Wednesday, October 5, 2011

ना जाने कैसी आँख मिचोली खेलते हैं


झलक दिखलाते हैं
आँखें उठा कर देखूं 
तब तक गुम हो जाते हैं
फिर इंतज़ार कराते हैं
रात भर जगाते हैं
सवेरे उठते ही पैगाम
भिजवाते हैं
तवज्जो ना देने का
उल्हाना देते हैं
निरंतर हैरान होते हैं
या हैरान करते हैं
कभी नहीं बताते हैं
ना जाने
कैसी आँख मिचोली
खेलते हैं
05-10-2011
1612-20-10-11

No comments: