अब थकने लगा हूँ
ज़िन्दगी से डरने लगा हूँ
क्या होगा
आने वाले बरसों में
डर से सहमने लगा हूँ
क्यों बूढा होता इंसान
निरंतर सोचता हूँ
क्यों लौटता नहीं बचपन
खुदा से पूछता हूँ
फिर खुद को संभालता हूँ
खुद से कहता हूँ
जो होना होगा हो
जाएगा
जब होगा देखा जाएगा
अभी से क्यूं
हाल को बेहाल करूँ
जितना
हँस सकूँ उतना हँस लूँ
ज़िन्दगी मस्ती में
गुजार लूँ
13-03-2012
366-100-03-12
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