झलक दिखलाते हैं
आँखें उठा कर देखूं
तब तक गुम हो जाते हैं
फिर इंतज़ार कराते हैं
रात भर जगाते हैं
सवेरे उठते ही पैगाम
भिजवाते हैं
तवज्जो ना देने का
उल्हाना देते हैं
निरंतर हैरान होते हैं
या हैरान करते हैं
कभी नहीं बताते हैं
ना जाने
कैसी आँख मिचोली
खेलते हैं
05-10-2011
1612-20-10-11
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