वक़्त का तकाजा है
जो जैसा कर रहा
उसे वैसा करने दो
कातिलों को क़त्ल
फितरत मंदों को
फितरत पूरी करने दो
उनके शौक में खलल
ना डालो
चुपचाप सह लो
चुपचाप सुन लो
खामोशी से देख लो
रोना हो तो चुपके से
रोलो
जुबान खोली तो
ज़लज़ला आ जाएगा
हर बात का फ़साना
बन जाएगा
मुट्ठी भर अमन का
मंजर
ग़मों के ढेर में बदल
जाएगा
निरंतर दिलों में लगी
आग को कोई
बुझाने वाला ना
मिलेगा
17-10-2011
1666-74-10-11
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