Friday, October 5, 2012

मैं लफ्ज़ नहीं हूँ तोड़ मरोड़ कर कभी ग़ज़ल कभी नज़्म बना लो



मैं लफ्ज़ नहीं हूँ
तोड़ मरोड़ कर
कभी ग़ज़ल
कभी नज़्म बना लो
मैं ख्याल नहीं हूँ
जब भी चाहो
वैसा मेरे बारे में सोच लो
मैं ख्वाब भी नहीं हूँ
जब चाहो देख लो
मैं हकीकत भी नहीं हूँ 
हर बात पर हाँ भर दो
पर जो कहता हूँ
सुनो तो सही
जो लिखता हूँ
पढो तो सही
नहीं समझ आये
तो मानना मत
मैं बुरा नहीं मानूंगा
नहीं सुनोगे नहीं पढोगे
तो समझ लो
हकीकत से मुंह छुपाओगे
झूठ की दुनिया में जियोगे
अपने फितरत से
दुनिया को रूबरू कराओगे
अगर तुम भी कुछ
कहना चाहते हो
लिखना चाहते हो तो
अवश्य कहो अवश्य लिखो
तुम्हारी सुनूंगा भी
तुम्हारा लिखा पढूंगा भी
नहीं समझ आयेगा
तो मानूंगा नहीं
जैसा ठीक लगेगा
वैसा करूंगा
ये ज़रूरी नहीं है
तुम सब की मानों
मगर कौन
क्या कह रहा है
सुनो तो सही
क्या लिख रहा है
पढो तो सही
763-08-05-10-2012
फितरत ,संवाद,कहना ,सुनना,सामंजस्य

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