जिनके
दिल ज़ख्मों से भरे
वो अब हमदर्दी जताते
खुद की किश्ती
मंझधार में फंसी
हमें तैरना सिखाते
हमारे प्यार का
निरंतर तमाशा बनाते
खुद दो कदम
साथ ना चल सके
हमें साथ चलने की
नसीहत देते
हम तो फिर भी सुन लेंगे
उनका कहा कर लेंगे
उन्हें कौन किनारे कौन
लगाएगा ?
इस गम में निरंतर
ग़मगीन रहते
15-10-2011
1658-66-10-11
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