कभी कहते थे तुम
हम मंजिल तुम्हारी
तुम मंजिल हमारी
दो धाराएं दिलों की
मिल कर बनेगी एक
नदी मोहब्बत की
साथ धड्केंगे साथ
जियेंगे
एक दूजे के खातिर
क्यों फिर
रास्ता मोड़ा तुमने
बदल दी मंजिल अपनी
तोड़ दिए वादे
कर दिया बदनाम
मोहब्बत को
इतना भी ख्याल नहीं
आया तुम्हें
जब पता चलेगा
ज़माने को
लोग मोहब्बत के
नाम से नफरत करेंगे
वादों से यकीन
अपना उठा देंगे
17-03-2012
390-124-03-12
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