Friday, August 30, 2013

"निरंतर" की कलम से.....: कितना कुछ कह जाते हैं पत्ते

"निरंतर" की कलम से.....: कितना कुछ कह जाते हैं पत्ते: कोंपल से पत्ता बनने तक पत्ता बनने से झड़ने तक मूक रहते हैं सहते हैं, आंधी तूफ़ान गर्मी सर्दी से लड़ते हैं बसंत में झूम...

"निरंतर" की कलम से.....: अब तक तो

"निरंतर" की कलम से.....: अब तक तो: अब तक तो इर्ष्या द्वेष के गाँव में जात पांत के कसबे धर्म के नगर में मन के राक्षसी राष्ट्र में जी लिए अब मन की खिड़की ह्रदय...

"निरंतर" की कलम से.....: बहुत अच्छा लगता है दूसरों की बात करना

"निरंतर" की कलम से.....: बहुत अच्छा लगता है दूसरों की बात करना: बहुत अच्छा लगता है   दूसरों की बात करना लोगों का मज़ाक उड़ाना   उन पर ऊंगली उठाना   लोगों की जुबां से खुद   ज़ख्म खाओगे जिस दिन   ...

"निरंतर" की कलम से.....: देश के लोगों ने तुम्हें बापू कहा

"निरंतर" की कलम से.....: देश के लोगों ने तुम्हें बापू कहा: बहुतों ने चाहा तुम्हारे जैसे बन जाएँ ज़माने को  मुट्ठी में कर लें पर ना ही उनमें वो कुव्वत थी ना ही वो ज़ज्बा था जिसके दम पर तुम...

"निरंतर" की कलम से.....: जब अपना ही बन कर नहीं रह सका

"निरंतर" की कलम से.....: जब अपना ही बन कर नहीं रह सका: जब अपना ही बन कर नहीं रह सका किसी और का बन कर कैसे रहूँ पथ से भटक गया हूँ भ्रम जाल में फंस चुका हूँ मरीचिका के पीछे दौड़ रहा हूँ...

"निरंतर" की कलम से.....: क्यों पूछते हो हमसे हाल हमारा

"निरंतर" की कलम से.....: क्यों पूछते हो हमसे हाल हमारा: क्यों पूछते हो हमसे हाल हमारा ना बदले हालात कभी ना कभी बदलेंगे जिंदगी का सफ़र तो ऐसा ही रहा है ऐसा ही रहेगा ज़िंदा हूँ जब ...

"निरंतर" की कलम से.....: तरक्की की दीमक

"निरंतर" की कलम से.....: तरक्की की दीमक: ना वो मचलती गली ना मोहब्बत से लबरेज़ वो घर वहां पर ना खेलते कूदते बच्चों का नज़ारा दिखता वहां पर ना वो नीम का पेड़ बैठते थ...

"निरंतर" की कलम से.....: बुद्धि के विकास ने

"निरंतर" की कलम से.....: बुद्धि के विकास ने: गेंदे का फूल गुलाब के फूल से इर्ष्या नहीं करता कोयल की कूंक से गोरिय्या द्वेष नहीं रखती कुए का पानी तालाब के पानी में मिला...

"निरंतर" की कलम से.....: बरसों की प्रतीक्षा पूरी हो गयी

"निरंतर" की कलम से.....: बरसों की प्रतीक्षा पूरी हो गयी: बरसों की प्रतीक्षा पूरी हो गयी आज वकील की चिट्ठी आ गयी न्याय की  आस पूरी हो गयी  मुक़दमे में जीत हो गयी करोड़ों की जायदाद ...

"निरंतर" की कलम से.....: भ्रम जाल में फंसा दानव बन रहा इंसान

"निरंतर" की कलम से.....: भ्रम जाल में फंसा दानव बन रहा इंसान: रोता है मन तड़पता है मन जब देखता है रोता हुआ बचपन घबराई हुई जवानी सहमा हुआ बुढापा दरकती निष्ठाएं खोखले रिश्ते स्वार्थ का व...

"निरंतर" की कलम से.....: हार कर भी जीतना चाहता हूँ

"निरंतर" की कलम से.....: हार कर भी जीतना चाहता हूँ: येन केन प्रकारेण जीतना नहीं चाहता हूँ होड़ के चक्रव्यूह में फंसना नहीं चाहता हूँ कर्म पथ पर नदी सा अविरल  बहना चाहता हूँ स...

"निरंतर" की कलम से.....: कलम हाथ में लेते ही

"निरंतर" की कलम से.....: कलम हाथ में लेते ही: कलम हाथ में लेते ही मेरा चंचल मन ना जाने कहाँ से आश्वासन पाता है शरीर की सारी थकान मिट जाती है, ऊंगलियों में ऊर्जा का संचा...

"निरंतर" की कलम से.....: वो आँगन

"निरंतर" की कलम से.....: वो आँगन: पुराने घर के आँगन में पहुँचते ही यादों के समुद्र में गोते लगाने लगता हूँ वो आँगन , साधारण आँगन नहीं मेरे बचपन का संसार था कई परिवारों का म...

"निरंतर" की कलम से.....: वो आँगन

"निरंतर" की कलम से.....: वो आँगन: पुराने घर के आँगन में पहुँचते ही यादों के समुद्र में गोते लगाने लगता हूँ वो आँगन , साधारण आँगन नहीं मेरे बचपन का संसार था कई परिवारों का म...

"निरंतर" की कलम से.....: तटस्थ

"निरंतर" की कलम से.....: तटस्थ: बड़ी आसानी से तुमने कह दिया तुम किसी के झगडे में नहीं पड़ते हो सदा तटस्थ रहते हो हर झगडे में एक सही दूसरा गलत होता है जानते हुए ...

"निरंतर" की कलम से.....: वो प्रियतमा के ख़त का ज़माना

"निरंतर" की कलम से.....: वो प्रियतमा के ख़त का ज़माना: नम कर देता हैं  आँखें भुलाए नहीं भूलता वो प्रियतमा के  ख़त का  ज़माना याद आता है ख़त को बार बार पढ़ना सीने से लगाना आँखें बं...

"निरंतर" की कलम से.....: वो प्रियतमा के ख़त का ज़माना

"निरंतर" की कलम से.....: वो प्रियतमा के ख़त का ज़माना: नम कर देता हैं  आँखें भुलाए नहीं भूलता वो प्रियतमा के  ख़त का  ज़माना याद आता है ख़त को बार बार पढ़ना सीने से लगाना आँखें बं...

Sunday, August 25, 2013

"निरंतर" की कलम से.....: अगर सोच सार्थक हो

"निरंतर" की कलम से.....: अगर सोच सार्थक हो: बचपन से सुनता रहा हूँ अब भी निरंतर सुनता हूँ आगे भी सुनता रहूँगा जीवन रोने के लिए नहीं हँसने के लिए होता है बात असत्य नहीं है पर य...

"निरंतर" की कलम से.....: आईने भी कितने जीवट वाले होते हैं

"निरंतर" की कलम से.....: आईने भी कितने जीवट वाले होते हैं: आईने भी कितने जीवट वाले होते हैं दूसरों को खुश रखने के लिए कितना कुछ भुगतते हैं झूठ कहने का पाप अपने सर लेते हैं फिर भी उफ...

"निरंतर" की कलम से.....: तुम उदास भी होती हो तो

"निरंतर" की कलम से.....: तुम उदास भी होती हो तो: तुम उदास भी होती हो तो उतनी ही सुन्दर लगती हो तुम्हारी आँखों की चमक तो कम हो जाती है पर उनके नीलेपन में उनकी गहराइयों में कम...

"निरंतर" की कलम से.....: चांदनी चाहती तो बहुत है

"निरंतर" की कलम से.....: चांदनी चाहती तो बहुत है: चांदनी चाहती तो बहुत है चाँद को छोड़ संसार में बस जाए हर रात आकाश से उतरना ना पड़े वृक्षों,नदियों,पहाड़ों , सागर,धरती धोरो...

"निरंतर" की कलम से.....: मेरा उससे ताल्लुक था,अब भी है मगर नहीं भी

"निरंतर" की कलम से.....: मेरा उससे ताल्लुक था,अब भी है मगर नहीं भी: मेरा उससे ताल्लुक था अब भी है मगर नहीं भी कभी मिला तो नहीं मगर उसे देखा कई बार जब भी करीब से देखने की ख्वाहिश करता मिलने की ...

"निरंतर" की कलम से.....: मन मेरा बावरा बार बार मचल जाए

"निरंतर" की कलम से.....: मन मेरा बावरा बार बार मचल जाए: मन मेरा बावरा बड़ा ही आवारा बार बार मचल जाए कितना भी काबू करूँ काबू में ना आए मान मनुहार करूँ बार बार समझाऊँ ठेल ठेल पटरी ...

"निरंतर" की कलम से.....: तनहा भी खुश रहता

"निरंतर" की कलम से.....: तनहा भी खुश रहता: ये भीड़ नहीं होती तो तनहा भी खुश रहता ना कोई सवाल पूछता ना किसी को जवाब देना पड़ता ना गम की बातें होती ना कोई ज़ख्म कुरेदता ...

"निरंतर" की कलम से.....: वही सूरज वही धूप वही उजाला

"निरंतर" की कलम से.....: वही सूरज वही धूप वही उजाला: वही सूरज वही धूप वही उजाला दिन तो सब के एक जैसे ही होते हैं कुछ दिन भर मुस्काराते रहते हैं शाम को हँसते हैं जश्न मनाते हैं...

"निरंतर" की कलम से.....: कभी लहकता था

"निरंतर" की कलम से.....: कभी लहकता था: कभी लहकता था फलता था फूलता था हवाओं में झूमता था राहगीरों को छाया पक्षियों का बसेरा था उम्र के अंतिम दौर में   ना चेहरे पर हँसी थी...

"निरंतर" की कलम से.....: इस गुस्ताख नज़र का क्या कीजे

"निरंतर" की कलम से.....: इस गुस्ताख नज़र का क्या कीजे: इस गुस्ताख नज़र का क्या कीजे हर हसीं सूरत पर अटक जाती है ख्वाहिशें अंगडाई लेने लगती हैं दिल की धडकनें बढ़ने लगती हैं बामुश्किल म...

"निरंतर" की कलम से.....: लोग हद पार करने की बात तो करते हैं

"निरंतर" की कलम से.....: लोग हद पार करने की बात तो करते हैं: लोग हद पार करने की बात तो करते हैं मगर हद तो जब पार होती है जब खुद के स्वार्थ के लिए लोग  हद पार करते हैं पर जब बात दूसरों की...

"निरंतर" की कलम से.....: मैंने सोचा था बड़े घर की लड़की है

"निरंतर" की कलम से.....: मैंने सोचा था बड़े घर की लड़की है: मैंने सोचा था बड़े घर की लड़की है हथेलियों में पली है गाडी में चली है सुरक्षा की चारदीवारियों में बड़ी हुई है इसने क्या सहा हो...

"निरंतर" की कलम से.....: हर ओर मेला ही मेला

"निरंतर" की कलम से.....: हर ओर मेला ही मेला: हर ओर मेला ही मेला ह्रदय में,मन में, मस्तिष्क में रंग बिरंगा मदमाता लुभाता मेला इच्छाओं के नित नए सपने दिखाता मेला सागर ...

"निरंतर" की कलम से.....: केवल समय को पता है

"निरंतर" की कलम से.....: केवल समय को पता है: केवल  समय को पता है कब तक ? सम्बन्ध निभेगा कब अविश्वास की बलि चढ़ेगा कब समापन होगा ? कौन पहल करेगा ? किसका  सब्र ख़त्म...

Tuesday, August 20, 2013

"निरंतर" की कलम से.....: शब्द भी वही वाक्य भी वही

"निरंतर" की कलम से.....: शब्द भी वही वाक्य भी वही: तुमने कहा गुलाब के  फूल ने  मुझे  लुभाया मैंने भी यही कहा गुलाब के  फूल ने  मुझे  लुभाया तुम्हें उसकी सुन्दरता ने  मुझे सुगं...

"निरंतर" की कलम से.....: महकते फूल

"निरंतर" की कलम से.....: महकते फूल: चांदी सा चमकते चमेली के फूल को देखा काँटों की बीच सुर्ख लाल गुलाब को झांकते देखा हर सिंगार के नन्हे फूल को सुगंध फैलाते देखा...

"निरंतर" की कलम से.....: मिलन की ललक

"निरंतर" की कलम से.....: मिलन की ललक: सूरज की लालिमा ने सुबह की मुनादी कर दी रात भर से क़ैद मन में असीम प्रेम लिए  धरती से मिलन को आतुर नयी नवेली दुल्हन का श्रंगार कर स...

"निरंतर" की कलम से.....: आशाएं कहने लगी एक दिन मुझसे

"निरंतर" की कलम से.....: आशाएं कहने लगी एक दिन मुझसे: आशाएं कहने लगी  एक दिन मुझसे निरंतर बहुत थक गयी हैं हर दिन नयी आशाएं संजोते हो एक पूरी नहीं होती दूसरी मन में लाते हो कु...

"निरंतर" की कलम से.....: माँ आज मुझे अपने सीने से लगा लो

"निरंतर" की कलम से.....: माँ आज मुझे अपने सीने से लगा लो: माँ आज मुझे  अपने सीने से लगा  लो  मेरा बचपन मुझे वापस लौटा दो मैंने समझा था बहुत बड़ा हो गया हूँ पढ़ लिख कर बड़ा इंसान बन गया हू...

"निरंतर" की कलम से.....: आओ तुम्हारा जी बहलाऊँ

"निरंतर" की कलम से.....: आओ तुम्हारा जी बहलाऊँ: आओ तुम्हारा जी बहलाऊँ तुम्हें एक मधुर गीत सुनाऊँ मन की बगिया में फूल खिलाऊँ  दिल के आँगन को महकाऊँ तुम्हारे सुर से सुर मिलाऊँ तु...

"निरंतर" की कलम से.....: बने कई दोस्त जिंदगी के सफ़र में

"निरंतर" की कलम से.....: बने कई दोस्त जिंदगी के सफ़र में: बने कई  दोस्त जिंदगी के सफ़र में साथ चले कई दोस्त सफ़र में बिछड़ गए कुछ दोस्त सफ़र में साथ रह गए कुछ दोस्त सफ़र में वक़्त रुका ...

"निरंतर" की कलम से.....: उपलब्धि

"निरंतर" की कलम से.....: उपलब्धि: मित्र ने  रत्न जडित कीमती घड़ी  क्या खरीद ली सुबह से शाम तक घड़ी  का गुणगान उसकी  दिनचर्या  बन गयी जीवन की बड़ी उपलब्धि हो गयी ...

Friday, August 16, 2013

"निरंतर" की कलम से.....: आशा

"निरंतर" की कलम से.....: आशा: आधी रात का समय है सारा संसार सो रहा है जाग रहा है वो जो प्रेम में मग्न है चिंताओं से ग्रस्त है दर्द से पीड़ित है कर्म मे...

"निरंतर" की कलम से.....: ईमान का कटघरा

"निरंतर" की कलम से.....: ईमान का कटघरा: (जीवन दर्शन) ) पडोसी के घर पर लगे अमरुद के पेड़ से सड़क की ओर लटकते अमरुद को देखा तो मन लालच से भर गया स्वयं पर काबू ना रख पाया इ...

"निरंतर" की कलम से.....: स्थिति परिस्थिति कैसी भी हो

"निरंतर" की कलम से.....: स्थिति परिस्थिति कैसी भी हो: ( जीवन अमृत ) असफलताओं से घबराकर डरने लगा कर्म से जी चुराने लगा आत्मविश्वास खो बैठा अपने आप में सिमट कर रह गया न...

"निरंतर" की कलम से.....: समझदारी

"निरंतर" की कलम से.....: समझदारी: (जीवन अमृत) तुम्हारी बात समझ नहीं पाया तो कोई अपराध नहीं किया मेरी समझदारी पर प्रश्न मत खडा करो मेरी हँसी मत उडाओ अपने संकुचित सोच ...

Thursday, August 15, 2013

"निरंतर" की कलम से.....: सम्मान की दृष्टि

"निरंतर" की कलम से.....: सम्मान की दृष्टि: साधारण कुडता पयजामा पहन कर समारोह में चला गया देखते ही मित्र ने टोक दिया निरंतर कुछ तो अपनी प्रतिष्ठा का ख्याल करो इतनी साधारण व...

"निरंतर" की कलम से.....: आज का सत्य

"निरंतर" की कलम से.....: आज का सत्य: एक गरीब मजदूर को खिलखिलाकर हँसते देखा मस्ती में झूमते देखा तो आश्चर्य से मुंह खुला का खुला रह गया खुशी के तांडव का कारण पूछा...

Wednesday, August 14, 2013

"निरंतर" की कलम से.....: अब केवल चलती है जुबान

"निरंतर" की कलम से.....: अब केवल चलती है जुबान: (फौज और फौजियों की जांबाजी पर ) फडकती थी बाहें कभी चलती थी तलवार उगलती थी आग जान नहीं ले तब तक करती नहीं विश्राम राजा हो या प्रजा हो...

"निरंतर" की कलम से.....: क्या वही करता रहूँ?

"निरंतर" की कलम से.....: क्या वही करता रहूँ?: क्या वही करता रहूँ जो करता रहा हूँ क्या वैसे ही सोचता रहूँ जैसे सोचता रहा हूँ क्या वैसे ही जीता रहूँ जैसे जीता रहा हूँ प्रश्...

"निरंतर" की कलम से.....: मन मस्तिष्क में सामंजस्य नहीं हो तो

"निरंतर" की कलम से.....: मन मस्तिष्क में सामंजस्य नहीं हो तो: कल रात आँखें भारी होने लगी नींद बुलाने लगी बिस्तर पर लेट कर नींद की प्रतीक्षा करने लगा अचानक मन कहने लगा नींद बहुत सताती ह...

"निरंतर" की कलम से.....: क्या वही करता रहूँ?

"निरंतर" की कलम से.....: क्या वही करता रहूँ?: क्या वही करता रहूँ जो करता रहा हूँ क्या वैसे ही सोचता रहूँ जैसे सोचता रहा हूँ क्या वैसे ही जीता रहूँ जैसे जीता रहा हूँ प्रश्...

Tuesday, August 13, 2013

"निरंतर" की कलम से.....: मैं नहीं चाहता

"निरंतर" की कलम से.....: मैं नहीं चाहता: मैं नहीं चाहता  बिमारी में व्यथा में व्याकुलता में निराशा में कोई मेरा हाल पूछे मेरी परेशानियों का कारण पूछे मैं जानता ह...

"निरंतर" की कलम से.....: ज़िन्दगी अब तक तुम प्रश्न करती रही

"निरंतर" की कलम से.....: ज़िन्दगी अब तक तुम प्रश्न करती रही: ज़िन्दगी अब तक तुम प्रश्न करती रही मुझसे अब कुछ प्रश्न मैं भी कर लूं तुमसे जब जिंदगी भर चैन नहीं मिलता फिर चैन का भ्रम क्यों द...

"निरंतर" की कलम से.....: दुखी मन बोला सुखी मन से

"निरंतर" की कलम से.....: दुखी मन बोला सुखी मन से: दुखी मन बोला सुखी मन से जब तुम भी मन मैं भी मन फिर मैं दुखी तुम खुश कैसे सुखी मन से अधिक पाने की इच्छा में तुम होड़ में जीते ह...

"निरंतर" की कलम से.....: किस,किस को किस,किस बात का दोष दूं

"निरंतर" की कलम से.....: किस,किस को किस,किस बात का दोष दूं: किस,किस को किस,किस बात का दोष दूं सपने तो मैंने देखे थे अपेक्षाएं भी मैंने रखी थीं आशाएं भी मेरी थी इच्छाएं मैंने संजोई थी करने वा...

"निरंतर" की कलम से.....: क्या वही करता रहूँ?

"निरंतर" की कलम से.....: क्या वही करता रहूँ?: क्या वही करता रहूँ जो करता रहा हूँ क्या वैसे ही सोचता रहूँ जैसे सोचता रहा हूँ क्या वैसे ही जीता रहूँ जैसे जीता रहा हूँ प्रश्...

"निरंतर" की कलम से.....: मन कहाँ मानता है

"निरंतर" की कलम से.....: मन कहाँ मानता है: मन कहाँ मानता है कहना किसी का जो मेरी मानेगा कितना भी समझाओ समझता नहीं है लाख सर फुटव्वल करो मान मनुहार करो जिद पर अड़ जाए त...

"निरंतर" की कलम से.....: दूसरा श्रेष्ठ कैसे मुझसे

"निरंतर" की कलम से.....: दूसरा श्रेष्ठ कैसे मुझसे: दूसरा श्रेष्ठ कैसे मुझसे सोच सोच कर दुखी होता रहा कैसे श्रेष्ठता जताऊँ उससे उधेड़बुन में लगा रहा कर्म पथ से भटक  कर इर्ष्या के आँग...

Sunday, August 11, 2013

"निरंतर" की कलम से.....: कभी सोचा है ?

"निरंतर" की कलम से.....: कभी सोचा है ?: कभी सोचा है कैसे बचाती है जान नन्ही सी चिड़िया आंधी तूफ़ान से कभी ख्याल आया कहाँ सोता है गली का कुत्ता सर्दी की रात में ...

Saturday, August 10, 2013

"निरंतर" की कलम से.....: तमन्नाओं के बाज़ार में

"निरंतर" की कलम से.....: तमन्नाओं के बाज़ार में: तमन्नाओं के बाज़ार में दुकानें तो बहुत सजाई मैंने मगर  खरीददार नहीं  आया कोई  जो भी आया बेचैनी  बेच गया  बदले में सुकून ले गया...

"निरंतर" की कलम से.....: चाहो खुद को उत्तम मानो चाहो तो अति उत्तम मानो

"निरंतर" की कलम से.....: चाहो खुद को उत्तम मानो चाहो तो अति उत्तम मानो: चाहो खुद को  उत्तम मानो  चाहो तो  अति उत्तम मानो  कोई रोक नहीं है कोई टोक नहीं चाहो तो खुद को  सर्वोत्तम मानो अहम् से इतना...

"निरंतर" की कलम से.....: क्या खोया क्या पाया

"निरंतर" की कलम से.....: क्या खोया क्या पाया: क्या खोया क्या पाया जिंदगी में अब तो जान लो नहीं लगाया हो हिसाब तो अब लगा लो कितनो का दिल दुखाया कितनों को दुश्मन बनाया अब तो दिल...

"निरंतर" की कलम से.....: चाँद अब परेशान होने लगा है

"निरंतर" की कलम से.....: चाँद अब परेशान होने लगा है: कभी तीज कभी ईद कभी पूर्णिमा कभी करवा चौथ पर पूजे जाने से चाँद अब परेशान होने लगा है मैंने कारण पूछा तो मुंह बिचका कर कहन...

"निरंतर" की कलम से.....: निर्धन नारी का हर दिन इकसार होता है

"निरंतर" की कलम से.....: निर्धन नारी का हर दिन इकसार होता है: निर्धन नारी का हर दिन इकसार होता है सुबह चूल्हे से प्रारम्भ होती है दोपहर दो जून रोटी के लिए कड़ी मेहनत में गुजरती है रात को वैवाहि...

"निरंतर" की कलम से.....: उन पर कोई रोक नहीं

"निरंतर" की कलम से.....: उन पर कोई रोक नहीं: वो मुझे चाहे ना चाहे उन पर कोई रोक नहीं मैं उनको चाहता रहूँगा वो ह्रदय को काबू  में कर सकते हैं खुद की भावनाओं से खुद ही खेल...

"निरंतर" की कलम से.....: तेरी बेवफाई को भूल तो जाऊं

"निरंतर" की कलम से.....: तेरी बेवफाई को भूल तो जाऊं: तेरी बेवफाई को भूल तो जाऊं पर उन हसरतों का क्या करूँ जिन में आग लगाई तूने उन ज़ज्बातों का क्या करूँ जिनसे जी भर के खेला तूने उन लम्...

Thursday, August 8, 2013

"निरंतर" की कलम से.....: कौन कब किस बात से खफा हो जाए

"निरंतर" की कलम से.....: कौन कब किस बात से खफा हो जाए: कौन कब किस बात से खफा हो जाए कब किसी का सोच बदल जाए रिश्तों में दरार पड़ जाए पता कहाँ चलता है जो वर्षों साथ निभाए विपत्त...

"निरंतर" की कलम से.....: चाहे कलम बदल दूं

"निरंतर" की कलम से.....: चाहे कलम बदल दूं: चाहे कलम बदल दूं चाहे हर्फों में हेर फेर कर दूं सुबह लिखूं शाम लिखूं हर बार एक ही लफ्ज़ आ जाता  हैं कागज़ पर उसका नाम ही...

"निरंतर" की कलम से.....: किसका मन रखूँ

"निरंतर" की कलम से.....: किसका मन रखूँ: किसका मन रखूँ किसका ना रखूँ किसे  खुश करूँ किसे नाराज़ करूँ मन में दुविधा को जन्म  देता  प्रश्न निरंतर मुंह खोले सामने ख...

"निरंतर" की कलम से.....: अर्थ का अनर्थ

"निरंतर" की कलम से.....: अर्थ का अनर्थ: आज अर्थ का अनर्थ हो गया मित्र से वार्तालाप वाकयुद्ध में बदल गया असहनशीलता   ने जिव्ह्वा से नियंत्रण समाप्त कर दिया मुंह से...

"निरंतर" की कलम से.....: संसार एक रंगमंच

"निरंतर" की कलम से.....: संसार एक रंगमंच: संसार एक रंग मंच जीवन उस नाटक का नाम जिसका निर्देशक इश्वर अलग अलग पात्र निरंतर अभिनय करते कभी हँसते कभी गाते कभी इर्ष्या द्...

Wednesday, August 7, 2013

"निरंतर" की कलम से.....: सोच में एकरूपता चाहता

"निरंतर" की कलम से.....: सोच में एकरूपता चाहता: ना पर्वत श्रंखलाएं एक ऊंचाई की होती ना सारी नदियाँ एक गति से बहती ना पक्षी इकसार होते ना पेड़ पौधे एक आकार के होते फिर क्यों मनुष्...

"निरंतर" की कलम से.....: छुपाना नहीं गर नफरत पल रही दिल में

"निरंतर" की कलम से.....: छुपाना नहीं गर नफरत पल रही दिल में: छुपाना नहीं गर नफरत पल रही दिल में दबाना नहीं गर चिंगारियां सुलग रही मन में कह देना साफ़ साफ़ जो चल रहा दिल में कहीं ऐसा न हो ...

"निरंतर" की कलम से.....: ऐसा ज़हाँ मयस्सर हो

"निरंतर" की कलम से.....: ऐसा ज़हाँ मयस्सर हो: खुदा से दुआ हमारी ऐसा ज़हाँ मयस्सर हो जहां ना दर्द से कोई रोता हो ना किसी के रोने पर कोई हंसता हो ना कोई भूखा रहता हो ना क...

"निरंतर" की कलम से.....: शर्म बोली हया से

"निरंतर" की कलम से.....: शर्म बोली हया से: सिसकियाँ लेते हुए शर्म बोली हया से बहन समय ने कैसी पलटी खाई है हमारी कितनी दुर्गति हो रही है दिन पर दिन इज्ज़त धूल में मिल रही है...

"निरंतर" की कलम से.....: सोच में एकरूपता चाहता

"निरंतर" की कलम से.....: सोच में एकरूपता चाहता: ना पर्वत श्रंखलाएं एक ऊंचाई की होती ना सारी नदियाँ एक गति से बहती ना पक्षी इकसार होते ना पेड़ पौधे एक आकार के होते फिर क्यों मनुष्...

Monday, August 5, 2013

"निरंतर" की कलम से.....: अब कातिल ही मुंसिफ हो गया है

"निरंतर" की कलम से.....: अब कातिल ही मुंसिफ हो गया है: मुल्क का हाल इतना बेहाल हो गया है अब कातिल ही मुंसिफ हो गया है इन्साफ क्या ख़ाक मिलेगा हर लम्हा डर कर जीना पडेगा खून का...

"निरंतर" की कलम से.....: अगर छोटी छोटी बात में रूठना हो तो

"निरंतर" की कलम से.....: अगर छोटी छोटी बात में रूठना हो तो: अगर छोटी छोटी बात में रूठना हो तो मुझसे मित्रता मत करना एक क्षण के लिए भी दुःख का कारण मत बनना कहीं ऐसा ना हो मित्रता के नाम से ह...

"निरंतर" की कलम से.....: अब कातिल ही मुंसिफ हो गया है

"निरंतर" की कलम से.....: अब कातिल ही मुंसिफ हो गया है: मुल्क का हाल इतना बेहाल हो गया है अब कातिल ही मुंसिफ हो गया है इन्साफ क्या ख़ाक मिलेगा हर लम्हा डर कर जीना पडेगा खून का...

"निरंतर" की कलम से.....: कहने की ललक में

"निरंतर" की कलम से.....: कहने की ललक में: तुमने जिव्हा पर नियंत्रण खो दिया केवल कहने की ललक में किसी व्यक्ति विशेष पर स्थिति परिस्थिति पर बिना सोचे समझे कुछ कह दिया यह तुम...

Saturday, August 3, 2013

"निरंतर" की कलम से.....: सच कहने के फितरत ने बहुत जुल ढाए हम पर

"निरंतर" की कलम से.....: सच कहने के फितरत ने बहुत जुल ढाए हम पर: सच कहने के फितरत ने बहुत जुल ढाए हम पर हवाओं ने भी ढेरों इलज़ाम लगाए हम पर चाँद की रौशनी में भी शोले बरसाए गए हम पर दोस्त तो बहुत ...

"निरंतर" की कलम से.....: आवाज़ थर्राने लगी,कंठ भर्राने लगे

"निरंतर" की कलम से.....: आवाज़ थर्राने लगी,कंठ भर्राने लगे: आवाज़ थर्राने लगी कंठ भर्राने लगे इंसानियत को झुलसते देख इंसानों के ह्रदय रोने लगे लाचार हो कर शर्म से मुंह छिपाने लगे यही ह...

"निरंतर" की कलम से.....: व्यथित क्यों होते हो

"निरंतर" की कलम से.....: व्यथित क्यों होते हो: इच्छाएं पूरी नहीं हुई  तो  व्यथित क्यों होते हो क्यों निराशा के भंवर में फंसते हो इच्छाएं तो राम कृष्ण की भी पूरी नहीं हुई ...

Friday, August 2, 2013

"निरंतर" की कलम से.....: मेरा वतन लुट रहा है,मेरा चमन लुट रहा है

"निरंतर" की कलम से.....: मेरा वतन लुट रहा है,मेरा चमन लुट रहा है: मेरा वतन लुट रहा है मेरा चमन लुट रहा है हर दिन सियासत का नया खेल हो रहा है मोहब्बत के पौधों को उखाड़ा जा रहा है नफरत के काँट...

"निरंतर" की कलम से.....: आज जब नानी की बात चली

"निरंतर" की कलम से.....: आज जब नानी की बात चली: आज जब नानी की बात चली मन के कोने में दबी नानी की एक एक बात याद आ गयी उनके अल्हड़पन की सुनहरी कहानी आँखों को नम कर गयी तूँ इतना ह...

Thursday, August 1, 2013

"निरंतर" की कलम से.....: आईने कितने भी बदलूँ

"निरंतर" की कलम से.....: आईने कितने भी बदलूँ: आईने कितने भी बदलूँ अक्स उसका ही दिखता चहरे कितने भी देखूं हर चेहरे में अक्स उसका ही दिखता ख्व्वाब भी देखूं तो अक्स उसका ही ...

"निरंतर" की कलम से.....: परेशां नहीं हूँ लोगों से

"निरंतर" की कलम से.....: परेशां नहीं हूँ लोगों से: परेशां नहीं हूँ लोगों से परेशां हूँ लोगों के हाल से परेशानी नहीं हूँ बीमार को देख कर परेशां हूँ बीमारी से कौन करेगा इलाज़ नफरत की ...

"निरंतर" की कलम से.....: उनके दिल जलते रहे

"निरंतर" की कलम से.....: उनके दिल जलते रहे: हम अकेले थे वो बहुत थे नफरत से भरे थे अहम् में चूर थे हमारे सुख उनसे देखे ना गए वो पत्थर मारते गए चोट खा कर भी हम मुस्काराते रहे  ...