ना चाहो तो
ख़त का जवाब ना दो
ना कभी मिलो हमसे
जानते हैं
कुछ तो मजबूरी होगी
तुम्हारी
जो रूबरू नहीं होते
हमसे
तुम याद करते हो
यही काफी हमारे लिए
रिश्तों को तोड़ना
हमारी फितरत नहीं
किसी और सहारे की
हमको ज़रुरत नहीं
तुम खुश रहो
यही काफी है जीने
के लिए
11-03-2012
346-79-03-12
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