Saturday, October 22, 2011

पुष्प की व्यथा


सब मुझे पुष्प के
नाम से पहचानते
पर मेरी व्यथा नहीं
समझते 
अपने में मग्न
सब मेरी सुगंध सूंघते
देख कर खुश होते
बहुत चाव  से पौधा
लगाते
व्याकुलता से
मेरे खिलने की प्रतीक्षा
करते
बड़ी निष्ठुरता से मुझे
तोड़ते
समय से पहले मेरे
प्राण हरते
चाहूँ ना चाहूँ
भँवरे मेरा रस चूसते 
पूजा अर्चना से लेकर
अर्थी तक
विवाह से अभिनन्दन तक
मुझे चढाते
मुरझाने पर  पैरों तले
रौंदते
किसी ने आज तक
मेरी पीड़ा पर ध्यान
नहीं दिया
स्वार्थ में निरंतर सदियों से
मनुष्य ने मेरा मनचाहा
उपभोग किया
मेरे नाम पर अपना
नाम रखा
औषधी ,सुगंध,सौन्दर्य
के लिए  मुझे
काम में लिया
मैंने कभी प्रतिरोध या
क्रोध नहीं किया
चुपचाप निरंकुश व्यवहार
सहता रहा
कभी तो परमात्मा
मेरी सुनेगा
मेरी व्यथा कम करेगा
इस आशा में निरंतर
खिलता महकता हूँ  
22-10-2011
1692-99-10-11

No comments: