Wednesday, October 12, 2011

बुरे को बुरा ना कहूं ,अच्छे को अच्छा ना कहूं, ये मुमकिन नहीं




बुरे को बुरा ना कहूं
अच्छे को अच्छा
ना कहूं
ये मुमकिन ही नहीं
मेरी फितरत मुझे
झूंठ बोलने देती नहीं
आदत से मजबूर हूँ
बहुतों को
नाराज़ किया अब तक
दिल भी
बहुतों का दुखाया 
अब तक
कैसे मुखौटा लगा 
कर रहूँ ?
झूठ ही मुस्काराता रहूँ ?
समझ आता नहीं
मुझे पता है
लोग मुझे कोसते हैं
जी भर के गाली देते हैं
फिर भी तरीका अपना
बदलूंगा नहीं
सच पर यकीन को
बदलूंगा नहीं
दोगलेपन का जीवन
जीऊँगा नहीं
निरंतर
मेरे यकीन की कीमत
मुझे चुकानी पड़ती
फिर भी
सच से कभी पीछा
छुडाऊंगा नहीं
12-10-2011
1639-47-10-11

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