Sunday, October 28, 2012

मन को कैसे देखेंगे



आज कल लोगों को
दिल ही नहीं दिखता
मन को कैसे देखेंगे
चिकनी चुपड़ी बातों से
मुस्काराते चेहरों से ही
खुश हो जाते हैं जब
उन्हें सच्चाई
कैसे पसंद आयेगी
कसूरवार वो भी नहीं
ज़माने की
हवा ही कुछ ऐसी है
हर शख्श
उसी फितरत से सांस
ले रहा है
ज़िन्दगी जीने के बजाए
काट रहा है
809-51-28-10-2012
ज़िन्दगी,फितरत,,जीवन,सोच

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