बूढा बीमार था
पेड़ के नीचे अकेला
बैठा था
अपना कोई ना था
हर आने जाने वाले को
आशा से देखता
हर शख्श अपने में
व्यस्त था
किसी को उसका
ध्यान ना था
चेहरे की
झुर्रियों के पीछे
जीवन का सत्य
छुपा था
धूप और शीत को
भुगता था
सुख और दुःख के
पलों से
जीवन को सींचा था
कई अपनों को
खोया था
प्यार और तिरस्कार
दोनों को सहा था
हंसना,रोना होता रहा
निरंतर थपेड़े खाता रहा
जीवन गुजारता रहा
उम्र के उस पड़ाव पर
पहुँच गया
जहां सिर्फ दुआ का
सहारा था
जितना भी बचा था
किसी तरह काटना था
वो एक भिखारी था
06-06-2011
1007-34-06-11
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