कहाँ गए वो लोग
जो पराये दर्द में भी
रोते थे
अपनों से ज्यादा
अपने होते थे
हर नाज़ नखरा
उठाते थे
निरंतर हिम्मत और
सहारा देते थे
खुद ग़मों के
दरिया में बहते थे
दूसरों को हंसाते थे
परायों को अपना
कहते
किनारे पहुंचाते
खुद डूब जाते थे
मोहब्बत से सरोबार
होते थे
खुद से ज्यादा
दूसरों के लिए
जीते थे
07-06-2011
1019-46-06-11
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