Monday, March 5, 2012

दिल के हाथों मजबूर हैं


ऐसा नहीं है कि हम
उन्हें याद नहीं करते
याद तो करते हैं
पर अंदाज़ बदल
गया है
ना दिल की धडकनें
बढ़ती
ना चेहरे पर लाली
जहन में खुमारी छाती
उलटे यादों के मंज़र
परेशाँ करने लगते
दिल के
ज़ख्म हरे होने लगते
उनकी बेवफायी
कांटे सी चुभने लगती
हर कोशिश करते हैं
वो याद नहीं आयें
दिल के
हाथों मजबूर हैं
हम उन्हें
भूल नहीं पाते
05-03-2012
298-32-03-12

1 comment:

Shaifali said...

Jindagi mei kuch pal, kuch yaadein aisi hai jo ham bhool nahi paate, na hi theek se yaadon mei rakh paate hai kyuki vah bahut khaas aur personal hoti hai. Saath chalti hai vo ta-umra, bilkul apni parchayee ki tarah, saanson ki tarah aur dhadkano ki tarah.

Behad sundar bhaav aur kavita.