Monday, October 31, 2011

उसे होश ना था



वो पेड़ के नीचे
उसके इंतज़ार में
खडी थी
बारिश ने
उसे पूरी तरह
भिगो दिया था
आँखों में
निरंतर
उस से मिलने की
बेकरारी थी
दिल में ख्याल सिर्फ
उसका था
सौन्दर्य कपड़ों से
बाहर झाँक रहा था
हर आने जाने वाला
उसे घूर रहा था
प्यार की बारिश के
ख्याल में
लाज शर्म का बोध
ना था
उसे होश ना था
31-10-2011
1731-138-10-11

ताजिंदगी बंद आँखों से जीना चाहता हूँ


बंद आँखों में
ख्वाब देखने की
आदत हो गयी
उन्हें देखने की
अच्छी तरकीब
पता चल गयी
ख्वाब आते ही
वो नज़र आते हैं
खुलते ही लौट जाते हैं
अब आँखें खोलने का
मन नहीं करता
उनका चेहरा
जो नज़र नहीं आता
ताजिंदगी बंद आँखों से
जीना चाहता हूँ
किसी हाल में उन्हें
खोना नहीं चाहता हूँ
31-10-2011
1730-137-10-11

बस चुपचाप तुझे देखता रहा


तुझे देखते ही
फूलों की बहार
मेरे चेहरे पर उतर आयी
उनकी महक
तेरी  दिलकश महक में
घुल मिल गयी
मुझे लगा ये ज़मीन नहीं
ज़न्नत है
जहां किसी परी का
बसेरा है
मैं एक मुसाफिर हूँ
निरंतर भटकते भटकते
आखिर मुकाम पर
पहुँच गया
परी मुझे आगोश में
लेने के लिए बेताब है
मैं देख कर ही
इतना नशे में हो गया
एक कदम भी आगे
ना बढ़ा सका
तेरे पैगाम को समझ
ना सका
ख्यालों में खोता रहा
बस चुपचाप तुझे
देखता रहा
31-10-2011
1729-136-10-11

कल आज और कल


कल
आज और कल का
क्रम कभी ना टूटेगा
आज से कल बेहतर हो
मन सदा चाहेगा
बीता हुआ कल
याद अवश्य आयेगा
अच्छा रहा होगा
तो मन को अभिभूत
करेगा
बुरा रहा होगा
तो मन को व्यथित
करेगा
सोच का सिलसिला
निरंतर चलता
रहेगा
30-10-2011
1728-135-10-11

काश वो खुद आते


वो निरंतर
पैगाम भेजते हैं
दिल में फूल खिलते हैं
लिफ़ाफ़े पर
उनके नाज़ुक हाथों के
निशाँ
दिल को छूते हैं
ख़त के
एक एक लफ्ज़ में
उनकी खुशबू ज़ज्ब
होती है
कागज़ में उनका
अक्स नज़र आता है
उनकी यादें ताज़ा
होती हैं
फिर भी उनकी कमी
खलती है
मेरी हसरतें
चिल्ला चिल्ला कर
कहती हैं
काश वो खुद आते
तो बात
कुछ और होती
30-10-2011
1727-134-10-11

Sunday, October 30, 2011

ना जाने कब तक कलम चलेगी


ना जाने कब तक
कलम चलेगी
चलेगी जब तक
खुल कर चलेगी
दिल-ओ-दिमाग की
मशक्कत लिखती
रहेगी
काले को काला
सफ़ेद को सफ़ेद
कहती रहेगी
सच का दामन
पकडती रहेगी
निरंतर
किसी को खुश
किसी को नाराज़
करती रहेगी
ना जाने कब तक
 कलम चलेगी ....
30-10-2011
1726-133-10-11

किस बात से डरते हैं आप(हास्य कविता )


किस बात से डरते हैं आप

क्यों मन में चोर पालते हैं
क्यों खुल कर बोलते नहीं आप

क्यों आँख मिचोली खेलते हैं
निरंतर इच्छाएं दबाते हैं आप

खुद को तकलीफ देते हैं
ज़माने से घबराते हैं आप

अगर सच्चे मन से चाहते हैं
क्यों हकीकत छिपाते हैं आप

कोई पाप नहीं करते हैं
रिश्ते को इज्ज़त बख्शें आप

निरंतर मन में बोझ ना पालें
अब हल्का कर दीजिये आप

ईमानदारी से सब को बता दें
हम को भाई मानते हैं आप
30-10-2011
1725-132-10-11

क्यों लोग दोहरेपन से जीते ?


क्यों लोग
 तिल तिल कर
मरते ?
बेवजह रिश्तों को
ढोते
दिल में नफरत
रखते
निरंतर पीछा छुडाना
चाहते
हिम्मत नहीं जुटा
पाते
जुबां से कह नहीं
पाते
ऐसी भी क्या मजबूरी
क्यों लोग
दोहरेपन से जीते ?
30-10-2011
1724-131-10-11

मन में आया मैं भी एक कविता लिखूं


मन में
आया मैं भी
एक कविता लिखूं
सोचने लगा
किस विषय पर लिखूं
तभी एक आवाज़ ने
मुझे चौंकाया
सर उठा कर देखा तो
फटे पुराने कपड़ों में
एक कृशकाय
भूख से बेहाल बच्चे को
खडा पाया
मैं कविता भूल गया
तुरंत बच्चे को
पेट भर भोजन कराया
नहलाया ,
वस्त्रों से सुशोभित
किया
कविता का
विषय तो नहीं मिला
जीवन का यथार्थ
समझ आया
लिखने से अधिक
 निरंतर मनुष्य को
मनुष्य के लिए
 कुछ करना चाहिए
कथनी और करनी में
 अंतर नहीं होना
चाहिए
30-10-2011
1724-131-10-11

Friday, October 28, 2011

मनुष्य बना कर रखना तुम


तानाशाह का अंत
 समय था
अंतिम क्षण मन में
 सोच रहा था
क्यों इर्ष्या,द्वेष,अहम्
अहंकार में
व्यर्थ किये करोड़ों क्षण
छोड़ जाऊंगा पीछे अब
मनों में
खट्टी यादें लोगों के
याद कर
जिन्हें तिलमिलायेंगे वो
खुल कर गाली देंगे 
चीख चीख कर मेरा सत्य
संसार को  बताएँगे
मेरी कब्र पर
एक फूल भी ना चढ़ाएंगे
धन दौलत सब पीछे रह
जायेगी
परिवार की दुर्गती होगी
क्यों समझ नहीं आया
जीवन भर
निरंतर
भटकता रहा खुदा के
पथ से
अहम्, अहंकार ताकत ने
मुझ को
मनुष्य से राक्षस बनाया
अब आँख मुंदने वाली है
अंतिम दुआ मान लो
 मालिक
जन्म फिर से अवश्य देना
पर सम्राट नहीं बनाना तुम
अपनों से दूर ना होने देना 
अहम् अहंकार से दूर
रखना
मनुष्य बना कर
रखना तुम 
28-10-2011
1714-121-10-11
(लीबिया के तानाशाह शासक,कर्नल गद्दाफी की मौत पर)