इधर रणभेरी बजी
उधर तलवारें चमकी
धरती माँ की रक्षा में
हर वीर की बाहें
फडकी
वीरांगनाओं ने कमर
कसी
चेहरे पर भय का
भाव नहीं
कर्तव्य की बली वेदी पर
चढ़ने को
हर जान तैयार खडी
क्या बच्चा क्या बूढा
क्या माता क्या अबला
हर मन में देशभक्ती की
आग जली
दुश्मन को धूल चटाने को
सेनायें तैयार खडी
राजपुरोहित ने किया
तिलक
महाराणा प्रताप के
ललाट पे
फिर जोश से बोले
एकलिंगजी का नाम ले
युद्ध में प्रस्थान करो
दुश्मन को
सीमा से बाहर करो
विजय अवश्य तुम्हें
ही मिलेगी
बस हिम्मत होंसला
बनाए रखो
धरती माँ की रक्षा में
जान भी न्योछावर
करनी पड़े
तो चिंता मत करो
सुन रहा था चेतक
सारी बातें ध्यान से
उसने भी हिलायी गर्दन
बड़े गर्व और विश्वास से
प्रताप ने खींची रासें
लगायी ऐड चेतक के
जन्म भूमी मेवाड़ की
रक्षा के खातिर
बढ चले सीधे युद्ध के
मैदान को
08-03-2012
321-55-03-12
1 comment:
बहुत बढ़िया!
होली का पर्व आपको मंगलमय हो! बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
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