Monday, October 17, 2011

अब खुद से सवाल करते हैं



अब वो
अजनबी से मिलते
देख कर भी ना
पहचानते
ताज़िन्दगी जिनके
सहारे जीते रहे
अब निरंतर
तिल तिल मार रहे
था गुमाँ
जिनकी दोस्ती पर
अब नाम से भी खौफ
खाते
जब खुदा ही कातिल
हो गया
किसी और से इल्तजा
क्या करें
अब खुद से सवाल
करते हैं
मोहब्बत की ऐसी
सज़ा क्यों मिली हमें
क्यों मयस्सर ऐसी
किस्मत हमें
17-10-2011
1667-75-10-11

1 comment:

Anamikaghatak said...

panktiya dil ko chhoo gayi