Tuesday, March 20, 2012

तुम लौट कर आओ ना आओ


मर्जी तुम्हारी 
तुम लौट कर
 आओ ना आओ
तुम लौट कर
आ भी जाओ तो
चेहरा,आँखें ,
आवाज़
तो वही मिलेगी
मगर तुम्हारे
इंतज़ार में  दिल जो
टूट कर बिखर चुका
उसका जुड़ना अब
मुश्किल होगा
20-03-2012
420-154-03-12

शुक्रगुजार हूँ


शुक्रगुजार हूँ 
जो इतने ज़ख्म
तुमने मुझे दिए
उन्हें देख कर
तुम्हें याद 
तो करता ही हूँ
अहसास भी करता हूँ
कोई अपना ही था
कोई दुश्मन 
होता तो बर्दाश्त
 नहीं करता
आपा खो देता
मुंह तोड़ कर
जवाब दे देता
20-03-2012
418-152-03-12

कभी बहते पानी सा होता था


पानी सा होता था
मस्ती में
डूबा रहता था
जब से तुम्हें देखा
तालाब के पानी सा
ठहर गया हूँ
तुम्हारे ख्यालों में खोया
रहता हूँ
हर लम्हा इंतज़ार
करता हूँ
कब आकर
तोडोगी
दीवारें तालाब की
बहने दो
मुझे साथ तुम्हारे
मोहब्बत की धारा में
मिल जाने दो मुझे
तुम्हारी ज़िन्दगी के
समंदर में
20-03-2012
417-151-03-12

थोड़ा तुम आगे बढ़ो,थोड़ा मैं आगे बढूँ


मैं रात में  देर से सोता
तुम कहती लाईट में
नींद नहीं होती
तुम भरती जोर के खर्राटे
नींद मेरी भी उडती
तुम पीती चाय ठंडी 
मुझे गर्म चाय अच्छी
लगती
मुझे पसंद मीठा
तुम्हें नमकीन पसंद
तुम्हें व्यायाम अच्छा
लगता
मुझे खेलना भाता
मैं पंखे बिना सो ना पाता
तुम्हें पंखे में जुखाम हो
जाता
मैं चलाता पंखा
तुम उसे बंद कर देती
मैं सुनता समाचार टी वी पर
तुम देखती सीरिअल
तुरंत चैनल बदल देती
बड़ी अजीब हालत है
किच किच ख़त्म नहीं होती
घर घर यही कहानी है
जो एक को पसंद
वो दूजे को नापसंद
क्या करें
या तो हर दिन
हर बात पर झगडें
या बीच का रास्ता निकालें
आओ अब अहम् को
छोड़ दें
थोड़ा तुम आगे बढ़ो
थोड़ा मैं आगे बढूँ
एक दूजे की पसंद का
ख्याल कर लें
थोड़ा तुम्हारी पसंद का
थोड़ी मेरी पसंद का कर लें
जितना भी साथ जीना
उतना खुशी से जी लें
20-03-2012
416-150-03-12
  

ज़िन्दगी की धूप में

ज़िन्दगी की धूप में
बाल तो सफ़ेद नहीं हुए
दिल सफ़ेद हो गया
सारा खून ज़माना
पी गया
छल कपट के सामने
कमज़ोर पड गया
मोहब्बत से
जीने वाला घबरा गया
पर उम्मीद अभी बाकी है
सांस भी चल रही हैं
जब तक रहेगी जान
में जान
हार नहीं मानूंगा
मोहब्बत के खातिर
लड़ता रहूँगा
20-03-2012
415-149-03-12

होली पर कविता -हर बरस आती होली


हर बरस आती होली
बस्ती बस्ती घूमती
मस्तों की टोली
लिए हाथ में चंग
बजाते ढोलक और डफली
चलाते रंग भरी पिचकारी
खूब होता नाच गाना
होती हँसी ठिठोली
ऋतू बसंत में
उड़ता अबीर गुलाल
हो जाती सुबह गुलाबी
हर ह्रदय में सजती प्रेम
उमंग की होली
हिन्दू,मुस्लिम,सिख,इसाई
बच्चे बूढ़े और जवान
मनाते मिल कर होली
हर बरस आती होली
20-03-2012
414-148-03-12


बिना माँ के


साधन संपन्न,धनाढ्य ने
कमरे की खिड़की से
घनघोर बरसात का
आनंद लेते हुए देखा
माँ स्वयं भीग रही थी
पर पुत्र के सर पर
छोटी सी छतरी ताने
उसे बरसात से बचाते हुए
चली आ रही थी
उसकी आँखें नम हो गयी
सोचने लगा
इश्वर का कैसा न्याय है
उसे धन संपदा तो दिया 
पर जन्म के साथ ही
क्यों उसकी माँ को उससे
छीन लिया
आज उसे समझ आ
गया था
माँ से अधिक प्यार
देने वाला
स्वयं से अधिक दूसरे को
चाहने वाला 
माँ के सिवाय संसार में
दूसरा नहीं होता
धन कितना भी हो
बिना माँ के व्यर्थ
लगता
20-03-2012
413-147-03-12


कैसा लगता ?


कैसा लगता ?
जब तुम कुछ पूछते 
वो जवाब नहीं देते
खामोशी से
गुमसुम बैठे रहते
जब तुम्हारा चेहरा
प्रेम भाव से दमक रहा हो
मन मोहब्बत का
गीत गाने का हो रहा हो
वो खामोशी से
गुमसुम बैठे रहते
जब तुम हँसना चाहते
नाचना चाहते
वो खामोशी से
गुमसुम बैठे रहते
जब तुम्हारा मन
हँसी मज़ाक का होता
वो खामोशी से
गुमसुम बैठे रहते
जब तुम लज़ीज़ खाना
खा रहे होते
वो एक निवाला भी
नहीं खाते
खामोशी से
गुमसुम बैठे रहते
कैसा लगता ?
जब तुम क्रोध में आग
बबूला होते
अपशब्द कहते
वो खामोशी से सुनते रहते
गुमसुम बैठे रहते
20-03-2012
412-146-03-12

कितनी अजीब बात है


कितनी अजीब बात है
बरसों बाद मिलने पर भी
उसकी निगाहें
मेरी तरफ नहीं उठी 
उसे मेरा चमकता चेहरा
नहीं दिखा
आँखों में इंतज़ार को
मंजिल मिलते नहीं दिखा
ना ही मेरे होठों पर
मुस्काराहट नज़र आयी
जिसके लिए रो रो कर
ज़िन्दगी गुजार दी
उसकी बेरुखी की वजह
समझ नहीं आयी
शायद मेरे सफ़ेद बाल
चेहरे की झुर्रियां
उसे पसंद नहीं आयी
उसे मोहब्बत दिल से नहीं
सूरत से थी
दिल से ज्यादा दिल्लगी
पसंद थी
20-03-2012
411-145-03-12