Thursday, October 13, 2011

आशा में निराश नहीं होता


मुझे पता है
तुम्हें पा नहीं सकता
कितना भी चाहूँ
ह्रदय की कामना
पूरी  कर नहीं सकता
फिर भी हिरन सामान  
मरीचिका
देख खुश होता
आशा में 
निराश नहीं होता
निरंतर 
प्रेम की तलाश में
भटकता रहता
मन निरंतर खुद से
प्रश्न करता
जानते पूछते
ऐसा क्यों करता ?
मन ही उत्तर भी देता
कम से कम इस बहाने
तुम्हें याद तो करता
आँखों में दिन भर
चेहरा
तुम्हारा रहता
मन मष्तिष्क तुम में
समाता 
निरंतर आशा में
जीने का पाठ पढाता
वैसे भी सब इच्छाएं
किसकी पूरी होती
जो मेरी होगी
इस बहाने दूर से ही सही
दिल से तुमसे नज़दीकी
बनी रहती
दिल को राहत मिलती
तुम्हारे ख्याल से ही
खुश होता रहता
ज़िन्दगी के पड़ाव पार
करता जाता
चाहत में जीता जाता
13-10-2011
1641-49-10-11

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