Friday, October 5, 2012

मोहब्बत मंजिल रही है मोहब्बत ही मंजिल रहेगी



कितनी अजीब हाल
ज़िन्दगी  का
कभी ज़मीन प्यारी लगती
कभी ज़मीन से दूर
आसमान प्यारा लगता
कभी मन कहता
ज़मीन पर ही ज़िन्दगी
काट दूं
कभी मन कहता
ज़मीन से रुखसत ले लूं
आसमान में घर बसा लूं
पर जब मिला आसमान से
 ज़मीन पर आये
एक फ़रिश्ते से
नज़रिया ही बदल गया
जब उसने बताया
मोहब्बत में जीने वाले
ना ज़मीन पर चैन से
रहते हैं
ना आसमान में चैन से
जीते हैं
अब तय कर लिया
ज़मीन पर रह कर ही
मोहब्बत की तलाश
करता रहूँगा
खुदा बुला भी लेगा तो
आसमान में भी तलाश
जारी रखूंगा
जान नहीं भी रहेगी तो
जब तक वजूद रहेगा
दुनिया का
मेरी रूह भी यही करेगी
मोहब्बत मंजिल रही है
मोहब्बत ही मंजिल रहेगी
765-10-05-10-2012
मोहब्बत

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