Sunday, October 30, 2011

मन में आया मैं भी एक कविता लिखूं


मन में
आया मैं भी
एक कविता लिखूं
सोचने लगा
किस विषय पर लिखूं
तभी एक आवाज़ ने
मुझे चौंकाया
सर उठा कर देखा तो
फटे पुराने कपड़ों में
एक कृशकाय
भूख से बेहाल बच्चे को
खडा पाया
मैं कविता भूल गया
तुरंत बच्चे को
पेट भर भोजन कराया
नहलाया ,
वस्त्रों से सुशोभित
किया
कविता का
विषय तो नहीं मिला
जीवन का यथार्थ
समझ आया
लिखने से अधिक
 निरंतर मनुष्य को
मनुष्य के लिए
 कुछ करना चाहिए
कथनी और करनी में
 अंतर नहीं होना
चाहिए
30-10-2011
1724-131-10-11

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