Thursday, October 25, 2012

कभी होता था बुलंदी पर



आज गुमनामी में
ज़िन्दगी गुजार रहा है
चमकता था आकाश में
सूरज की तरह
आज वक़्त के बादलों के
पीछे छुपा हुआ है
वक़्त इकसार नहीं रहता
अब जान गया है
अगर नहीं चढ़ता
गरूर दिमाग में
वक़्त की
चाल पहचान लेता
हर एक से हँस कर
मिलता रहता
आज अकेले बैठा
आसूं नहीं बहा रहा होता
800-42-25-10-2012
गुमनामी,बुलंदी,वक़्त,समय,

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