Sunday, October 28, 2012

राजा है या फ़कीर



सड़क पर चलने वाला
राजा है या फ़कीर
पेड़ को फर्क नहीं पड़ता
जो भी बैठता उसके नीचे
उसे ही छाया दे देता
ना घमंड ना अहंकार उसे
निरंतर
हवा में लहराता रहता
पक्षी छोटा हो या बड़ा
उसे अंतर नहीं पड़ता
जो भी बनाता घोंसला
ड़ाल पर
उसे ही बसेरा बसाने देता
इंसान देखता भी सब है
समझता भी सब है
अहम् उसे इंसान
बनाए नहीं रखता
सदियों से लुटता रहा है
अहम् में
लुटना फिर भी नहीं
छोड़ता
कहलाता इंसान
हैवान बनना
फिर भी नहीं छोड़ता
थोड़ा सा भी पेड़ से
सीख लेता
भगवान् तो नहीं
इंसान बन कर तो
जी लेता
814-56-28-10-2012
घमंड,अहंकार,अहम्,स्वार्थ,जीवन ,ज़िन्दगी

अहम् का प्रश्न



समंदर का
पानी खारा होता है
तो क्या हुआ
मछलियों को तो मीठा 
लगता
उनके जीवन का सहारा होता
ये आवश्यक तो नहीं
जो तुम्हारे लिए अच्छा
वो दूसरों के लिए भी
अच्छा हो
जो तुम्हें भाये वही
दूसरों को भी भाये
फिर क्यों चाहता है मनुष्य
सब उसकी चाहत को चाहें
उसे अहम् का प्रश्न बनाए
जो ना माने उसे नापसंद करे
812-54-28-10-2012
चाहत,जीवन,अहम्,पसंद,नापसंद,

जब रात आयी



शाम को धकेल कर
जब रात आयी
चिड़ियाओं की चचहाहट
बंद हो गयी,
वातावरण में निस्तब्धता
छा गयी
मन को अच्छा नहीं लगा
तुरंत रात से पूछ लिया
क्यों हर दिन तुम
उजाले को लीलती हो
एक दिन तो विश्राम कर लो
चौबीस घंटे उजाला ही रहने दो
चिड़ियाओं को जी भर के
चचहाने दो
रात ने मुस्कराकर उत्तर दिया
मित्र मैं
उजाले को भगाती नहीं हूँ
सूर्य को विश्राम करने का
अवसर देती हूँ
वो अगले दिन तरोताजा
हो कर
पूरे वेग से चमके
आवश्यकता से अधिक
कार्य करेगा तो थक जाएगा
कैसे भरपूर उजाला देगा
धीरे धीरे अँधेरे में खो जाएगा
तुम मनुष्यों को भी
विश्राम की आवश्यकता है
नहीं तो तुम भी थक कर
रोग ग्रस्त हो जाओगे
फिर जी ना पाओगे
मैं विचारों में खो गया
नींद की गोद में समा गया
चिड़ियाओं की
चचहाहट ने आँखें खोली
भोर हो चुकी था
रात भी विश्राम के
लिए जा चुकी थी
811-53-28-10-2012
विश्राम,जीवन,ज़िन्दगी,आराम ,स्वास्थ्य

दूर रहते हुए भी



नित्य की भाँति
कल रात भी चाँद
मेरे कमरे की
खिड़की से झाँक रहा था
पूरे कमरे को चांदनी से
नहला रहा था
शीतल चांदनी और खिड़की से
झांकते चाँद को देख
मन मुझसे कहने लगा
चाँद से पूछों
क्यों केवल चांदनी को
भेज कर काम चलाता
ये कौन सा रिश्ता निभाता
मेरे पूछने से पहले ही
चाँद समझ गया मन
क्या चाहता है
चाँद बोला मैं मित्रता का
रिश्ता निभाता हूँ
निरंतर दूर रह कर भी
प्रेम दर्शाता हूँ
चांदनी को नित्य धरती पर
भेजता हूँ
रात के अँधेरे को दूर कर के
तुम्हारा जीना आसान
करता हूँ
रिश्तों को निभाने के लिए
नित्य मिलना ही
आवश्यक नहीं होता
 दूर रहते हुए भी रिश्तों को
 निभाया जा सकता
संवाद बनाया जा सकता
अनेकानेक तरीकों से मित्र
मित्र की मदद कर सकता
चांदनी की
सुन्दर भेंट के साथ
चाँद सुन्दर सीख भी
दे गया
मन को भाव विव्हल
कर गया
810-52-28-10-2012
चाँद ,चांदनी,रिश्ते,मित्र,मित्रता

मन को कैसे देखेंगे



आज कल लोगों को
दिल ही नहीं दिखता
मन को कैसे देखेंगे
चिकनी चुपड़ी बातों से
मुस्काराते चेहरों से ही
खुश हो जाते हैं जब
उन्हें सच्चाई
कैसे पसंद आयेगी
कसूरवार वो भी नहीं
ज़माने की
हवा ही कुछ ऐसी है
हर शख्श
उसी फितरत से सांस
ले रहा है
ज़िन्दगी जीने के बजाए
काट रहा है
809-51-28-10-2012
ज़िन्दगी,फितरत,,जीवन,सोच

अब किसी काम नहीं आयेगी



कल तक मिट्टी
खोदती थी
पैरों तले गूंधती थी
सुराही,मटके ,खिलोने
बनाती थी
सब को खुश रखती थी
ज़िन्दगी भर
मन में तमन्ना रखी थी
मरने के बाद भी
किसी के काम आयेगी
खुदा के आगे एक ना चली
आज ढेरो मन मिट्टी के
नीचे दबी पडी है
उसके साथ उसकी
तमन्ना भी दबी पडी है
अब किसी काम नहीं
आयेगी
808-50-28-10-2012
जीवन,मृत्यु

पुराने पेड़ों की छाया में


जवान बूढ़े हर तरह के लोग
पुराने पेड़ों की छाया में
सदा से आराम करते रहे हैं
बरसात में भीगने से
आंधी तूफ़ान
तेज़ धूप की गर्मी से
बचने के लिए
उनकी छाया में बैठते रहे हैं
नए पेड़ जोश में तेज़ी से
बढ़ते अवश्य हैं
पर नए पेड़ों में
ना घने पत्ते होते हैं
ना ही घनी छाया होती है
चाहते अवश्य हैं
दुनिया को समेट लें
सब को छाया दे दें
पर सफल नहीं हो पाते हैं
समस्या में घिरते हैं तो
बड़े पेड़ों से पूछते अवश्य हैं
वे कैसे बचे थे
अकाल तेज़ गर्मी
आंधी और तूफ़ान से
बड़े पेड़ अपनी
समस्याओं का हल
कैसे ढूँढें
किस से पूछें
जीवन में जान नहीं पाते
बुजुर्गों का भी यही
हाल होता है
मरते दम तक छाया
तो देते हैं
पर उन्हें मन मुताबिक़
छाया कभी नहीं
मिलती
807-49-28-10-2012
बुढापा,अनुभव,जीवन

मिला नहीं जब तक साहिल उन्हें



लबों पर नाम उनका ,
जहन में यादें उनकी
दिल धड़कता उनके लिए
पर उन्हें फ़िक्र नहीं
हमने समझा था
साहिल उन्हें
उन्होंने समझा साहिल तक
पहुचाने की किश्ती का
मांझी हमें
मिला नहीं जब तक
साहिल उन्हें
हँस कर मिलते रहे
हमारे दिल से खेलते रहे
806-48-28-10-2012
यादें,साहिल,मंजिल,बेवफाई ,शायरी,

विकृत सोच से मुक्त हो लूं



दुश्मनों से
खुद को बचाने के लिए
जेब में खंज़र तो रखता हूँ
पर वक़्त आने पर
खंज़र कैसे चलाऊंगा
इस बात से डरता हूँ
क्या किसी ऐसे से पूछूं
जो बेगुनाहों पर खंज़र
चला चुका है
या किसी ऐसे से पूछूं
जो खंज़र चलाना
सीख चुका है
कहीं मुझे ही ना मार दे
पूछते हुए भी डरता हूँ
फिर जेब में खंज़र क्यों
रखता हूँ
सारा ज़माना कहता है
इसलिए मैं भी खंज़र
रखता हूँ
या भ्रम में जीता हूँ
खंज़र रखने से बच जाऊंगा
कभी सोचता हूँ
खंज़र रखने से भी क्या होगा
जब खंज़र चला नहीं सकता
तो फिर क्यों खंज़र रखता हूँ
क्यों ना खंज़र को फैंक दूं
जिसको रखने भर से
हर पल केवल ज़ख्म खाने की
ज़ख्म देने की याद आती है
बिना खंज़र ही जी लूं
खुद को परमात्मा के
रहम-ओ-करम पर छोड़ दूं
विकृत सोच से मुक्त हो लूं
805-47-28-10-2012
विकृत सोच 

हँसी के कुछ पल


जीवन के
अंतिम समय में
पलंग पर लेटा हुआ वृद्ध
चेहरा मुरझाये फूल सा,
शरीर सूखे हुए वृक्ष सा
पर आँखों की चमक
नव पल्लवित कली सी
जोश उमंग से भरपूर
नम आँखों से बेटे की
प्रतीक्षा कर रहा था
उसे अभी अभी
सुखद समाचार मिला
आज बरसों बाद
खोया हुआ बेटा घर
लौट आया
संसार से जाते जाते
हँसी के कुछ पल
साथ लाया
804-46-30-10-2012
हँसी,जीवन ,अंतिम समय 

जीवन का क्या भरोसा


जीवन का क्या भरोसा
कब तक
साथ देगा पता नहीं
जाने से पहले 
जिनका भी ह्रदय दुखाया
उनसे क्षमा मांग लूं
जिन से भी धोखा किया
उनसे अपराध का
दंड मांग लूं
कभी मज़ाक उड़ाया हो
उनसे प्रताड़ित हो लूं
जीवन भर
अपराध बोध में जिया
उस बोझ से स्वयं को
मुक्त कर लूं
इश्वर ने संसार में भेजा था
निश्छल ह्रदय के साथ
वो निश्छल ह्रदय
इश्वर को वापस कर दूं
रोते हुए आया था 
हँसते हुए लौट जाऊं
803-45-29-10-2012
ज़िन्दगी,जीवन ,निश्छल ह्रदय

प्यार के रंगों से भरी ज़िन्दगी


प्यार के रंगों से 
भरी ज़िन्दगी कभी
एक खूबसूरत पेंटिंग का
अहसास कराती थी
पर अब बदरंग हो गयी है
सारे रंग  बेतरतीबी से
इधर उधर फैले गए
किसी  कोण से भी
देखने की इच्छा नहीं होती
ज़िन्दगी अब किसी
समारोह के बाद
समारोह स्थल जैसी
हो गयी है
जहां हर तरफ गंद ही गंद
नफरत और अविश्वास का
कचरा फैला हुआ है
इतनी अस्त व्यस्त
सांस लेना भी दूभर हो गया
अहसास ही नहीं होता
कभी यहाँ शहनाईयां
गूंजी होंगी
नाच गाने हुए होंगे
खुशी का माहौल रहा होगा
अब इंतज़ार में हूँ
कब ज़िन्दगी में फैला
कचरा हटेगा
नए समारोह के लिए
फिर से साफ़ सुथरा होगा
फिर से खुशी का माहौल
होगा
मिल जुल कर
गाना बजाना होगा
हर दिन
कोई समारोह होगा
प्यार और विश्वास का
बोलबाला होगा
ज़िन्दगी के रंग
एक खूबसूरत पेंटिंग का
अहसास करायेंगे
802-44-28-10-2012
ज़िन्दगी

Thursday, October 25, 2012

मैं उड़ने की क्यों सोचूँ



मैं उड़ने की क्यों सोचूँ
जब धरती को जाना नहीं
आकाश की चिंता क्यों करूँ
कहाँ से बादल आते हैं
क्यों नीला पीला होता है
कहाँ से
सूरज चाँद निकलता
मैं क्यों जानूं
पहले धरती वासियों को
समझ लूं
पक्षी वृक्ष जीवों को जान लूं
बहती नदियों
गहरे समुद्र को देख लूं
कैसे इनकी रक्षा करूँ
कैसे धरती की सेवा करूँ
इनको तो जाना नहीं
इनकी चिंता करी नहीं
मनुष्य बन कर जिया नहीं
आकाश की चिंता क्यों करूँ
801-43-25-10-2012
इच्छाएं,आकांशाएं,चिंता,

कभी होता था बुलंदी पर



आज गुमनामी में
ज़िन्दगी गुजार रहा है
चमकता था आकाश में
सूरज की तरह
आज वक़्त के बादलों के
पीछे छुपा हुआ है
वक़्त इकसार नहीं रहता
अब जान गया है
अगर नहीं चढ़ता
गरूर दिमाग में
वक़्त की
चाल पहचान लेता
हर एक से हँस कर
मिलता रहता
आज अकेले बैठा
आसूं नहीं बहा रहा होता
800-42-25-10-2012
गुमनामी,बुलंदी,वक़्त,समय,

सुबह आँख खुली तो



सुबह आँख खुली तो
मेरे कमरे की
खिड़की में बैठा मिट्ठू बोला
बोल बोल कर तुम्हें
उठाने का प्रयत्न किया
पर तुम नींद से जागे नहीं
थक हार कर मैं बैठ गया
अपने आप से कहने लगा
उठोगे तो
प्रश्न अवश्य करूंगा
कैसे इतनी गहरी नींद में
सोते हो तुम
मिट्ठू की बात का
मुझे अचम्भा नहीं हुआ
निरंतर इस प्रश्न का
उत्तर देता रहा
आज उसे भी बता दूं
सत्य गहरी नींद का
मैंने कहा लोग दिन रात
सपने देखते हैं
जो कल हो चुका
जो कल होने वाला है
उसकी चिंता में
दिन रात जागते हैं
ना ठीक से सो पाते
ना ठीक से जाग पाते
परेशानी में
ज़िन्दगी काटते रहते
मैं निश्चिंत सोता हूँ
जो हो चुका उससे केवल
शिक्षा लेता हूँ
जो होने वाला है
उसकी चिंता करे बिना
कर्म में लगा रहता हूँ
इसलिए गहरी नींद में
सो पाता हूँ
बात सुन कर मिट्ठू बोला
मैं भी अब आकाश को
नापने निकलता हूँ
कल फिर आऊँगा
पर तुम्हारे उठने के बाद
तब तक मैं भी
गहरी नींद में सोऊँगा
799-41-25-10-2012
नींद,निश्चिंत

जब भी अपने कमरे में लौट कर आता हूँ



घंटों बाहर रहने के बाद
जब भी अपने कमरे में
लौट कर आता हूँ
एक अपनेपन का
अहसास होता है
लगता है जैसे मेज़ कुर्सी
बेचैनी से
मेरा इंतज़ार कर रही हैं
मेरी कलम 
मेरी ऊंगलियों में
खेलने को बेताब दिखती है
बिस्तर खुली बाहों से
मुझे आराम करने का
बुलावा देता है
महसूस होता है
टीवी कह रहा  है ,
अब उसे मेरा
मनोरंजन करने का
मौका मिलेगा
टयूब लाईट रोशनी से
कमरे को
जगमगाने के लिए तैयार
बटन दबाने के इंतज़ार में
 दिखती
इतना इंतज़ार तो मेरा
कोई भी नहीं करता
कितनी भी देर के बाद
कमरे में आऊँ
कोई शिकवा शिकायत
नहीं करता
रोज़ मर्रा की ज़िन्दगी में
मेरे साथ
मेरे कमरे के सिवाय
ऐसा कही भी नहीं होता
किसी ना किसी को
कोई ना कोई शिकायत
मुझसे रहती है
कभी कोई नाराज़ हो कर
मुंह फुलाता है
कभी सवालों की झड़ी
लगाता है
मन करता है कमरे से
बाहर निकलूँ ही नहीं
पर मजबूरी है
 नहीं चाहते हुए भी
कुछ घंटे
कमरे को खामोशी से
मेरे इंतजार में छोड़ कर
जाना पड़ता है
मेरे कमरे से बेहतर
मुझे कोई नहीं समझता
798-40-25-10-2012
कमरा,एकांत  

नहीं चाहो तो



नहीं चाहो तो
मत बताओ हाल
अपना 
बस इतना सा जान लो
हम भी उतने ही
ग़मज़दा हैं
जितने तुम हो
अब भी यकीन नहीं तो
आइना देख लो
जैसी दिखेगी तुमको
सूरत अपनी
कुछ वैसी ही सूरत
हमारी भी है
797-39-25-10-2012
सूरत, आइना, हाल

घूंघट के पीछे



घूंघट के पीछे
चेहरा छुपा कर
तुमने मेरे लिए
आज अमावस कर दी 
लगता है तुम भूल गयी
अमावस के बाद
पूनम भी आती है
796-38-25-10-2012
अमावस,पूनम ,घूंघट

शुक्रिया अदा करूंगा



सब को भुला दूंगा
तुझे ना भुला सकूंगा
किसी और ने
ना तड़पाया इतना
जितना तूने तड़पाया
ऐसा कमाल किया तूंने
ज़मीन पर
दोजख दिखाया तूनें
तुझे भूल नहीं सकता
मरते दम तक तेरा
शुक्रिया अदा करूंगा
795-37-25-10-2012
शुक्रिया, भुलाना ,भूलना

भुला दिया है



आजकल नींद भी
अच्छी आती 
मन भी बेचैन नहीं रहता
ना हम
किसी का इंतज़ार करते
ना कोई
हमारा इंतज़ार करता 
उन्होंने हमें
हमने उन्हें भुला दिया है
794-36-25-10-2012
भुला दिया

कहीं इतना निश्चिंत ना हो जाऊं



कुछ घटनाएं
ऐसी घटती रहती 
बीती घटनाओं की
दिलाती
भूलना चाहूँ तो भी
नियती भूलने नही देती
बार बार याद करने को
मजबूर करती
चाहती उन्हें सहेज कर
सीने से लगाए रखूँ
मुझे सचेत रखती हैं
कहीं इतना निश्चिंत
ना हो जाऊं
पहले से भी बड़ा धोखा
 ना खा जाऊं
793-35-25-10-2012
निश्चिंत,धोखा,घटनाएं    

ठण्ड का अहसास



जेठ की तेज़ गर्मी से
लहुलुहान दोपहर
लू से घबराकर
हर आदमी घर में
दुबका हुआ
चिड़ियाएँ खोमोशी से
घोंसलों में नींद ले रही
लू और गर्मी से
बिना घबराए
वो उसके इंतजार में
गली के नुक्कड़ पर
खड़े हो कर
रोज़ उसका इंतज़ार
करता
यही तो वो मौक़ा
किसी की नज़रों में आये
बिना वो अकेले में
उससे मिल सकता
तेज़ गर्मी और लू में भी उसे
ठण्ड का अहसास मिलता
792-34-25-10-2012
मोहब्बत,इंतज़ार,मुलाक़ात,अहसास

तूफ़ान बन कर ज़िन्दगी में आये



तूफ़ान बन कर
ज़िन्दगी में आये
बहा कर साथ ले गए 
मोहब्बत की फुलझड़ी
दिल में जला गए
दीपावली से पहले
हमारी
दीपावली मना गए
उम्मीदें जगा गए
निरंतर इंतज़ार
सिखा गए
मिलने की चाहत
बढ़ा गए
रोना भुला गए
हंसना सिखा गए
आदत खराब कर गए
ख़्वाबों की दुनिया में
खोना सिखा गए
791-33-25-10-2012
मोहब्बत,दीपावली   

Wednesday, October 24, 2012

मंजिल करीब थी फिर भी बहुत दूर थी



मंजिल करीब थी
फिर भी बहुत दूर थी
कदम थके नहीं थे
ना हे हिम्मत हारी थी
वो दिख क्या गयी
कदम अड़ गए 
नज़रें हटने का नाम
नहीं ले रही थी
खबर भी नहीं हुयी
कब सुबह से शाम
हो गयी
मंजिल करीब थी
फिर भी बहुत दूर थी
790-32-24-10-2012
मंजिल

मंजिल की तलाश में



मंजिल की तलाश में
ज़िन्दगी भर
उनके पैगाम का इंतज़ार
करता रहा
जब तक पैगाम आया
मंजिल का
पता बदल चुका था
तन्हाई को
मंजिल मान चुका था 
समझ चुका था 
इक दिन तो
किसी एक को तनहा
रहना होगा
अकेले में रोना होगा
789-31-24-10-2012
मंजिल,तलाश,ज़िन्दगी ,मोहब्बत,तन्हाई,

मन भर गया तो



मन भर गया तो
उन्होंने सोचा
अब रिश्ता ही तोड़ लें 
थक हार कर बैठ
जाऊंगा
वो भूल गए
उन्होंने ही कहा था
मुझसे 
मोहब्बत के खातिर
जान भी गवानी पड़े
तो गवां देना
जुदा करने की
कोशिश भी करे कोई
तो हार नहीं मानना
हमारी मोहब्बत को ही
ज़िन्दगी का किनारा
समझना
788-30-24-10-2012
मोहब्बत,जुदाई

हम खुद को बहुत हूनरमंद समझते थे



हम खुद को बहुत
हूनरमंद समझते थे
रूठे मौसम को
मना लेते थे
खिजा को बहार में
 बदल देते थे
जब मामला
दिल का आया तो
मात खा गए
उन्हें हर तरीके से
मनाया
पर मना ना सके
787-29-24-10-2012
प्यार,प्रेम,हूनरमंद, खिजा,बहार