बड़ी ज़ालिम होती
ये निगाहें
इन निगाहों का
क्या कीजिये
कहीं ठहरती नहीं
जो भी दिल को भाता
तस्वीर दिल में
उतारती
उसकी तलाश में
भटकतीरहती
रात रात
भर सोने ना देती
निरंतर
ख्वाब देखती रहती
तड़प इनकी
कभी कम नहीं होती
बड़ी ज़ालिम होती
ये निगाहें
इन निगाहों का
क्या कीजिये
22-10-2011
1693-100-10-11
1 comment:
बहोत ही सरलता से बड़ी बात कहती है आपकी कविता | बहोत-बहोत बधाई और दिवाली की शुभकामनाएँ |धन्यवाद |
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