Monday, October 17, 2011

वक़्त का तकाजा है


वक़्त का तकाजा है
जो जैसा कर रहा
उसे वैसा करने दो
कातिलों को क़त्ल
फितरत मंदों को
फितरत पूरी करने दो
उनके शौक में खलल
ना डालो
चुपचाप सह लो
चुपचाप सुन लो
खामोशी से देख लो
रोना हो तो चुपके से
रोलो
जुबान खोली तो
ज़लज़ला आ जाएगा
हर बात का फ़साना
बन जाएगा
मुट्ठी भर अमन का
मंजर
ग़मों के ढेर में बदल
जाएगा
निरंतर दिलों में लगी
आग को कोई
बुझाने वाला ना
मिलेगा
17-10-2011
1666-74-10-11

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