Saturday, April 6, 2013

सूरज के चढ़ने के साथ


सूरज के
चढ़ने के साथ
आशाएं भी चढ़ने
लगती
चेहरे की उदासी
लुप्त होने के डर से
घबराने लगती
मन के दरवाज़े पर
हँसी की आहट
सुनायी पड़ने लगती
शाम होते होते
उदासी फिर से
चहकने लगती
सूर्य रश्मियाँ
क्षितिज की गोद में
छुप जाती
एक बार फिर
आशाएं
मुंह चुरा लेती
13-69-06-02-2013
उदासी, आशाएं
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर

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