Thursday, June 30, 2011

अच्छे कवियों को पढो ,मंथन और आत्मचिंतन करो

मैंने
एक कविता लिखी
प्रशंसा बहुत हुयी
बहुत खुशी मिली
उचित थी,अनुचित थी
या खुश करने की
चाल थी
पूर्णतया पता ना चली
अपने को बड़ा भारी
कवि समझने लगा
फिर मुलाक़ात
हंसमुखजी से हुयी
उन्होंने कविता पढी
मैंने सोचा अब प्रशंसा
सुनने को मिलेगी
प्रशंसा नहीं मिली
नसीहत अवश्य मिली
प्रयास प्रशंसनीय है
प्रशंसा को सर मत
चढाओ ,
अच्छे कवियों को पढो
मंथन और
आत्मचिंतन करो
बेहतर लिखने की
कोशिश करो
बात समझ आ गयी
अब खुद से बात
करता हूँ ,
अच्छा,बुरा जानने की
कोशिश करता हूँ
अच्छे पर खुश होता हूँ
बुरे पर पर विचार
करता हूँ
मित्रों,ज्ञानियों से
पूछता हूँ
कैसे दूर करूँ ?
सोचता हूँ
निरंतर इसी प्रयास में
रहता हूँ
29-06-2011
1115-141-06-11

Wednesday, June 29, 2011

आज कल हँसते हुए भी डरता हूँ

आज कल
हँसते हुए भी डरता हूँ
किस का
दिल दुःख जाए
कौन खफा हो जाए ?
बिना बात
दुश्मन हो जाए
अंजाम से घबराता हूँ
मन में मुस्कराता हूँ
निरंतर
लिख कर बताता हूँ
किस पर
क्या असर हुआ ?
जानने का
इंतज़ार करता हूँ
29-06-2011
1114-141-06-11

कल हकीकत थे,आज याद बन गए

कल हकीकत थे
आज याद बन गए
दिल के टुकड़े टुकड़े
हो गए
कल तक आँखों में
खुमार था
आज रो रो कर लाल हैं
कल और आज के
दरम्यान
क्या से क्या हो गया ?
हंसता हुआ चेहरा
मुरझा गया
ख्यालों में रहना बंद
हुआ
निरंतर इंतज़ार अब
ख़त्म हुआ
उनसे मिलना अब
ख़्वाबों में रह गया
29-06-2011
1113-140-06-11

पार्टियां बदलती, चेहरे बदलते ,सरकार वैसी ही रहती

चुनाव के नाम पर
चेहरे पर मुस्कान आती
पांच साल बाद राहत
मिलेगी
जनता को आशा की
नयी किरण दिखती
वादे वही होते
पार्टियां बदलती
चेहरे बदलते
सरकार वैसी ही रहती
जनता की हालत
बद से बदतर होती
समस्याएं बढ़ती रहती
जनता ठगी सी महसूस
करती
निरंतर आंसू बहाती
रहती
कब पांच साल बीतेंगे
सरकार बदलेगी
उम्मीद में जीते
रहते 
29-06-2011
1112-139-06-11

कुटिल भीड़ बनाते ,किसी पार्टी का नाम देते

आज तक
समझ ना सका
क्यों लोग भीड़ की
तरफ भागते ?
वही करते जैसा सब
करते
अच्छे बुरे से सारोकार
ना रखते
विवेक,अनुभव को
महत्त्व ना देते
भीड़ पैमाना उनका
कुटिल भीड़ बनाते
किसी पार्टी का नाम देते
भोले निरंतर जाल में
फसते
प्रजातंत्र में उसे
जनता और चुनाव
कहते
कुटिल लुभावने वादे
करते
साम दंड भेद से चुनाव
जीतते
सरकार बनाते
भोले निरंतर रोते
रहते
29-06-2011
1111-138-06-11

शिकारी को शिकार मिल गया

भँवरा इतराता हुआ
बगीचे में आया
खूबसूरत फूलों को
खिले देख मुस्कराया
फूलों को
 कुटिल निगाहों से
देखने लगा
अपना शिकार ढूँढने लगा
उधर फूल सोच रहे थे
भँवरा उनकी ख़ूबसूरती देख
 बाग़ में आया
फूल  घमंड में  इतराने लगे ,
अच्छे बुरे का ख्याल
भूल गए
भँवरे का निमंत्रण
ठुकरा ना सके
शिकारी को शिकार
मिल गया
भोलेपन में एक फूल
भँवरे के जाल में 
फँस गया
अपनी अस्मत लुटा बैठा
ख़ूबसूरती के घमंड में
निरंतर रोता रह गया
29-06-2011
1110-137-06-11

Tuesday, June 28, 2011

ना गम में ना खुशी में मलाल कोई

ना गम में
ना खुशी में
मलाल कोई
किसी सवाल का
कोई जवाब नहीं
अब उनका भी
ख्याल नहीं
भुगतना है जो
लिखा किस्मत में
अब और
कोई रास्ता नहीं
 ज़िन्दगी निरंतर अकेले
गुजारने के सिवाय
अब कोई
और चारा नहीं
28-06-2011
1109-136-06-11

उनके चक्कर में किसी और को छेड़ दिया

दिख गए थे हमें
देख कर भी ना
पहचाना हमें
हमने इशारा भी किया
उन्होंने देख कर भी
अनदेखा किया
हमने सब्र से काम लिया
उनके करीब पहुँच गए
हमें देख कर उन्होंने
किनारा कर लिया  
हमसे रहा ना गया
उनका हाथ पकड़ लिया
उन्होंने गाल पर तमाचा
जड़ दिया
हमारा सर भन्ना गया
गौर से देखा
किसी और को खड़े पाया
फिर ख्याल आया
नज़र का चश्मा घर
रह गया
उनके चक्कर में
किसी और को छेड़ दिया
निरंतर हफ्ते में
सातवीं बार धोखा
खाया
28-06-2011
1108-135-06-11