Thursday, October 25, 2012

सुबह आँख खुली तो



सुबह आँख खुली तो
मेरे कमरे की
खिड़की में बैठा मिट्ठू बोला
बोल बोल कर तुम्हें
उठाने का प्रयत्न किया
पर तुम नींद से जागे नहीं
थक हार कर मैं बैठ गया
अपने आप से कहने लगा
उठोगे तो
प्रश्न अवश्य करूंगा
कैसे इतनी गहरी नींद में
सोते हो तुम
मिट्ठू की बात का
मुझे अचम्भा नहीं हुआ
निरंतर इस प्रश्न का
उत्तर देता रहा
आज उसे भी बता दूं
सत्य गहरी नींद का
मैंने कहा लोग दिन रात
सपने देखते हैं
जो कल हो चुका
जो कल होने वाला है
उसकी चिंता में
दिन रात जागते हैं
ना ठीक से सो पाते
ना ठीक से जाग पाते
परेशानी में
ज़िन्दगी काटते रहते
मैं निश्चिंत सोता हूँ
जो हो चुका उससे केवल
शिक्षा लेता हूँ
जो होने वाला है
उसकी चिंता करे बिना
कर्म में लगा रहता हूँ
इसलिए गहरी नींद में
सो पाता हूँ
बात सुन कर मिट्ठू बोला
मैं भी अब आकाश को
नापने निकलता हूँ
कल फिर आऊँगा
पर तुम्हारे उठने के बाद
तब तक मैं भी
गहरी नींद में सोऊँगा
799-41-25-10-2012
नींद,निश्चिंत

1 comment:

Dr,Neha Nyati said...

really nice and inspirational poem....