सब मुझे पुष्प के
नाम से पहचानते
पर मेरी व्यथा नहीं
समझते
अपने में मग्न
सब मेरी सुगंध सूंघते
देख कर खुश होते
बहुत चाव से पौधा
लगाते
व्याकुलता से
मेरे खिलने की प्रतीक्षा
करते
बड़ी निष्ठुरता से मुझे
तोड़ते
समय से पहले मेरे
प्राण हरते
चाहूँ ना चाहूँ
भँवरे मेरा रस चूसते
पूजा अर्चना से लेकर
अर्थी तक
विवाह से अभिनन्दन तक
मुझे चढाते
मुरझाने पर पैरों तले
रौंदते
किसी ने आज तक
मेरी पीड़ा पर ध्यान
नहीं दिया
स्वार्थ में निरंतर सदियों से
मनुष्य ने मेरा मनचाहा
उपभोग किया
मेरे नाम पर अपना
नाम रखा
औषधी ,सुगंध,सौन्दर्य
के लिए मुझे
काम में लिया
मैंने कभी प्रतिरोध या
क्रोध नहीं किया
चुपचाप निरंकुश व्यवहार
सहता रहा
कभी तो परमात्मा
मेरी सुनेगा
मेरी व्यथा कम करेगा
इस आशा में निरंतर
खिलता महकता हूँ
22-10-2011
1692-99-10-11
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