Friday, March 1, 2013

आज कुछ लिखूं या ना लिखूं



सोच रहा हूँ
आज कुछ लिखूं
या ना लिखूं
कागज़ को रीता छोड़ दूं
कलम को विश्राम दे दूं
मन में प्रश्न कोंधने लगता है
क्या कागज़ को मेरा
व्यवहार अच्छा लगेगा
कलम को भाएगा
उन्हें तो मेरे मन से निकले
शब्दों को अँधेरे से निकाल कर
उजाला दिखाने की आदत
पड़ चुकी है
आज कुछ नहीं लिखूंगा तो
कागज़ कलम का मन
कैसे लगेगा
इतना स्वार्थी नहीं हूँ
जिन्होंने सदा साथ निभाया
उनकी भावनाओं का
ध्यान ही नहीं रखूँ
यही सोच कर आज फिर
लिखने बैठ गया हूँ
01-03-01-01-2013
भावनाएं ,स्वार्थी,स्वार्थ,

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