Saturday, October 22, 2011

अब मैंने भी ठान ली


अब मैंने भी ठान ली
उन्हें ख़त क्यूँ लिखूँ ?
क्यूं हमेशा मैं ही
पहल करूँ?
मुझे अहसास है
दिल उनका भी याद
करता होगा
मेरी याद में निरंतर
तड़पता होगा
मन उनका भी
मेरी आवाज़ सुनने को
करता होगा
मैं यहाँ रो रहा हूँ
उन्हें वहां रोने दो
गर उन्होंने जिद
कर ली
मुझे भी जिद कर
लेने दो
इंतज़ार का अहसास
उन्हें भी होने दो 
22-10-2011
1690-97-10-1

No comments: