने बहुत जुल ढाए हम पर हवाओं ने भी ढेरों इलज़ाम लगाए हम पर चाँद की रौशनी में भी शोले बरसाए गए हम पर दोस्त तो बहुत ...

"निरंतर" की कलम से.....: आवाज़ थर्राने लगी,कंठ भर्राने लगे

"निरंतर" की कलम से.....: आवाज़ थर्राने लगी,कंठ भर्राने लगे: आवाज़ थर्राने लगी कंठ भर्राने लगे इंसानियत को झुलसते देख इंसानों के ह्रदय रोने लगे लाचार हो कर शर्म से मुंह छिपाने लगे यही ह...

"निरंतर" की कलम से.....: व्यथित क्यों होते हो

"निरंतर" की कलम से.....: व्यथित क्यों होते हो: इच्छाएं पूरी नहीं हुई  तो  व्यथित क्यों होते हो क्यों निराशा के भंवर में फंसते हो इच्छाएं तो राम कृष्ण की भी पूरी नहीं हुई ...

Friday, August 2, 2013

"निरंतर" की कलम से.....: मेरा वतन लुट रहा है,मेरा चमन लुट रहा है

"निरंतर" की कलम से.....: मेरा वतन लुट रहा है,मेरा चमन लुट रहा है: मेरा वतन लुट रहा है मेरा चमन लुट रहा है हर दिन सियासत का नया खेल हो रहा है मोहब्बत के पौधों को उखाड़ा जा रहा है नफरत के काँट...

"निरंतर" की कलम से.....: आज जब नानी की बात चली

"निरंतर" की कलम से.....: आज जब नानी की बात चली: आज जब नानी की बात चली मन के कोने में दबी नानी की एक एक बात याद आ गयी उनके अल्हड़पन की सुनहरी कहानी आँखों को नम कर गयी तूँ इतना ह...

Thursday, August 1, 2013

"निरंतर" की कलम से.....: आईने कितने भी बदलूँ

"निरंतर" की कलम से.....: आईने कितने भी बदलूँ: आईने कितने भी बदलूँ अक्स उसका ही दिखता चहरे कितने भी देखूं हर चेहरे में अक्स उसका ही दिखता ख्व्वाब भी देखूं तो अक्स उसका ही ...

"निरंतर" की कलम से.....: परेशां नहीं हूँ लोगों से

"निरंतर" की कलम से.....: परेशां नहीं हूँ लोगों से: परेशां नहीं हूँ लोगों से परेशां हूँ लोगों के हाल से परेशानी नहीं हूँ बीमार को देख कर परेशां हूँ बीमारी से कौन करेगा इलाज़ नफरत की ...

"निरंतर" की कलम से.....: उनके दिल जलते रहे

"निरंतर" की कलम से.....: उनके दिल जलते रहे: हम अकेले थे वो बहुत थे नफरत से भरे थे अहम् में चूर थे हमारे सुख उनसे देखे ना गए वो पत्थर मारते गए चोट खा कर भी हम मुस्काराते रहे  ...

Wednesday, July 31, 2013

"निरंतर" की कलम से.....: कौन बाँध सका है

"निरंतर" की कलम से.....: कौन बाँध सका है: कौन बाँध सका है हवाओं को कौन बाँध सका है उजाले को नहीं बाँध सका कोई इच्छाओं को जिसने भी बांधा बांधा भावनाओं को तड़पाया ह...

"निरंतर" की कलम से.....: पहले धरती को जी भर के देख लूं

"निरंतर" की कलम से.....: पहले धरती को जी भर के देख लूं: ना अम्बर की ऊंचाई नापना चाहता हूँ ना समुद्र की गहराई जानना चाहता हूँ पहले धरती को जी भर के देख लूं वृक्षों से जी भर के बात...

Tuesday, July 30, 2013

"निरंतर" की कलम से.....: मन व्यथा मुक्त हो तो

"निरंतर" की कलम से.....: मन व्यथा मुक्त हो तो: वह दिन अच्छा नहीं लगता जिसमें सूरज तो चमकता है मगर रात का आभास होता है वह रात भी अच्छी लगती है जिसके घनघोर अँधेरे में भी उजाले का आ...

"निरंतर" की कलम से.....: परम्पराओं का संसार

"निरंतर" की कलम से.....: परम्पराओं का संसार: काल बदला समय बदला नहीं बदला तो परम्पराओं का संसार नहीं बदला सदियों से जंजीरों में जकड़ा मान्यताओं का ताला नहीं खुला जीना कितना भी द...

"निरंतर" की कलम से.....: जीवन सत्य

"निरंतर" की कलम से.....: जीवन सत्य: मन की भावनाएं हो ह्रदय का प्रेम हो पेट में रोटी नहीं तो सिवाय भूख मिटाने के कुछ याद नहीं आता जीवन भावनाओं और प्रेम से अधिक आवश...

"निरंतर" की कलम से.....: किनारे के डर से

"निरंतर" की कलम से.....: किनारे के डर से: कोई किश्ती किनारे नहीं लगी फिर भी किनारा खुद में मस्त था अहम् से भरा था किसी से कोई मतलब ना था इस किनारे से कोई किश्ती कभ...

Saturday, July 27, 2013

"निरंतर" की कलम से.....: गुलमोहर

"निरंतर" की कलम से.....: गुलमोहर: मेरे घर  के बाहर लगा गुलमोहर का पेड मेरे जीवन का मूक साथी है अटूट रिश्ते का दर्पण है मेरे दादाजी ने बचपन में नित्य पानी से सींचन...

"निरंतर" की कलम से.....: तेरे प्रेम में इतना डूबा हूँ

"निरंतर" की कलम से.....: तेरे प्रेम में इतना डूबा हूँ: तेरे प्रेम में इतना डूबा हूँ चाहे  दिन में देखूं रात में देखूं खुली आँखों से देखूं बंद आँखों से देखूं सपने में देखूं साक्षात द...

"निरंतर" की कलम से.....: कहीं बम फटे

"निरंतर" की कलम से.....: कहीं बम फटे: कहीं बम फटे मैं शक से देखा जाता हूँ खाकी निकर पहन कर निकलता हूँ तो काफिर कहलाता हूँ कहीं मस्जिद में कुछ  फेंका  जाता है मु...

"निरंतर" की कलम से.....: किनारे के डर से

"निरंतर" की कलम से.....: किनारे के डर से: कोई किश्ती किनारे नहीं लगी फिर भी किनारा आसूदा हो गया या तो इस किनारे से कोई किश्ती कभी पानी में उतरी ही नहीं उतरी तो भी ...

"निरंतर" की कलम से.....: बरगद का पेड़

"निरंतर" की कलम से.....: बरगद का पेड़: मेरे घर के बाहर लगा बरगद का पेड़ आकाश से गिरने वाली वर्षा की नन्ही बूंदों को पत्तों की गोद में लेकर उन्हें धीरे से धरती पर लुड्का ...

Thursday, July 25, 2013

"निरंतर" की कलम से.....: बिना किसी का सच जाने

"निरंतर" की कलम से.....: बिना किसी का सच जाने: किसी ने किसी को बुरा इंसान बताया बिना किसी का सच जाने कहने वाले का मंतव्य जाने तुमने उसे गीता का पाठ समझ मन में बिठा लिय...

Wednesday, July 24, 2013

"निरंतर" की कलम से.....: निश्चय अटल है

"निरंतर" की कलम से.....: निश्चय अटल है: जगत में अन्धकार घना है मगर मन उजाले से भरा है ऊर्जा से उफन रहा है पथ कठिन है मगर निश्चय अटल है धमनियों में उबलता रक्त है अ...

Tuesday, July 23, 2013

"निरंतर" की कलम से.....: पूर्वाग्रह से ग्रस्त

"निरंतर" की कलम से.....: पूर्वाग्रह से ग्रस्त: मेरा लिखा आपको अच्छा नहीं लगे तो कोई बात नहीं बिना पढ़े, बिना सोचे समझे मन में पूर्वाग्रह से ग्रस्त हो कर अगर आप ने कहा मैंने जो...

"निरंतर" की कलम से.....: पहली मुलाक़ात में ही

"निरंतर" की कलम से.....: पहली मुलाक़ात में ही: पहली मुलाक़ात में ही वो हमसे नाराज़ हो गए उन्हें तारीफ़ की उम्मीद थी हम हकीकत बयान कर गए बैठे ठाले एक दुश्मन और बढ़ा ब...

"निरंतर" की कलम से.....: जो मन कहता है

"निरंतर" की कलम से.....: जो मन कहता है: जो मन कहता है अवश्य करो पर करने से पहले क्या मन चेतन है जान लो जीवन की विषमताओं को सूक्ष्म दृष्टि से परख लो...

"निरंतर" की कलम से.....: प्रश्न यह नहीं है

"निरंतर" की कलम से.....: प्रश्न यह नहीं है: प्रश्न यह नहीं है किसी से कुछ मिलेगा या नहीं मिलेगा प्रश्न यह भी नहीं कोई कुछ देगा या ना देगा जिससे भी मन मिलता है जिसे भी ह...

"निरंतर" की कलम से.....: बात करने में क्या बिगड़ता है

"निरंतर" की कलम से.....: बात करने में क्या बिगड़ता है: जब लोगों को कहते सुनता हूँ बात करने में क्या बिगड़ता है बड़े बोल बोलने में क्या जाता है सोचने लगता हूँ कितना अच्छा होता ...

"निरंतर" की कलम से.....: हमने देखी है दोस्तों में मुर्रवत इतनी

"निरंतर" की कलम से.....: हमने देखी है दोस्तों में मुर्रवत इतनी: हमने देखी है दोस्तों में मुर्रवत इतनी चोट हमारे लगती थी आह उनकी निकलती थी अब देखते हैं अपनों  की  मोहब्बत इतनी हमारे चोट लगती...

"निरंतर" की कलम से.....: क्या अधूरा नहीं है

"निरंतर" की कलम से.....: क्या अधूरा नहीं है: क्या अधूरा नहीं है इच्छाएं अधूरी रहती हैं आशाएं अधूरी रहती हैं ज्ञान अधूरा रहता है भावनाएं अधूरी रहती हैं कोई रिश्ता पूरा नहीं...

"निरंतर" की कलम से.....: हवा जब वृक्षों से आलिंगन करती है

"निरंतर" की कलम से.....: हवा जब वृक्षों से आलिंगन करती है: हवा जब  वृक्षों से आलिंगन  करती है पत्ता पत्ता डाली डाली झूमने लगती है चूम कर पत्तों को हवा जब सरसराती हुई अपने कर्तव्य पथ...

"निरंतर" की कलम से.....: सब्र का पैमाना

"निरंतर" की कलम से.....: सब्र का पैमाना: लोगों के सब्र का पैमाना इतना छलक चुका है अहम् इतना बढ़ चुका है कौन कब रूठ जाएगा अब पता ही नहीं चलता बात सोच समझ कर कही गयी हो...

"निरंतर" की कलम से.....: मन के बीहड़ में

"निरंतर" की कलम से.....: मन के बीहड़ में: मन के बीहड़ में जब बहम की दीमक पाँव फैलाने लगती हैं विश्वास के वृक्षों की जडें खोखली होने लगती हैं वृक्ष सूखने लगते हैं अव...

"निरंतर" की कलम से.....: सोने ना दिया

"निरंतर" की कलम से.....: सोने ना दिया: रात में सोने ना दिया दिन में जागने ना दिया हमसे वक़्त का लम्हा लम्हा छीन लिया ज़िन्दगी का कतरा कतरा अपने नाम कर लिया उसकी मो...

"निरंतर" की कलम से.....: हर नया दिन

"निरंतर" की कलम से.....: हर नया दिन: हर नया दिन एक कोरा कागज़ दिखता है पर कोरेपन के पीछे छिपी होती हैं असीम कुंठाएं अनगिनत यादें अनेकानेक इच्छाएं अपार आशाएं मन का  ...

"निरंतर" की कलम से.....: बात सच्ची भी थी मगर अनजाने में हुयी गलती भी थी

"निरंतर" की कलम से.....: बात सच्ची भी थी मगर अनजाने में हुयी गलती भी थी: बात सच्ची भी थी मगर अनजाने में हुयी गलती भी थी ये तो नहीं समझा तुमने बस बात को ह्रदय से लगा लिया तुमने हर गुहार को अनदेखा कर दिया त...

"निरंतर" की कलम से.....: मेरी ख़ामोशी का मतलब

"निरंतर" की कलम से.....: मेरी ख़ामोशी का मतलब: मेरी ख़ामोशी से मत समझना तुम्हे चाहा नहीं , तुम्हे पाया तो नहीं , फिर भी खोया नहीं खवाबों ख्यालों मैं, रहती दखल तुम्हारी, ...

"निरंतर" की कलम से.....: त्वरित न्याय

"निरंतर" की कलम से.....: त्वरित न्याय: छ महीने पहले किसी ने भीड़ भरे बाज़ार में उसके पती का क़त्ल कर दिया निश्चिंतता से हाथ में हथियार में लिए भीड़ में गुम हो गया ...

"निरंतर" की कलम से.....: हम खुद को बदलते रहते है

"निरंतर" की कलम से.....: हम खुद को बदलते रहते है: हम खुद को बदलते रहते हैं कोई ना बदले कभी कैसे कहें खुद नकाब लगा कर रहते हैं लोगों को दोगला कैसे कहें खुद दिल में नफरत रखते हैं ...

"निरंतर" की कलम से.....: उम्र में बड़ा होना तुम्हें अधिकार नहीं देता

"निरंतर" की कलम से.....: उम्र में बड़ा होना तुम्हें अधिकार नहीं देता: उम्र में बड़ा होना तुम्हें अधिकार नहीं देता छोटों को कुछ भी कह दो तुम अपना बचपन याद करो उचित बात पर भी जब बड़ों की उचित अन...

"निरंतर" की कलम से.....: क्यों हमसे घबराते हो ?

"निरंतर" की कलम से.....: क्यों हमसे घबराते हो ?: क्यों हमसे घबराते हो ? देख कर छुप जाते हो अगर निष्कपट हो  ह्रदय में पाप नहीं मन में शक नहीं तो सामने आओ आँखों से आँखें मिलाओ हँ...

"निरंतर" की कलम से.....: "मैं भी गुणी हूँ”

"निरंतर" की कलम से.....: "मैं भी गुणी हूँ”: क्यों हर बात में हर कार्य में  "मैं भी गुणी हूँ” जताने का प्रयत्न करते हो तुम बहुत बुद्धिमान हो लोगों को बताने का प्र...

"निरंतर" की कलम से.....: यही ज़िन्दगी है...

"निरंतर" की कलम से.....: यही ज़िन्दगी है...: एक मैं हूँ एक तुम हो एक वो है हम सब हैं अगर नहीं है तो केवल "निरंतर" वो ही तो कहता था कोई था तो सही मगर आज नही...

"निरंतर" की कलम से.....: आदमी से लड़ रहा है आदमी

"निरंतर" की कलम से.....: आदमी से लड़ रहा है आदमी: खुद से लड़ रहा है आदमी अपने परायों से लड़ रहा है आदमी आदमी से लड़ रहा है आदमी पर जीत किसी से नहीं रहा है आदमी अहम् से हार रहा है आदमी...

"निरंतर" की कलम से.....: ज़िन्दगी जब ग़मों के दरिया में डूबी हो

"निरंतर" की कलम से.....: ज़िन्दगी जब ग़मों के दरिया में डूबी हो: ज़िन्दगी जब ग़मों के दरिया में डूबी हो ज़माना दुश्मन लगता है लोगों की सरगोशियाँ भी साज़िश महसूस होती हैं किसी की मुस्काराहट ...

"निरंतर" की कलम से.....: क्षितिज पर हुआ मिलन जब गगन का धरा से

"निरंतर" की कलम से.....: क्षितिज पर हुआ मिलन जब गगन का धरा से: क्षितिज पर हुआ मिलन जब गगन का धरा से नम आँखों को देख कर गगन बोला धरा से अनभिग्य नहीं हूँ तुम्हारी व्यथा से तुमने ही पाला पोसा मनु...

"निरंतर" की कलम से.....: मार्ग दर्शन

"निरंतर" की कलम से.....: मार्ग दर्शन: तेल भी है दिया भी है बाती भी है पर आग  लगाने वाला कोई नहीं हिम्मत भी है होंसला भी है इच्छा भी है मगर पथ बताने वाला  ...

"निरंतर" की कलम से.....: क्योंकि मैं

"निरंतर" की कलम से.....: क्योंकि मैं: क्योंकि मैं केवल पीठ थपथपाने के लिए किसी की पीठ नहीं थपथपाता मेरी पीठ भी कोई नहीं थपथपाता इसमें बुरा भी क्या है उलटा मेर...

"निरंतर" की कलम से.....: हमने कुछ खोया है तो कुछ कमाया भी है

"निरंतर" की कलम से.....: हमने कुछ खोया है तो कुछ कमाया भी है: ज़िन्दगी में हमने कुछ खोया है तो कुछ कमाया भी है प्यार खोया है तो गम पाया भी है धोखा खाया है तो कुछ सीखा भी है गिर गिर कर ...

"निरंतर" की कलम से.....: ना जाने क्या हो गया है लोगों को

"निरंतर" की कलम से.....: ना जाने क्या हो गया है लोगों को: ना जाने क्या हो गया है लोगों को उन्हें खिजा मंज़ूर है मगर बहारें किसी और की हों तो देख कर रोते हैं जो मंदिर को पूजते हैं मस्...

"निरंतर" की कलम से.....: अति सब पर भारी पड़ती है

"निरंतर" की कलम से.....: अति सब पर भारी पड़ती है: नदी किनारे लगे उस पेड़ का क्या कसूर जो उफनती नदी के बहाव में उखड जाता है बदहवास भागती भीड़ के रेले में उस बालक का क्या कसू...

"निरंतर" की कलम से.....: क्यों मिलूँ किसी से

"निरंतर" की कलम से.....: क्यों मिलूँ किसी से: क्यों मिलूँ किसी से जब तक कोई स्वार्थ नहीं क्यों समय गवाऊं जब तक कोई लाभ नहीं क्यों मन के रिश्ते बनाऊँ जब इंसान को इंसान की ...

"निरंतर" की कलम से.....: खुली जब आँख

"निरंतर" की कलम से.....: खुली जब आँख: खुली जब आँख तो जिसे भी अपना समझा वही पराया निकला फूलों की चाहत में दहकता हुआ अंगारा निकला सोचा था ज़िन्दगी भर साथ निभाएगा...

"निरंतर" की कलम से.....: जो मर गया देश के खातिर

"निरंतर" की कलम से.....: जो मर गया देश के खातिर: जो मर गया देश के खातिर उसे मर जाने दो दिखाने के लिए दो बूँद आसूं तुम भी बहा लो वो रोते रहेंगे जिनका कोई अपना संसार से ज...

"निरंतर" की कलम से.....: कुछ पलों के लिए

"निरंतर" की कलम से.....: कुछ पलों के लिए: खुद से बेहतर कोई नहीं लगा जो मन से सुनेगा मेरे मन की बातें लोग तो आज सुनेंगे कल कान से निकाल देंगे दुःख भी कम ना होंगे रह...

"निरंतर" की कलम से.....: दिन हो या रात

"निरंतर" की कलम से.....: दिन हो या रात: दिन हो या रात पूनम हो या अमावस बसंत हो या सावन मन व्यथित है जीना कठिन है तब तक  सब इकसार मेरे लिए 31-87-16-02-2013 व्यथ...

"निरंतर" की कलम से.....: सच कह देता हूँ

"निरंतर" की कलम से.....: सच कह देता हूँ: मैं जानता हूँ तुम मुझसे सदा नाराज़ रहोगे मुझसे नफरत करोगे मेरी हर बात को नापसंद करोगे मन में जानते हो मगर अहम् से भरे हो ...

"निरंतर" की कलम से.....: इंसान हूँ

"निरंतर" की कलम से.....: इंसान हूँ: इंसान हूँ समाज का हिस्सा हूँ मजबूरी में भीड़ के साथ रहता हूँ पर भीड़ से अलग चलता हूँ विवेक से सोचता हूँ त्रुटियों से सीखत...

"निरंतर" की कलम से.....: अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गयी खेत

"निरंतर" की कलम से.....: अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गयी खेत: मित्र को बाहों में सर छुपाये बैठा देखा विषाद का कारण पूछा रुआंसा होकर बोला   पहले मैं हंसता था सब पर आज सब मुझ पर हँस रहे हैं...

"निरंतर" की कलम से.....: हास्य कविता-रिश्वत मांगना अब मेरा भी धर्म हो गया ह...

"निरंतर" की कलम से.....: हास्य कविता-रिश्वत मांगना अब मेरा भी धर्म हो गया ह...: सरकारी डाक्टर की पत्नी ने पति से बुखार की दवाई मांगी डाक्टर ने तुरंत फीस मांग ली पत्नी बिफर गयी झल्ला कर बोली कैसे इंसान हो ज़रा भी...

"निरंतर" की कलम से.....: प्यार मोहब्बत सब झूठी बातें

"निरंतर" की कलम से.....: प्यार मोहब्बत सब झूठी बातें: प्यार मोहब्बत सब झूठी बातें रिश्ते नाते सब झूठी बातें जब तक दूसरों के मन की नहीं करो सारे बातें बेकार की बातें 26-82-16-02-201...

"निरंतर" की कलम से.....: पता नहीं कब हँसना होगा

"निरंतर" की कलम से.....: पता नहीं कब हँसना होगा: पता नहीं कब हँसना होगा पता नहीं कब तक सहना होगा अगर यही जीवन है तो क्या हर पल लड़ना होगा ऐसे ही जीना होगा ऐसे ही जाना होगा अगर...

"निरंतर" की कलम से.....: कैसे बताऊँ

"निरंतर" की कलम से.....: कैसे बताऊँ: कैसे बताऊँ तुम्हें कितना चाहता हूँ तुम इस कदर नफरत करने लगे हो गर सीना चाक कर भी दिल पर लिखा तुम्हारा नाम दिखा दूं तो भी ...

"निरंतर" की कलम से.....: हर देशवासी को भाई बना देता

"निरंतर" की कलम से.....: हर देशवासी को भाई बना देता: काश मराठी लिख पाता गुजराती पढ़ पाता बंगाली समझ पाता तमिल में गा पाता कन्नड़ बोल सकता तेलुगु में हँसी मज़ाक कर सकता पंजाबी...

"निरंतर" की कलम से.....: जब तक तुम मुझे अच्छे लगते हो

"निरंतर" की कलम से.....: जब तक तुम मुझे अच्छे लगते हो: जब तक तुम मुझे अच्छे लगते हो तुम्हारी हर बात मुझे अच्छी लगती रहेगी पर कब तक जब तक हमारे मन से मन मिलते रहेंगे जब अहम् अहं...

Monday, April 15, 2013

कौन सदा हुआ किसी का



कौन सदा हुआ किसी का
किसने सदा साथ निभाया
किसी का
दो जिस्म एक जान भी
बिछड़े इक दिन
इक रह गया इक चला गया
क्यों उम्मीद करते हो फिर तुम
बिछड़ेंगे नहीं कभी हम तुम
बांधते हो झूठी आशाएं मन में
सच से दूर
रहते हो तुम
मन को कठोर कर लो
सच को स्वीकार लो तुम
हमें भी इक दिन अलग होना है
किसी को पहले किसी को
बाद में जाना है
छोड़ दो मोह
जी लो खुशी से
जब तक जीना है
बस सुख दुःख में
साथ निभा लो तुम
22-78-15-02-2013
जीवन,साथ ,साथी
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर

Sunday, April 14, 2013

अकेला चला था



अकेला चला था
ज़िन्दगी के सफ़र में
लोग मिलते रहे रास्ते में
काफिला बनता गया
हकीकत से बेखबर था
सोचा था काफिला चलेगा
मंजिल पर पहुँचने तक
काफिला बिखरता गया
हर शख्श साथ छोड़ता  गया
जहाँ से चला था
फिर वहीँ पहुँच गया
अकेला चलना शुरू किया था
आज फिर अकेला रह गया
21-77-14-02-2013 
ज़िन्दगी, काफिला, अकेला
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर

कैसा ज़माना आ गया है



कैसा ज़माना आ गया है
लोग चाहते हैं
भीड़ में शामिल हो कर
भीड़ में शामिल लोगों की
वाही वाही करो
काले को सफ़ेद
सफ़ेद को काला कहो
धमकी देते हैं
नहीं करोगे तो भीड़ से
निकाल दिए जाओगे
इंसान कैसा भी हो
हमें सीधे सच्चे
लोगों की ज़रुरत नहीं है
हम ज़माने के साथ चलते हैं
हमें हाँ में हाँ
मिलाने वालों की ज़रुरत है
जो नहीं मिलाये
वो जात बाहर है
हमारे लिए बेकार हैं
20-76-13-02-2013
भीड़,ज़माना,कैसा ज़माना आ गया ,भीड़ 
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर

Saturday, April 13, 2013

फूलों की महक चिड़ियों की चहक



फूलों की महक
चिड़ियों की चहक
कल कल करते
पानी की ध्वनि
बेफिक्र बालक की हँसी
शहद की मिठास
साज़ की आवाज़
अगर चुरा कर रख लेता
तो अकेलापन
काटने को नहीं दौड़ता
19-75-12-02-2013
अकेलापन
 डा.राजेंद्र तेला,निरंतर 

Thursday, April 11, 2013

खुदा ने भेजा था



खुदा ने भेजा था
इंसान की शक्ल में
फ़रिश्ता ज़मीन पर
सोचा था खुदा का नुमाइन्दा
बन कर जियेगा
ज़मीन पर ज़न्नत बसाएगा
उसे पता ना था
आब-ओ-हवा ज़मीन की
कुछ ऐसी निकलेगी
फ़रिश्ता भी
हैवान बन जाएगा
गर पता होता तो पहले
ज़मीन की
आब-ओ-हवा बदलता
फिर ज़मीन पर भेजता
इंसान को
18-74-11-02-2013
आब-ओ-हवा, खुदा,इंसान,फ़रिश्ता,हैवान
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर

Wednesday, April 10, 2013

हास्य कविता -हँसमुखजी -पीछा छूटने की ख़ुशी में



हँसमुखजी  खुद को
धुरंधर हास्य कवि समझते थे
अफ़सोस मगर उनकी रचनाओं पर
खुद अधिक लोग कम हँसते थे
एक बार कविता पाठ के अंत में
 उन्होंने थके पिटे मुंह लटकाए
श्रोताओं से भावुकता में कह दिया
कविता पाठ समाप्त होने के बाद
आपकी ज़ोरदार तालियों ने
मुझे भाव विव्हल कर दिया
अगली बार मैं आपको
अधिक कवितायें सुनाऊंगा
बाल नोचते हुए एक श्रोता
पूरी ताकत से चिल्लाया
कवि महोदय लोग आपको नहीं
दूसरे कवियों को सुनने आते हैं
आपसे पीछा छूटने की ख़ुशी में
ज़ोरदार तालियाँ बजाते हैं
आपकी दो चार कवितायें भी
बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं
सुनते सुनते हँसने की जगह
रोने लगते हैं 
ज्यादा कवितायें सुनाओगे
तो दो चार लोग दुःख में
आत्म ह्त्या कर लेंगे
आप हास्य कवि के स्थान पर
मातमी कवि कहलाओगे
17-73-09-02-2013
हँसमुखजी , हास्य,व्यंग्य,हास्य कविता ,हँसी
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर

Monday, April 8, 2013

जब भी करता हूँ दोस्ती किसी से



जब भी करता हूँ
दोस्ती किसी से
शक्ल-ओ-सूरत नहीं देखता
जो भी दिल को भा गया
उसे ही दोस्त बना लेता
ना देखता हूँ उम्र उस की
जिसने भी मन को लुभाया
उसे ही दोस्त बना लेता
ना देखता धन दौलत
ना देखता मर्द औरत
जो भी देता मुझे सुकून
खुदा का अक्स समझ कर
उसे ही दोस्त बना लेता
न सोचता कभी
क्या देगा ,क्या देना पडेगा
जो करता नहीं हिसाब
दोस्ती में
उसे ही दोस्त बना लेता
16-72-08-02-2013
दोस्त,दोस्ती,उम्र,जीवन ,मित्र,मित्रता 
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर

मार्च की दोपहर


मार्च की दोपहर
पतझड़ का मौसम
पीले पत्ते टूट कर
हवा में उड़ रहे
धरती पर बिखर रहे
नए पत्ते
जन्म लेने को आतुर
टहनी की
कोख में पल रहे
वृक्ष निस्तेज खड़े
असमंजस में डूबे
बिछड़ों के दुःख में
आसूं बहाएँ
या आनेवालों का
स्वागत करें
15-71-08-02-2013
मार्च,मौसम,पतझड़ ,वृक्ष
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर

Sunday, April 7, 2013

उसकी बेवफाई का जवाब कैसे देता


उसकी बेवफाई का
जवाब कैसे देता
उसको चाहा है दिल से
पलट के वार कैसे करता
वो ज़ुल्म कितने भी ढाए
हँसके सहने के सिवाय
और क्या करता
तुझे चाहने की खता करी मैंने
अब इस खता की सज़ा चाहता हूँ
अब तुम ही खुदा मेरे
तुम्हारी 
इबादत करना चाहता हूँ
जब दिल तुझे दे ही दिया
दर्द-ऐ-दिल की दवा चाहता हूँ
तुम ही चारागर मेरे
अब इलाज़ भी तुमसे चाहता हूँ
14-70-07-02-2013
दर्द-ऐ-दिल, बेवफाई, चाहत,मोहब्बत
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर
चारागर=चिकित्सक

Saturday, April 6, 2013

सूरज के चढ़ने के साथ


सूरज के
चढ़ने के साथ
आशाएं भी चढ़ने
लगती
चेहरे की उदासी
लुप्त होने के डर से
घबराने लगती
मन के दरवाज़े पर
हँसी की आहट
सुनायी पड़ने लगती
शाम होते होते
उदासी फिर से
चहकने लगती
सूर्य रश्मियाँ
क्षितिज की गोद में
छुप जाती
एक बार फिर
आशाएं
मुंह चुरा लेती
13-69-06-02-2013
उदासी, आशाएं
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर

Friday, April 5, 2013

उतने ही पैर पसारिये जितनी लम्बी सोर


कुछ लोगों की टोपी
उनके सर से छोटी होती है
कुछ लोगों की टोपी
उनके सर से बड़ी  होती हैं
दोनों ही स्थितियों में
भद्दी लगती है
कुछ लोग अपनी
औकात से
बड़ी बात करते हैं
कुछ लोग अपनी
औकात से कम करते हैं
वो लोग
ज्यादा सुन्दर दिखते हैं
जिनकी टोपी
सर पर ठीक बैठती है
वो लोग ज्यादा खुश रहते हैं
जो औकात में रहते हैं
जितनी लम्बी सोर
उतने ही पैर पसारते हैं
12-68-05-02-2013
औकात,दंभ,उतने ही पैर पसारिये जितनी लम्बी सोर
डा.राजेंद्र तेला ,निरंतर

नाम की चाहत में



इंसान से बड़े
इंसान के साए हो गए हैं
नाम की चाहत में
अहम् के दास बन गए हैं
होड़ के संसार में
इंसानियत भूल गए हैं
अपनों से पराये हो गए हैं
इंसान कम
इंसान के पुतले रह गए हैं
भ्रम में जी रहे हैं
09-65-05-02-2013
इंसान ,इंसानियत,जीवन,चाहत
डा.राजेंद्र तेला ,निरंतर

Thursday, April 4, 2013

नदी के दो किनारे



हमारे सम्बन्ध
नदी के दो किनारों
जैसे हो गए  हैं
किनारे मिल भी नहीं सकते 
संबंधों का बहता पानी
दोनों किनारों को
सामान रूप से छूता है
इस कारण
अलग भी नहीं हो सकते
अगर यही मनोस्थिति रही
स्वार्थ और घ्रणा से पानी
इस हद तक दूषित हो जाएगा
एक दिन दोनों किनारे
टूट जायेंगे
हमारे सम्बन्ध भी
कभी ना बनने के लिए
नदी के पानी की तरह
बिखर जायेंगे
ऐसा हो उससे पहले आओ
एक कदम मैं बढाता हूँ
एक कदम तुम बढ़ाओ
अहम् को
मन से निकाल फैंको
बहते पानी को
रिश्तों का पुल समझ कर 

दोनों किनारों को मिला दो
08-64-04-02-2013
रिश्ते,सम्बन्ध,किनारे,नदी के किनारे ,जीवन
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर

Wednesday, April 3, 2013

हास्य कविता-हास्य कवी हँसमुखजी



हँसमुखजी अपने को
हास्य कवी समझते थे
घमंड में जीते थे
लोग कविताओं पर कम
उनकी शक्ल सूरत पर
अधिक हँसते थे
लोगों को हँसते देख
हँसमुखजी घमंड की
एक सीढ़ी और चढ़ जाते थे
लोगों भी ज्यादा
 ठहाके लगाने लगते थे
एक दिन उनके सर पर
घड़ों पानी पड़ गया
जब उनकी कविताओं से
पीडित
एक श्रोता से रहा नहीं गया
उनसे कह दिया
हँसमुखजी आपकी
कवितायें  बहुत मार्मिक होती हैं
अगर आपकी शक्ल सूरत
अजीब नहीं होती
तो किसी को बाल भर भी
हँसी नहीं आती
रोते रोते जान ही निकल जाती
कवितायें हकीकत बन जाती
07-63-03-02-2013
हास्य ,हास्य कविता,हँसी,हास्य व्यंग्य
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर

Tuesday, April 2, 2013

सियासत की चाहत में



सियासत की चाहत में
जब ज़मीर ही बेच दिया
कैसे दीन-ओ-ईमान
की बात करूँ
गद्दी के नशे ने इस हद तक
खुदगर्ज़ बना दिया
इंसानियत ही भूल गया
कोई अपना भी रास्ते में
आ जाए
उसे भी मौत की नींद सुला दूं
इंसान के भेष में हैवान
बन गया हूँ
कैसे खुदा से दुआ करूँ
04-60-02-02-2013
सियासत,इंसानियत,खुदगर्ज़, दीन-ओ-ईमान

Monday, April 1, 2013

दिल चीर कर भी रख दूं


दिल चीर कर भी रख दूं
तुझसे मोहब्बत
साबित हो नहीं सकती
कितनी भी गुहार लगाऊँ
सच्चाई
बयाँ हो नहीं सकती
जब तक तुझे
यकीन नहीं मुझ पर
कुछ भी कहूं
मेरी हर बात तुझे
झूठी लगती रहेगी
02-58-01-02-2013
यकीन,विश्वास,मोहब्बत,ऐतबार   
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर

आओ अब कुछ नया किया जाए



आओ अब कुछ
नया किया जाए
लीक से हट कर
चला जाए
रिश्तों को
निभाया जाए
अपनों को अपना
बना कर रखा जाए
परायों को
अपना बनाया जाए
जीवन को
सुखद बनाया जाए
आओ अब कुछ
नया किया जाए
01-57-01-02-2013
रिश्ते,जीवन,सम्बन्ध ,अपने.पराये
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर   

Sunday, March 31, 2013

दिन ढल गया रात भी धोखा दे गयी



दिन ढल गया
रात भी धोखा दे गयी
उससे सपनों में
मिलने की इच्छा भी
पूरी ना हुयी
ह्रदय को ऐसे दर्द की
आदत नहीं है
जीना है अगर
हर अनहोनी के लिए
तैयारी करनी पड़ेगी
हार सहने की आदत भी
डालनी होगी
दर्द सहते सहते भी 
आँखों की
नमी सुखानी होगी
बेमन से ही सही
चेहरे पर हँसी भी
रखनी होगी
56-56-30-01-2013
जीवन,आदत,सहना, 
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर

Saturday, March 30, 2013

कभी सोचा भी ना था



बकरा खुशियों से
लबालब भरा था
उसे मिल रहा था
नित नया भोजन
ढेर सारा प्यार दुलार
कभी सोचा भी ना था
इंसान से मिलेगा
ऐसा सुन्दर व्यवहार
उसे आभास तक ना था
कल बकरा ईद पर
उसे कुर्बान होना है
जिबह होने से पहले
मोटा ताज़ा बनना है
ज़िंदा है जब तक
इतना लाड प्यार
मिल रहा है
सब के सर पर
उसका ही भूत

 सवार है
55-55-30-01-2013
व्यवहार,इंसान ,
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर

Friday, March 29, 2013

अब वो नज़र नहीं आती


वही खिड़की
वही सड़क
वही चलते दौड़ते लोग
मगर अब
आँखों को चैन
हवा में महक नहीं
चिड़िया तक
चहकती नहीं
कितना भी ढूंढूं
नज़रें गडाए बैठूं
मगर अब वो
नज़र नहीं आती 
54-54-28-01-2013
इंतज़ार,प्यार,मोहब्बत
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर