Sunday, October 28, 2012

जब रात आयी



शाम को धकेल कर
जब रात आयी
चिड़ियाओं की चचहाहट
बंद हो गयी,
वातावरण में निस्तब्धता
छा गयी
मन को अच्छा नहीं लगा
तुरंत रात से पूछ लिया
क्यों हर दिन तुम
उजाले को लीलती हो
एक दिन तो विश्राम कर लो
चौबीस घंटे उजाला ही रहने दो
चिड़ियाओं को जी भर के
चचहाने दो
रात ने मुस्कराकर उत्तर दिया
मित्र मैं
उजाले को भगाती नहीं हूँ
सूर्य को विश्राम करने का
अवसर देती हूँ
वो अगले दिन तरोताजा
हो कर
पूरे वेग से चमके
आवश्यकता से अधिक
कार्य करेगा तो थक जाएगा
कैसे भरपूर उजाला देगा
धीरे धीरे अँधेरे में खो जाएगा
तुम मनुष्यों को भी
विश्राम की आवश्यकता है
नहीं तो तुम भी थक कर
रोग ग्रस्त हो जाओगे
फिर जी ना पाओगे
मैं विचारों में खो गया
नींद की गोद में समा गया
चिड़ियाओं की
चचहाहट ने आँखें खोली
भोर हो चुकी था
रात भी विश्राम के
लिए जा चुकी थी
811-53-28-10-2012
विश्राम,जीवन,ज़िन्दगी,आराम ,स्वास्थ्य

No comments: