Saturday, March 23, 2013

मन के अँधेरे कोने में छुपी व्यथा



मन के अँधेरे
कोने में छुपी व्यथा
बार बार मन को
कचोटती है
क्यों उसे एकांत के
अँधेरे में बाँध रखा है
खोखली हंसी के पीछे
छुपा रखा है
कितना भी हँस लो
चेहरे पर चेहरा चढ़ा लो
एक दिन सब्र का बाँध
टूट ही जाएगा
मैं बाहर आ जाऊंगी
तब भी तो तुम्हें
दुनिया को अपना असली
चेहरा दिखाना पडेगा
क्यों ना आज ही मुझे
मन के अँधेरे कोने से
बाहर निकाल कर
कुंठा मुक्त कर दो
तुम स्वयं भी कुंठा
मुक्त हो जाओ
42-42-23-01-2013
मन ,व्यथा,व्यथित कुंठा,जीवन
डा.राजेंद्र तेला ,निरंतर

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