Friday, March 22, 2013

आज तक मनुष्य को नहीं समझ पायी



शहर में गोरिय्या का
बुरा हाल हो गया है
किसी पेड़ पर कोई
बसेरा नहीं बनाने देता
किसी घर में खुशी से
कोई आने नहीं देता
भूले से पहुँच भी जाए
तो भगा दी जाती
गुलेल से
जान बच भी जाए
तो बहेलियों के जाल में
फंस जाती
जीने की इच्छा लिए
निरंतर
मौत का सामना करती
अंतिम क्षण तक हार
नहीं मानती
जीवन दुरूह होता है
यह तो समझ गयी
पर आज तक मनुष्य को
नहीं समझ पायी
40-40-22-01-2013
गोरिय्या, मनुष्य, प्रकृति,पर्यावरण,पक्षी,चिड़िया
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर

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