हर सुबह से
आज की
सुबह कुछ ख़ास
थी
हर सुबह से
अलग जो थी
साजों ने सुरों
से सन्धी करी
संगीत की धारा
बह निकली
चहचहाती चिड़ियों
ने
चुप्पी साध
ली
बहती पुरवाई
थम गयी
पेड़ों के पत्ते
मदमस्त हो कर
झूमने लगे
फिजा महक से
सरोबार हो गयी
आज संगीत के
साथ
प्रियतम की
मधुर आवाज़ में
एक सुरीले गीत
की गूँज थी
आज की सुबह
खास थी
हर सुबह से
अलग थी
उनकी वाणी की
मिश्री
जो घुली थी
31-07-2012
637-34-07-12
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