मुझे पता है
तुम्हें पा नहीं सकता
कितना भी चाहूँ
ह्रदय की कामना
पूरी कर नहीं सकता
फिर भी हिरन सामान
मरीचिका
देख खुश होता
आशा में
निराश नहीं होता
निरंतर
प्रेम की तलाश में
भटकता रहता
मन निरंतर खुद से
प्रश्न करता
जानते पूछते
ऐसा क्यों करता ?
मन ही उत्तर भी देता
कम से कम इस बहाने
तुम्हें याद तो करता
आँखों में दिन भर
चेहरा
तुम्हारा रहता
मन मष्तिष्क तुम में
समाता
तुम्हें पा नहीं सकता
कितना भी चाहूँ
ह्रदय की कामना
पूरी कर नहीं सकता
फिर भी हिरन सामान
मरीचिका
देख खुश होता
आशा में
निराश नहीं होता
निरंतर
प्रेम की तलाश में
भटकता रहता
मन निरंतर खुद से
प्रश्न करता
जानते पूछते
ऐसा क्यों करता ?
मन ही उत्तर भी देता
कम से कम इस बहाने
तुम्हें याद तो करता
आँखों में दिन भर
चेहरा
तुम्हारा रहता
मन मष्तिष्क तुम में
समाता
निरंतर आशा में
जीने का पाठ पढाता
वैसे भी सब इच्छाएं
किसकी पूरी होती
जो मेरी होगी
इस बहाने दूर से ही सही
दिल से तुमसे नज़दीकी
बनी रहती
दिल को राहत मिलती
तुम्हारे ख्याल से ही
खुश होता रहता
ज़िन्दगी के पड़ाव पार
करता जाता
चाहत में जीता जाता
जीने का पाठ पढाता
वैसे भी सब इच्छाएं
किसकी पूरी होती
जो मेरी होगी
इस बहाने दूर से ही सही
दिल से तुमसे नज़दीकी
बनी रहती
दिल को राहत मिलती
तुम्हारे ख्याल से ही
खुश होता रहता
ज़िन्दगी के पड़ाव पार
करता जाता
चाहत में जीता जाता
13-10-2011
1641-49-10-11
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