Sunday, March 31, 2013

दिन ढल गया रात भी धोखा दे गयी



दिन ढल गया
रात भी धोखा दे गयी
उससे सपनों में
मिलने की इच्छा भी
पूरी ना हुयी
ह्रदय को ऐसे दर्द की
आदत नहीं है
जीना है अगर
हर अनहोनी के लिए
तैयारी करनी पड़ेगी
हार सहने की आदत भी
डालनी होगी
दर्द सहते सहते भी 
आँखों की
नमी सुखानी होगी
बेमन से ही सही
चेहरे पर हँसी भी
रखनी होगी
56-56-30-01-2013
जीवन,आदत,सहना, 
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर

Saturday, March 30, 2013

कभी सोचा भी ना था



बकरा खुशियों से
लबालब भरा था
उसे मिल रहा था
नित नया भोजन
ढेर सारा प्यार दुलार
कभी सोचा भी ना था
इंसान से मिलेगा
ऐसा सुन्दर व्यवहार
उसे आभास तक ना था
कल बकरा ईद पर
उसे कुर्बान होना है
जिबह होने से पहले
मोटा ताज़ा बनना है
ज़िंदा है जब तक
इतना लाड प्यार
मिल रहा है
सब के सर पर
उसका ही भूत

 सवार है
55-55-30-01-2013
व्यवहार,इंसान ,
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर

Friday, March 29, 2013

अब वो नज़र नहीं आती


वही खिड़की
वही सड़क
वही चलते दौड़ते लोग
मगर अब
आँखों को चैन
हवा में महक नहीं
चिड़िया तक
चहकती नहीं
कितना भी ढूंढूं
नज़रें गडाए बैठूं
मगर अब वो
नज़र नहीं आती 
54-54-28-01-2013
इंतज़ार,प्यार,मोहब्बत
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर 

Thursday, March 28, 2013

तशद्दुद से अमन चाहते हो


तशद्दुद 

 से
अमन चाहते हो
नफरत से
मोहब्बत चाहते हो
बन्दूक की गोली से
फूल चाहते हो
तुम रास्ता भटक चुके हो
पत्थर से पानी
निकालना चाहते हो
इंसान हो कर
इंसान को मारते हो
दहशतगर्दी को
मज़हब बचाना कहते हो
ज़न्नत की ख्वाहिश में
दोजख के सफ़र पर
चलते हो
वक़्त रहते खुदा के
कहर से
खुद को बचा लो
क़ज़ा मिले इससे पहले
नापाक ख्याल छोड़ दो
इंसान हो
इंसान बन कर जी लो
53-53-28-01-2013
तशद्दुद=हिंसा,दहशतगर्दी=आतंकवाद ,मज़हब=धर्म
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर
तशद्दुद=हिंसा
दहशतगर्दी=आतंकवाद   
मज़हब=धर्म 

Wednesday, March 27, 2013

इस बार की होली



इस बार की होली 
यादगार बन जाए 
बिछड़ों को मिलाये
मन के रंज मिटाए  
दुसमन दोस्त बन जाए
इच्छाएं पूरी हो जाएँ 
जीवन में रंग भर जाए 
चेहरे खुशी से दमक जाएँ 
इस बार की होली 
जीवन भर याद आये
52-52-27-01-2013
होली, यादगार
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर

हम भूल गए


हम भूल गए होली पर

गली मोहल्ले नाचना गाना
,
चंग बजाना  हँसना हँसाना

प्रेम भाईचारे से मिलना जुलना
,
रंग गुलाल से होली खेलना

गिले शिकवे दूर करना

याद रह गया केवल ई मेल.

एस एम एस भेजना
51-51-27-01-2013
होली ,ई मेल, एस एम एस,
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर

Tuesday, March 26, 2013

अब समझ भी लेंगे तो क्या फर्क पडेगा



जब ज़िन्दगी भर
नहीं समझ सके मुझ को
अब समझ भी लेंगे
तो क्या फर्क पडेगा
ज़िन्दगी भर
रोने सहने के बाद
ना मन खुश होगा
ना चेहरे पर हँसी आयेगी
उनकी नाराजगी का डर
इस हद तक बैठ चुका है
मन में
मुझे खुश देख कर
कहीं नाराजगी नहीं
बढ़ जाए उनकी
48-48-26-01-2013
ज़िन्दगी,नाराजगी,समझ ,ना समझ,खुशी
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर

अरसे बाद घर की छत पर एक परिंदा नज़र आया



अरसे बाद
घर की छत पर
एक परिंदा नज़र आया
उससे पूछ लिया
आज कल परिंदों का
शहर की ओर आना कम
क्यों हो गया?
परिंदे ने आश्चर्य से देखा
फिर सहमते हुए बोला
तुम इंसान हो कर
ऐसा कह रहे हो
लगता है तुम में
अभी इंसानियत बची है
इसलिए
यह प्रश्न पूछ रहे हो
मैं मन से नहीं आया
मेरे दादा से
शहर के किस्से सुने
तो रहा नहीं गया
मैं भी शहर देखने
आ गया
अब डर रहा हूँ
इंसान की नज़रों में
आने के बाद
क्या लौट भी पाऊंगा
या मेरे हज़ारों
रिश्तेदारों जैसे
किसी इंसान का
शिकार हो कर
शहर में ही जान
दे दूंगा
47-47-26-01-2013
प्रकृति,पक्षी,परिंदे,पर्यायवरण,जीव जंतु
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर

Monday, March 25, 2013

ये साज़िश भी कैसी बला है


ये साज़िश भी कैसी बला है 
कभी मन ह्रदय से करता
कभी ह्रदय मन से करता
कभी दोस्त
दोस्त को नहीं छोड़ता
कभी अपना पराये से
कभी पराया अपने से
कभी संतान माँ बाप से
माँ बाप संतान से
पत्नी पति से,पति पत्नी से
बात मनवाने के लिए
साज़िश करता
कभी मौसम भी साज़िश
करने से बाज़ नहीं आता
गर्मी में सर्दी तो सर्दी में गर्मी
का अहसास देता
काला बादल बिन बरसे
गुम हो जाता
जिसने भी बनायी साज़िश
उससे प्रार्थना करता हूँ
जितना भी बचा सके
बचा ले मुझको साजिशों से
46-46-25-01-2013
साज़िश
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर

महाकाव्य लिखने के प्रयास में



महाकाव्य
लिखने के प्रयास में
चंद कवितायें तक
नहीं लिख सका
कलम तो थकी नहीं
हिम्मत का कागज़
जवाब दे गया
अपनों के
प्रतिकार से सहम कर
सदा की तरह चुप
हो गया
खुद के दुखों को
बाज़ार करने से
बच गया
45-45-24-01-2013
हिम्मत, प्रतिकार
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर

Sunday, March 24, 2013

अब मैंने डायरी लिखना बंद कर दिया है


अब मैंने डायरी लिखना
बंद कर दिया है
डायरी के पन्ने खुद भी पढता हूँ
तो उबकाई आने लगती है
डायरी भरी हुई है
रिश्तों के टूटने की यादों से
दोस्ती को दुश्मनी में
बदलने के किस्सों से
इर्ष्या और होड़ में फंसे
लोगों के किस्सों से
अपनों पर अपनों के
हमले की कहानियों से
विश्वाश पर विश्वासघात की
जीत के रोमांच से भरी 
घटनाओं से
सोचता हूँ अगर डायरी
किसी बच्चे के हाथ पड़ गयी
खेलने कूदने की उम्र में ही
उसे ज़िन्दगी की हकीकत
पता चल जायेगी
समय से पहले ही उसे
ज़िन्दगी से घ्रणा होने लगेगी
जब तक दूर है
ज़िन्दगी के काले सच से
तब तक तो ज़िन्दगी को
हँसते खेलते जी ले
इसलिए अब मैंने डायरी
लिखना ही बंद कर दिया है
केवल यादों उजले पक्ष से भरे
पन्नो को सम्हाल कर रखूंगा
बाकी पन्नों को नष्ट कर दूंगा
44-44-24-01-2013
विश्वाश, विश्वासघात,यादें ,ज़िन्दगी,जीवन,याद,इर्ष्य,रिश्ते ,डायरी
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर

Saturday, March 23, 2013

हास्य कविता --हँसमुखजी बोले...



हँसमुखजी बोले मित्र से
कल तुम मेरे घर आये थे
मैं तुम्हारे घर गया था
तुम्हें मैं घर पर नहीं मिला
मुझे तुम घर पर नहीं मिले
मित्र बेचैन हो कर बोला
क्यों राई का पहाड़ बना रहे हो
आगे बोलो फिर क्या हुआ
हँसमुखजी बोले सब्र रखो
सुनो तो सही
मेरे घर भी ताला लगा था
तुम्हारे
घर पर भी ताला लगा था
मित्र बोला
क्यों हैरान कर रहे हो
आगे क्या हुआ वो बताओ
हँसमुखजी बोले
आगे क्या होना था
तुम अपने घर लौट गए
मैं अपने घर लौट गया
दोनों की इच्छा पूरी नहीं हुई
मिलना कल चाहते थे
मिलना आज हुआ
43-43-23-01-2013
हास्य,हास्य कविता,हँसमुखजी
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर  

मन के अँधेरे कोने में छुपी व्यथा



मन के अँधेरे
कोने में छुपी व्यथा
बार बार मन को
कचोटती है
क्यों उसे एकांत के
अँधेरे में बाँध रखा है
खोखली हंसी के पीछे
छुपा रखा है
कितना भी हँस लो
चेहरे पर चेहरा चढ़ा लो
एक दिन सब्र का बाँध
टूट ही जाएगा
मैं बाहर आ जाऊंगी
तब भी तो तुम्हें
दुनिया को अपना असली
चेहरा दिखाना पडेगा
क्यों ना आज ही मुझे
मन के अँधेरे कोने से
बाहर निकाल कर
कुंठा मुक्त कर दो
तुम स्वयं भी कुंठा
मुक्त हो जाओ
42-42-23-01-2013
मन ,व्यथा,व्यथित कुंठा,जीवन
डा.राजेंद्र तेला ,निरंतर

Friday, March 22, 2013

रात को चांदनी मुस्काराई होगी



रात को
चांदनी मुस्काराई होगी
सवेरे धूप भी खिली होगी
सड़कों पर
चहल पहल हुई होगी
चिड़ियाएं चचहाई होगी
मंदिर की
घंटियाँ भी बजी होगी
पर उसे क्या
उसकी ज़िन्दगी तो
समाप्त होने वाली है
थोड़ी देर में उसे
फांसी होने वाली है
सदा के लिए तन्हाई
विदा लेने वाली है
41-41-22-01-2013
जीवन, मृत्यु ,तन्हाई, फांसी
डा.राजेंद्र तेला ,निरंतर  

आज तक मनुष्य को नहीं समझ पायी



शहर में गोरिय्या का
बुरा हाल हो गया है
किसी पेड़ पर कोई
बसेरा नहीं बनाने देता
किसी घर में खुशी से
कोई आने नहीं देता
भूले से पहुँच भी जाए
तो भगा दी जाती
गुलेल से
जान बच भी जाए
तो बहेलियों के जाल में
फंस जाती
जीने की इच्छा लिए
निरंतर
मौत का सामना करती
अंतिम क्षण तक हार
नहीं मानती
जीवन दुरूह होता है
यह तो समझ गयी
पर आज तक मनुष्य को
नहीं समझ पायी
40-40-22-01-2013
गोरिय्या, मनुष्य, प्रकृति,पर्यावरण,पक्षी,चिड़िया
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर

Thursday, March 21, 2013

तुमने समझा जीवन एक नर्म बिछोना है



जीवन के
दुर्गम पथ पर
चलता रहा
ठोकर खा कर
गिरता रहा
उठ कर फिर
चलता रहा
सदा हँसता रहा
तुम थोड़ा सा
चल कर थक गए
ठोकर खा कर बैठ गए
बिना दुःख के रोते रहे
तुमने समझा
जीवन एक नर्म
बिछोना है
मैंने समझा
जीवन लक्ष्य है
निरंतर चलते रहना
कर्तव्य है
39-39-21-01-2013
जीवन,लक्ष्य, कर्तव्य
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर

Wednesday, March 20, 2013

"निरंतर" की कलम से.....: कुछ पल के लिए ही सही

"निरंतर" की कलम से.....: कुछ पल के लिए ही सही: ह्रदय की हलचल मन की खुशी जीवन की व्यथा मैंने सांझा करी तुमसे मैं नहीं कहता तुम भी सांझा करो अपने ह्रदय की हलचल मन की खुशी...

कुछ पल के लिए ही सही



ह्रदय की हलचल
मन की खुशी
जीवन की व्यथा
मैंने सांझा करी तुमसे
मैं नहीं कहता
तुम भी सांझा करो
अपने ह्रदय की हलचल
मन की खुशी
पर जीवन की व्यथा तो
सांझा कर लो मुझसे
सुलझा तो नहीं पाऊंगा
पर दिलासा तो दे पाऊंगा
कुछ पल के लिए ही सही
तुम्हारे मन को
चैन तो दे पाऊंगा
38-38-19-01-2013
चैन,हलचल,दिलासा,सांझा करना,व्यथा ,जीवन   
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर

Tuesday, March 19, 2013

कोई सुहाए ना सुहाए


चाहो तो
ह्रदय से पूछ लो
चाहो तो मन से पूछ लो
कौन सुहाता 
कौन नहीं सुहाता
कोई सुहाए ना सुहाए
चाहे मजबूरी कह दो
चाहे लाज शर्म से कह दो
रिश्ता तो फिर भी
निभाना पड़ता
जब निभाना ही है
क्यों ना हँस कर निभाओ
तनाव मुक्त रहो
स्वयं भी खुश रहो
दूसरों को भी खुश रखो
37-37-18-01-2013
रिश्ते,सम्बन्ध ,तनाव,जीवन
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर

हार कर भी जीत जाऊंगा



मैं इतना बलशाली नहीं
तुमसे लोहा ले सकूँ
पर इतना निर्बल भी नहीं
तुम्हारे
निरंकुश दुर्व्यवहार का
प्रतिरोध ना कर सकूँ
मैं हार भले ही जाऊं
पर हार मानूंगा नहीं
सिद्ध कर दूंगा
बलवान से निर्बल भी
लड़ सकता है
दुर्व्यवहार का प्रतिरोध
कर सकता है
मैं हार कर भी जीत
जाऊंगा
हर निर्बल को
हिम्मत से भर दूंगा
उसके मन से
बल के आगे झुकने का
भय हटा दूंगा
उसे आत्मविश्वास का
मन्त्र दे पाऊंगा
36-36-18-01-2013
बलवान,निर्बल,हिम्मत,दुर्व्यवहार,आत्मविश्वास, ,हार,जीत
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर

Monday, March 18, 2013

अगर मैं तुम्हें समझना चाहूँ



अगर मैं
तुम्हें समझना चाहूँ
तो मुझे भी
तुम्हारे जैसे सोचना होगा
तुम मुझे समझना चाहो तो
तुम्हें भी
मेरे जैसे ही सोचना होगा
पर यह आसान नहीं होगा
हमें
अहम् को छोड़ना होगा
एक दूसरे की स्थिति,
परिस्थिति का ध्यान
रखना होगा
स्वयं को दूसरे के स्थान पर
रख कर सोचना होगा
तभी हम एक दूसरे को
समझ पायेंगे
नहीं तो स्वयं को सही
दूसरे को गलत कहते रहेंगे
35-35-18-01-2013
सम्बन्ध,रिश्ते,समझना ,अहम्
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर

ज़माने की हवा कुछ ऐसी चली



ज़माने की हवा
कुछ ऐसी चली
धूप भी डर कर
छाया में रहने लगी
कोई दिन दहाड़े उसका
उजाला ही नहीं लूट ले
उसकी इज्ज़त से
नहीं खेल ले
घबरा कर
मुंह छिपाने लगी
कहीं और जा कर खिलूँ
परमात्मा से
प्रार्थना करने लगी
34-34-17-01-2013
इज्ज़त, इज्ज़त लूटना,बलात्कार,धूप,उजाला 
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर

Sunday, March 17, 2013

हाथों की लकीरों को देखता हूँ



हाथों की
लकीरों को देखता हूँ
सोचने लगता हूँ
भाग्य की प्रतीक्षा करूँ
या कर्म से भाग्य बनाऊँ
हाथों की ताकत को
काम में लूं
पर जानता हूँ
बिना कर्म भाग्य भी
साथ नहीं देता
हिम्मत और विवेक हो तो
भाग्य स्वयं बन जाता
सफलता को
कदम चूमने के लिए
बाध्य कर देता
भाग्य पर अत्यधिक
विश्वास रखने के लिए
स्वयं से क्षमा माँगता हूँ
कर्म में जुट जाता हूँ
30-30-15-01-2013
भाग्य,किस्मत,कर्म,विवेक
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर

Saturday, March 16, 2013

ये ख्वाब भी बड़े जिद्दी होते हैं


ये ख्वाब भी
बड़े जिद्दी होते हैं
बिन बुलाये ही आ जाते
अरमानों को
आसमान पर चढ़ा देते 
पूरा होने के इंतज़ार में
उम्र पूरी हो जाती
मगर ये कभी पूरे नहीं होते 
जिद पर अड़े रहते हैं
ख्व्वाब ही रह जाते हैं
30-30-16-01-2013    
ख्व्वाब, जिद, जिद्दी
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर

मिलना चाहूंगा उनसे जिनसे अभी तक मिला नहीं



मिलना चाहूंगा उनसे
जिनसे अभी तक
मिला नहीं
जानना चाहूंगा उन्हें
जिन्हें अभी तक
जाना नहीं
नहीं जान पाऊंगा
नहीं मिल पाऊंगा
तो तमन्ना साथ ले
जाऊंगा
पर भूलना चाहूंगा
उन्हें जो मिले तो सही
पर उनके दिल साफ़
नहीं थे
शक्ल सूरत से
इंसान दिखते ज़रूर थे
मगर इंसान नहीं थे
मगर जाने से पहले उन्हें
धन्यवाद
ज़रूर देकर जाऊंगा
उन्होंने ही
तो सिखाया मुझको
किसी की यादें साथ
लेकर जाऊं
किसकी यादें यहीं
छोड़ जाऊं
29-29-15-01-2013    
जीवन ,मिलना जुलना ,इंसान,यादें,याद
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर

Friday, March 15, 2013

विचारों से द्वंद्व करते करते



विचारों से
द्वंद्व करते करते
नींद की गोद में समाया ही था
खिड़की पर आहट ने
आधी नींद से जगा दिया
खिड़की खोलते ही हवा का
झोंका कमरे में आया
हवा से नींद भंग करने का
कारण पूछा
हवा मुस्काराते हुए बोली
बर्फीले पहाड़ों से होते हुए
गर्म रेगिस्तान में झुलसते हुए
नदी के बहते पानी को छूते हुए
वृक्षों के हरे भरे पत्तों के
बीच से छनते  हुए
महकते फूलों को चूमते हुए
तुम्हें बंद दरवाजों के
अँधेरे कमरे से
छुटकारा दिलाने आयी हूँ
आओ उठ खड़े हो जाओ
मेरे साथ चलो
प्रकृति का आनंद लो
व्यथा को कम करो
मेरे जैसे ही निरंतर बहते रहो
28-28-15-01-2013    
 हवा,पवन,वायु ,बयार ,पर्यावरण,जीवन , व्यथा,प्रकृति
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर

Thursday, March 14, 2013

अब कोई राम कृष्ण अर्जुन पैदा क्यों नहीं होता



अब कोई
 राम कृष्ण अर्जुन
पैदा क्यों नहीं होता
क्यों कंस रावण,दुशासन
ही पैदा होते हैं
क्या समय इतना
बदल गया है
या इश्वर इतना
उलझ गया है
पहचान ही नहीं पाता
किस को धरती पर
भेज रहा है
क्या नीचे आने वाले भी
चेहरे पर चेहरा
चढ़ा कर रहते हैं
इश्वर को
राम कृष्ण दिखते हैं
नीचे आते हैं तो
रावण,कंस निकलते हैं
27-27-14-01-2013    
कृष्ण,राम, इश्वर, अर्जुन
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर