Tuesday, October 16, 2012

जंगल लुट रहा है



जंगल लुट रहा है
हर वृक्ष को सलीके से
काटा जा रहा है
काटने का
नित नया नया बहाना
बनाया जा रहा है
कभी सड़क का
कभी नयी बस्ती का
पक्षी रो रहे हैं
जानवर व्यथित हैं
पर इंसान को
कोई फ़िक्र नहीं
हो भी क्यों
ना वो जानवर है
ना ही वो पक्षी है
सड़क और बस्ती भी
उसी के लिए ही तो
बन रही है
772-17-16-10-2012
पर्यावरण,प्रकृति,जंगल 

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