Monday, March 11, 2013

कभी कभी पथ से भटक जाती है कलम



कभी कभी पथ से
भटक जाती है कलम
बालक की तरह
जिद पर अड़ जाती है
मुंह फुला लेती है कलम
कितना भी प्रलोभन दूं
मान मनुहार करूँ
नहीं मानती है कलम
मन की व्यथा निकालूँगा
प्यार की बातें लिखूंगा
ह्रदय को बहलाऊंगा 
हास्य कविताएँ लिखूंगा
खूब हँसूँगा हसाऊँगा
पर समझती नहीं कलम
इश्वर का नाम लिखूंगा
उसका गुणगान करूंगा
पर पसीजती नहीं कलम
कभी कभी पथ से
भटक जाती है कलम
बालक की तरह
जिद पर अड़ जाती है
मुंह फुला लेती है कलम
21-21-011-01-2013
कविता,कलम,पथ से भटकना ,
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर    

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