Tuesday, July 31, 2012

हम खुद में इतने पागल हैं



हम खुद में इतने
पागल हैं
अपनों को दुश्मन
समझते हैं
ज़हर को अमृत समझ
कर पीते हैं
खुशहाली हमको
पसंद नहीं
बदनामी का डर नहीं
खुद के हाथों से खुद
आग लगाते हैं
खुद बेचैन रहते हैं
दूजे का
चैन भी छीनते हैं
ना खुद सो पाते हैं
ना दूजों को सोने देते हैं
हँसती गाती ज़िन्दगी को
आंसूओं से भर देते हैं
हम खुद में इतने
पागल हैं
31-07-2012
640-37-07-12

आज जब इम्तहान का वक़्त आया



बहुत जीवट वाला
समझते थे सब मुझको
मैं भी खुद को
फौलाद समझता था
आज जब इम्तहान का
वक़्त आया
तो अपने को कमज़ोर पाया
फौलाद नहीं हूँ
सिद्ध करने के लिए
सबको
लाचारी बताने लगा
हकीकत से रूबरू
कराने लगा
कौन मानता हकीकत मेरी ?
खुद के ही जाल में
फंस गया
सबको चेहरे पर चेहरा
चढ़ा नज़र आया
बहुत फ़रियाद करी
नतीजा कुछ ना निकला
सबको सच में झूठ
नज़र आया
31-07-2012
639-36-07-12

पता चल जाता था क्या पकाया ?,क्या खाया उन्होंने ?



पता चल जाता था
क्या पकाया ?
क्या खाया उन्होंने ?
कहाँ गए थे?
कौन आया था घर उनके
कौन खुश हुआ?
कौन नाराज़ उनसे?
सुबह से शाम का
हर लम्हा आँखों के सामने
यूँ गुजर जाता जैसे
मैंने ही गुजारा हो
कभी मान मनुहार घर
बुलाने की
पसंद का खाना खिलाने की
फिर ना जाने क्या हुआ
बातों का सिलसिला
थम गया
रिश्तों का घडा चूने लगा
धीरे धीरे बातें कम
होने लगी
दुआ सलाम भी बंद
हो गयी
अध खिला फूल
पूरा खिले ही रह गया
वो अहसास
अब मन की टीस
बन गया
याद कर के खुद को
खुश रखना मजबूरी
हो गया
कब महकेगा ?
पाक रिश्तों का फूल
कब फिर भरेगा ?
बातों का मटका
निरंतर इंतज़ार में
रहता हूँ
उम्मीद में जीता हूँ
31-07-2012
638-35-07-12

हर सुबह से आज की सुबह कुछ ख़ास थी



हर सुबह से आज की
सुबह कुछ ख़ास थी
हर सुबह से अलग जो थी
साजों ने सुरों से सन्धी करी
संगीत की धारा बह निकली
चहचहाती चिड़ियों ने
चुप्पी साध ली
बहती पुरवाई थम गयी
पेड़ों के पत्ते
मदमस्त हो कर झूमने लगे
फिजा महक से सरोबार हो गयी
आज संगीत के साथ
प्रियतम की मधुर आवाज़ में
एक सुरीले गीत की गूँज थी
आज की सुबह खास थी
हर सुबह से अलग थी
उनकी वाणी की मिश्री
जो घुली थी
31-07-2012
637-34-07-12

ठहरे पानी में तुमने एक पत्थर फैंक दिया



ठहरे पानी में तुमने
एक पत्थर फैंक दिया
शांत तालाब में
ज़लज़ला मच गया
तुम्हारा चेहरा
मुस्काराहट से भर गया
मछलियों में
डर का संचार कर दिया
तुमने इतना भी नहीं सोचा
उनको डराने का अधिकार
तुम्हें किसने दिया
कभी सोचा तुमने
क्यों  ऐसा व्यवहार किया
केवल इसलिए कि
वो निर्बल है तुमसे
अपने आमोद का
साधन बना लिया
अपने बल के घमंड में
निरीह मछलियों को
हैरान किया
31-07-2012
636-33-07-12

मैं समझता था



मैं समझता था
जीवन में बहुत कुछ
पाया मैंने
ज़िन्दगी को भरपूर
जिया मैंने
अब बुढापा आराम से
काटूंगा
जो नहीं किया अब तक
वह सब करूंगा
दुनिया छोड़ने से पहले
हर इच्छा पूरी  करूंगा
कितना गलत था मेरा सोच
जब देखा मैंने
मेरे आस पास कोई
खुश नहीं था
पहले तो समझा सब गलत
केवल मैं सही था
समय के साथ सब ठीक
हो जाएगा
कुछ इंतज़ार के बाद पाया
सब सही मैं ही गलत था
देर तो हो चुकी थी
मगर होश नहीं खोया था
निरंतर प्रयास में लगा हूँ
जो मुझे मिला उसका
सम्मान करूँ
जो नहीं मिला उसकी
इच्छा नहीं रखूँ
जीते जी अपनों को खुश
नहीं कर सका
दुनिया से जाने से पहले
अगर उन्हें
खुशी नहीं दे सका
तो समझूंगा
जो भी किया अब तक
सब व्यर्थ था
मैं केवल अपने लिए
जिया था
31-07-2012
635-32-07-12

Monday, July 30, 2012

आंसूओं से पूछा ,तुम बहते क्यूं हो



आंसूओं से पूछा
तुम बहते क्यूं हो
दिल से पूछा
तुम बेचैन क्यूं हो
मन से पूछा
तुम अनमने क्यूं हो
चेहरे से पूछा
तुम उदास क्यूं हो
चेहरा बोला
दिल बेचैन जो है
दिल बोला
मन अनमना जो है
मन बोला
आँखें नम जो हैं
चारों से एक साथ पूछा
सच बताओ वजह क्या है
चारों एक साथ बोले
तुम प्रियतम से दूर
अकेले जो हो
30-07-2012
634-31-07-12


Sunday, July 29, 2012

जोर जबरदस्ती से दबाते हैं लोग


उसने मुझे
अपशब्द कहे
मैंने धीरे से कहा
अपशब्द तो मत कहो
वो जोर से बोला
पहले तुमने कहे
मैंने धीमी आवाज़ में
उत्तर दिया
मैंने तो कुछ नहीं कहा
वो चिल्ला कर बोला
तुमने मुझे अपशब्द कहे
अब माफी मांगो
लोग इकट्ठा हो गए
मैं चुप रहा
क्या करूँ
समझ नहीं आया?
लोग भी चिल्लाने लगे
माफी मांगो
अब समझ आ गया
चिल्ला कर झूठ को सच
सच को झूठ साबित
कैसे करते हैं लोग
कैसे भीड़ को
अपने साथ लेते हैं लोग
ताकत के बल पर
रुलाते हैं
सच्चे इंसान को
जोर जबरदस्ती से
दबाते हैं लोग
29-07-2012
633-30-07-12

क्या हमें भूल गए तुम ?



क्या हमें भूल गए तुम?
जो हमसे दूर रहकर भी
खुश दिखते हो तुम
या हमें सताने के लिए
खुश नहीं होते हुए भी
खुश दिखते हो तुम
क्या हमसे खफा हो तुम
जो हमसे दूर रहकर भी
खुश दिखते हो तुम
अब तुम्ही बताओ
कैसे मनाएं तुमको हम
हमसे दूर रहकर
खुश नहीं दिखो तुम
29-07-2012
632-29-07-12

दर्द-ऐ-दिल किसी से कह ना सका



दर्द-ऐ-दिल
किसी से कह ना सका
मन ही मन घुटता रहा
दिल बेचारा भी
थक गया
एक दिन कहने लगा
कब तक अकेले
ज़िन्दगी गुजारोगे
अब दर्द से किनारा
कर लो
किसी और से मुझे
मिला दो
मन को सुकून
मुझ को राहत दे दो
29-07-2012
631-28-07-12

खुश होने की वजह


उन्होंने
हमारे खुश होने की
वजह पूछी
हमने असलियत
बयान कर दी
उनसे कह दिया
आपको खुश देखा तो
हम भी खुश हो गए
हमसे रहा ना गया
उनसे भी
उनकी खुशी का राज
पूछ लिया
जवाब में वो बोली
हम भी आपको देख कर
खुश हो रहे थे
29-07-2012
630-27-07-12

मुस्काराते चेहरे



हम
इस लिए नहीं
मुस्काराते
क्यों की हम खुश हैं
हम सिर्फ इसलिए
मुस्काराते हैं
क्यों की
मुस्काराते चेहरे
सब को अच्छे
लगते
29-07-2012
629-26-07-12

उनकी हर बात से डरता हूँ



उनकी हर बात से
डरता हूँ
कब तक रहेंगे खुश
समझ नहीं पाता हूँ
कब हो जायेंगे नाराज़
जान नहीं पाता हूँ
खुद से लड़ता रहता हूँ
निरंतर दुआ करता हूँ
कुछ कहना सुनना भी
छोड़ दिया
गलत ना समझ जाएँ
इस बात से डरता हूँ
अब खामोश रहता हूँ
अकेले में रोता हूँ
चुपचाप सहता हूँ
29-07-2012
628-25-07-12

नयी नवेली दुल्हन थी


प्रियतम तडके घर से
काम पर निकल गए
बिना प्रियतम दिन
कैसे कटेगा  ?
रात सुहानी थी
दिन कैसा होगा ?
कब लौटेंगे प्रियतम ?
सोच में डूबी थी
अनमने भाव से काम में
लगी थी
प्रियतम के बिना
मन उदास था
समय काटे नहीं कट
रहा था
सब बोझ लग रहा था,
बिना प्रियतम बिन पानी के
मछली सी तड़प रही थी
उसका संसार अब 
प्रियतम में
सिमट गया था
वही लक्ष्य ,वही सपना
वही अब जीवन उसका
नयी नवेली दुल्हन थी
विवाह के बाद की दूसरी
सुबह थी
29-07-2012
627-24-07-12

ईमान की बातें



ईमान की बातें
कहने सुनने में अच्छी
लगती
अफ़सोस कि
हमेशा सच नहीं होती
पानी में चाँद की
परछाई सी होती
बेईमानी के  अक्स से
ज्यादा नहीं होती
दिखती तो है
मगर हाथ लगाते ही
काई सी फिसल जाती
वक़्त  के गहरे पानी में
गुम हो जाती
कितना भी रखे ईमान कोई
कभी कभी तो
नियत डोल ही जाती
29-07-2012
626-23-07-12

तब से अब तक



संगीत की
मदमाती धुनों के बीच
सहेलियों के साथ नृत्य में
तल्लीन थी
अचानक हाथ को
सुहावना स्पर्श मिला
एक सुखद अनुभूती का
आभास हुआ
एक सिहरन शरीर में 
दौड़ गयी
गूँज ह्रदय में पहुँच गयी
ह्रदय उल्लास से कहने लगा
यही वो सपना है
जिसे तुम
निरंतर देखती रही हो
साकार करने के लिए
अब तक भटक रही हो
जाओ उसका आलिंगन करो
उसमें समा जाओ
उस ने तुरंत गर्दन घुमायी
मनमोहिनी सूरत को
देखते ही निस्तेज हो गयी
मुंह से एक
शब्द भी नहीं निकला
अब लक्ष्य की प्राप्ती
 हो जायेगी
विचारों में मग्न अपनी
सुध बुध खो दी
यथार्थ के संसार में लौटी 
तो सब कुछ धुंधला गया
लाख प्रयत्न के बाद भी
सिवाय सहेलियों के
कोई नहीं दिखा ,
सपना टूट गया
विश्वास ही नहीं हुआ
लहर किनारे से मिलने से
पहले ही
आशाओं के समुद्र में
विलीन हो गयी
तब से अब तक फिर
लक्ष्य की खोज में
भटक रही है
29-07-2012
625-22-07-12