Tuesday, June 14, 2011

सपने हम देखते ,पूरे किसी और के होते

हमने उनके ख़त का
जवाब ना दिया
उन्होंने किनारा लिया
सारे वादों को
झटके में तोड़ दिया
हमें बेसहारा कर दिया
ये भी ना पूछा
जवाब क्यूं नहीं दिया
कैसे बताऊँ
ख़त हमें मिला ही नहीं
उन्होंने पता पड़ोसी का
लिख दिया
हमें तब मालूम चला
जब पड़ोसी ने शादी का
बुलावा दिया
हमारे साथ निरंतर
ऐसा ही होता आया
कभी नाम तो कभी पता
बदल जाता
सपने हम देखते
पूरे किसी और के होते
14-06-2011
1046-73-06-11

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