हाल-ऐ-दिल किस से कहें
हर शख्श
गम में डूबा हुआ
सुकून चैन से दूर मिला
हंस हंस कर कितना भी
दिखाओ
हकीकत कितनी भी
छिपाओ
दिल किस का खुश रहता
मोहब्बत के मकाँ
ढह चुके
अब दिलों में
घर किस का बनता
इंसान, इंसान से दूर
हो गया
कोई अपना ना लगता
निरंतर
शक और नफरत ने
यकीन
रिश्तों से उठा दिया
हाल-ऐ-दिल किस से कहें
हर शख्श पराया
लगता
23-10-2011
1695-102-10-11
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