Friday, October 7, 2011

अजीब सी मुलाक़ात थी


अजीब सी
मुलाक़ात थी
ना बात हुयी,
ना आँखें चार हुयी
मेरा ज़िक्र होने पर
,उनका चेहरा शर्म से 
सुर्ख गुलाबी हो गया
उन्होंने उसे हाथों में
छुपा लिया
रात ख़्वाबों में आकर
किसी फ़रिश्ते ने सारा
वाकया बयान किया
मैं सुनता रह गया
एक लफ्ज़ ना कह सका
रात भर उन के ख्यालों में
खोता रहा
जहन में उनका अक्स
बना लिया
लगा अब सामने
आएँगे
चेहरा अपना दिखाएँगे
ना वो आये
ना मुलाक़ात हुयी
ना आखें चार हुयी
बिना मिले ही उनसे
मिल लिया
दिल उन को दे दिया 
07-10-2011
1623-31-10-11

No comments: