Thursday, April 4, 2013

नदी के दो किनारे



हमारे सम्बन्ध
नदी के दो किनारों
जैसे हो गए  हैं
किनारे मिल भी नहीं सकते 
संबंधों का बहता पानी
दोनों किनारों को
सामान रूप से छूता है
इस कारण
अलग भी नहीं हो सकते
अगर यही मनोस्थिति रही
स्वार्थ और घ्रणा से पानी
इस हद तक दूषित हो जाएगा
एक दिन दोनों किनारे
टूट जायेंगे
हमारे सम्बन्ध भी
कभी ना बनने के लिए
नदी के पानी की तरह
बिखर जायेंगे
ऐसा हो उससे पहले आओ
एक कदम मैं बढाता हूँ
एक कदम तुम बढ़ाओ
अहम् को
मन से निकाल फैंको
बहते पानी को
रिश्तों का पुल समझ कर 

दोनों किनारों को मिला दो
08-64-04-02-2013
रिश्ते,सम्बन्ध,किनारे,नदी के किनारे ,जीवन
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर

No comments: