अब वो
अजनबी से मिलते
देख कर भी ना
पहचानते
ताज़िन्दगी जिनके
सहारे जीते रहे
अब निरंतर
तिल तिल मार रहे
था गुमाँ
जिनकी दोस्ती पर
अब नाम से भी खौफ
खाते
जब खुदा ही कातिल
हो गया
किसी और से इल्तजा
क्या करें
अब खुद से सवाल
करते हैं
मोहब्बत की ऐसी
सज़ा क्यों मिली हमें
क्यों मयस्सर ऐसी
किस्मत हमें
17-10-2011
1667-75-10-11
1 comment:
panktiya dil ko chhoo gayi
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