Monday, April 15, 2013

कौन सदा हुआ किसी का



कौन सदा हुआ किसी का
किसने सदा साथ निभाया
किसी का
दो जिस्म एक जान भी
बिछड़े इक दिन
इक रह गया इक चला गया
क्यों उम्मीद करते हो फिर तुम
बिछड़ेंगे नहीं कभी हम तुम
बांधते हो झूठी आशाएं मन में
सच से दूर
रहते हो तुम
मन को कठोर कर लो
सच को स्वीकार लो तुम
हमें भी इक दिन अलग होना है
किसी को पहले किसी को
बाद में जाना है
छोड़ दो मोह
जी लो खुशी से
जब तक जीना है
बस सुख दुःख में
साथ निभा लो तुम
22-78-15-02-2013
जीवन,साथ ,साथी
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर

Sunday, April 14, 2013

अकेला चला था



अकेला चला था
ज़िन्दगी के सफ़र में
लोग मिलते रहे रास्ते में
काफिला बनता गया
हकीकत से बेखबर था
सोचा था काफिला चलेगा
मंजिल पर पहुँचने तक
काफिला बिखरता गया
हर शख्श साथ छोड़ता  गया
जहाँ से चला था
फिर वहीँ पहुँच गया
अकेला चलना शुरू किया था
आज फिर अकेला रह गया
21-77-14-02-2013 
ज़िन्दगी, काफिला, अकेला
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर

कैसा ज़माना आ गया है



कैसा ज़माना आ गया है
लोग चाहते हैं
भीड़ में शामिल हो कर
भीड़ में शामिल लोगों की
वाही वाही करो
काले को सफ़ेद
सफ़ेद को काला कहो
धमकी देते हैं
नहीं करोगे तो भीड़ से
निकाल दिए जाओगे
इंसान कैसा भी हो
हमें सीधे सच्चे
लोगों की ज़रुरत नहीं है
हम ज़माने के साथ चलते हैं
हमें हाँ में हाँ
मिलाने वालों की ज़रुरत है
जो नहीं मिलाये
वो जात बाहर है
हमारे लिए बेकार हैं
20-76-13-02-2013
भीड़,ज़माना,कैसा ज़माना आ गया ,भीड़ 
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर

Saturday, April 13, 2013

फूलों की महक चिड़ियों की चहक



फूलों की महक
चिड़ियों की चहक
कल कल करते
पानी की ध्वनि
बेफिक्र बालक की हँसी
शहद की मिठास
साज़ की आवाज़
अगर चुरा कर रख लेता
तो अकेलापन
काटने को नहीं दौड़ता
19-75-12-02-2013
अकेलापन
 डा.राजेंद्र तेला,निरंतर 

Thursday, April 11, 2013

खुदा ने भेजा था



खुदा ने भेजा था
इंसान की शक्ल में
फ़रिश्ता ज़मीन पर
सोचा था खुदा का नुमाइन्दा
बन कर जियेगा
ज़मीन पर ज़न्नत बसाएगा
उसे पता ना था
आब-ओ-हवा ज़मीन की
कुछ ऐसी निकलेगी
फ़रिश्ता भी
हैवान बन जाएगा
गर पता होता तो पहले
ज़मीन की
आब-ओ-हवा बदलता
फिर ज़मीन पर भेजता
इंसान को
18-74-11-02-2013
आब-ओ-हवा, खुदा,इंसान,फ़रिश्ता,हैवान
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर

Wednesday, April 10, 2013

हास्य कविता -हँसमुखजी -पीछा छूटने की ख़ुशी में



हँसमुखजी  खुद को
धुरंधर हास्य कवि समझते थे
अफ़सोस मगर उनकी रचनाओं पर
खुद अधिक लोग कम हँसते थे
एक बार कविता पाठ के अंत में
 उन्होंने थके पिटे मुंह लटकाए
श्रोताओं से भावुकता में कह दिया
कविता पाठ समाप्त होने के बाद
आपकी ज़ोरदार तालियों ने
मुझे भाव विव्हल कर दिया
अगली बार मैं आपको
अधिक कवितायें सुनाऊंगा
बाल नोचते हुए एक श्रोता
पूरी ताकत से चिल्लाया
कवि महोदय लोग आपको नहीं
दूसरे कवियों को सुनने आते हैं
आपसे पीछा छूटने की ख़ुशी में
ज़ोरदार तालियाँ बजाते हैं
आपकी दो चार कवितायें भी
बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं
सुनते सुनते हँसने की जगह
रोने लगते हैं 
ज्यादा कवितायें सुनाओगे
तो दो चार लोग दुःख में
आत्म ह्त्या कर लेंगे
आप हास्य कवि के स्थान पर
मातमी कवि कहलाओगे
17-73-09-02-2013
हँसमुखजी , हास्य,व्यंग्य,हास्य कविता ,हँसी
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर

Monday, April 8, 2013

जब भी करता हूँ दोस्ती किसी से



जब भी करता हूँ
दोस्ती किसी से
शक्ल-ओ-सूरत नहीं देखता
जो भी दिल को भा गया
उसे ही दोस्त बना लेता
ना देखता हूँ उम्र उस की
जिसने भी मन को लुभाया
उसे ही दोस्त बना लेता
ना देखता धन दौलत
ना देखता मर्द औरत
जो भी देता मुझे सुकून
खुदा का अक्स समझ कर
उसे ही दोस्त बना लेता
न सोचता कभी
क्या देगा ,क्या देना पडेगा
जो करता नहीं हिसाब
दोस्ती में
उसे ही दोस्त बना लेता
16-72-08-02-2013
दोस्त,दोस्ती,उम्र,जीवन ,मित्र,मित्रता 
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर

मार्च की दोपहर


मार्च की दोपहर
पतझड़ का मौसम
पीले पत्ते टूट कर
हवा में उड़ रहे
धरती पर बिखर रहे
नए पत्ते
जन्म लेने को आतुर
टहनी की
कोख में पल रहे
वृक्ष निस्तेज खड़े
असमंजस में डूबे
बिछड़ों के दुःख में
आसूं बहाएँ
या आनेवालों का
स्वागत करें
15-71-08-02-2013
मार्च,मौसम,पतझड़ ,वृक्ष
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर

Sunday, April 7, 2013

उसकी बेवफाई का जवाब कैसे देता


उसकी बेवफाई का
जवाब कैसे देता
उसको चाहा है दिल से
पलट के वार कैसे करता
वो ज़ुल्म कितने भी ढाए
हँसके सहने के सिवाय
और क्या करता
तुझे चाहने की खता करी मैंने
अब इस खता की सज़ा चाहता हूँ
अब तुम ही खुदा मेरे
तुम्हारी 
इबादत करना चाहता हूँ
जब दिल तुझे दे ही दिया
दर्द-ऐ-दिल की दवा चाहता हूँ
तुम ही चारागर मेरे
अब इलाज़ भी तुमसे चाहता हूँ
14-70-07-02-2013
दर्द-ऐ-दिल, बेवफाई, चाहत,मोहब्बत
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर
चारागर=चिकित्सक

Saturday, April 6, 2013

सूरज के चढ़ने के साथ


सूरज के
चढ़ने के साथ
आशाएं भी चढ़ने
लगती
चेहरे की उदासी
लुप्त होने के डर से
घबराने लगती
मन के दरवाज़े पर
हँसी की आहट
सुनायी पड़ने लगती
शाम होते होते
उदासी फिर से
चहकने लगती
सूर्य रश्मियाँ
क्षितिज की गोद में
छुप जाती
एक बार फिर
आशाएं
मुंह चुरा लेती
13-69-06-02-2013
उदासी, आशाएं
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर

Friday, April 5, 2013

उतने ही पैर पसारिये जितनी लम्बी सोर


कुछ लोगों की टोपी
उनके सर से छोटी होती है
कुछ लोगों की टोपी
उनके सर से बड़ी  होती हैं
दोनों ही स्थितियों में
भद्दी लगती है
कुछ लोग अपनी
औकात से
बड़ी बात करते हैं
कुछ लोग अपनी
औकात से कम करते हैं
वो लोग
ज्यादा सुन्दर दिखते हैं
जिनकी टोपी
सर पर ठीक बैठती है
वो लोग ज्यादा खुश रहते हैं
जो औकात में रहते हैं
जितनी लम्बी सोर
उतने ही पैर पसारते हैं
12-68-05-02-2013
औकात,दंभ,उतने ही पैर पसारिये जितनी लम्बी सोर
डा.राजेंद्र तेला ,निरंतर

नाम की चाहत में



इंसान से बड़े
इंसान के साए हो गए हैं
नाम की चाहत में
अहम् के दास बन गए हैं
होड़ के संसार में
इंसानियत भूल गए हैं
अपनों से पराये हो गए हैं
इंसान कम
इंसान के पुतले रह गए हैं
भ्रम में जी रहे हैं
09-65-05-02-2013
इंसान ,इंसानियत,जीवन,चाहत
डा.राजेंद्र तेला ,निरंतर

Thursday, April 4, 2013

नदी के दो किनारे



हमारे सम्बन्ध
नदी के दो किनारों
जैसे हो गए  हैं
किनारे मिल भी नहीं सकते 
संबंधों का बहता पानी
दोनों किनारों को
सामान रूप से छूता है
इस कारण
अलग भी नहीं हो सकते
अगर यही मनोस्थिति रही
स्वार्थ और घ्रणा से पानी
इस हद तक दूषित हो जाएगा
एक दिन दोनों किनारे
टूट जायेंगे
हमारे सम्बन्ध भी
कभी ना बनने के लिए
नदी के पानी की तरह
बिखर जायेंगे
ऐसा हो उससे पहले आओ
एक कदम मैं बढाता हूँ
एक कदम तुम बढ़ाओ
अहम् को
मन से निकाल फैंको
बहते पानी को
रिश्तों का पुल समझ कर 

दोनों किनारों को मिला दो
08-64-04-02-2013
रिश्ते,सम्बन्ध,किनारे,नदी के किनारे ,जीवन
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर

Wednesday, April 3, 2013

हास्य कविता-हास्य कवी हँसमुखजी



हँसमुखजी अपने को
हास्य कवी समझते थे
घमंड में जीते थे
लोग कविताओं पर कम
उनकी शक्ल सूरत पर
अधिक हँसते थे
लोगों को हँसते देख
हँसमुखजी घमंड की
एक सीढ़ी और चढ़ जाते थे
लोगों भी ज्यादा
 ठहाके लगाने लगते थे
एक दिन उनके सर पर
घड़ों पानी पड़ गया
जब उनकी कविताओं से
पीडित
एक श्रोता से रहा नहीं गया
उनसे कह दिया
हँसमुखजी आपकी
कवितायें  बहुत मार्मिक होती हैं
अगर आपकी शक्ल सूरत
अजीब नहीं होती
तो किसी को बाल भर भी
हँसी नहीं आती
रोते रोते जान ही निकल जाती
कवितायें हकीकत बन जाती
07-63-03-02-2013
हास्य ,हास्य कविता,हँसी,हास्य व्यंग्य
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर

Tuesday, April 2, 2013

सियासत की चाहत में



सियासत की चाहत में
जब ज़मीर ही बेच दिया
कैसे दीन-ओ-ईमान
की बात करूँ
गद्दी के नशे ने इस हद तक
खुदगर्ज़ बना दिया
इंसानियत ही भूल गया
कोई अपना भी रास्ते में
आ जाए
उसे भी मौत की नींद सुला दूं
इंसान के भेष में हैवान
बन गया हूँ
कैसे खुदा से दुआ करूँ
04-60-02-02-2013
सियासत,इंसानियत,खुदगर्ज़, दीन-ओ-ईमान

Monday, April 1, 2013

दिल चीर कर भी रख दूं


दिल चीर कर भी रख दूं
तुझसे मोहब्बत
साबित हो नहीं सकती
कितनी भी गुहार लगाऊँ
सच्चाई
बयाँ हो नहीं सकती
जब तक तुझे
यकीन नहीं मुझ पर
कुछ भी कहूं
मेरी हर बात तुझे
झूठी लगती रहेगी
02-58-01-02-2013
यकीन,विश्वास,मोहब्बत,ऐतबार   
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर

आओ अब कुछ नया किया जाए



आओ अब कुछ
नया किया जाए
लीक से हट कर
चला जाए
रिश्तों को
निभाया जाए
अपनों को अपना
बना कर रखा जाए
परायों को
अपना बनाया जाए
जीवन को
सुखद बनाया जाए
आओ अब कुछ
नया किया जाए
01-57-01-02-2013
रिश्ते,जीवन,सम्बन्ध ,अपने.पराये
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर